एक प्रसिद्ध राज्य के महाराज विक्रम ने दस जंगली कुत्ते पाल रखे थे। वह उन्हें अपने किसी घातक हथियार की तरह इस्तेमाल करते थे। जब भी किसी नौकर से छोटी-सी गलती हो जाती, महाराज विक्रम उन्हें कुत्तों के सामने डाल देते थे।
एक दिन उनके एक नौकर, अर्जुन, ने महाराज विक्रम को किसी मुद्दे पर सलाह दी, जो उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं आई। नतीजतन, महाराज ने अर्जुन को कुत्तों के सामने फेंकने का हुक्म दे दिया।
अर्जुन, जो महाराज का सबसे समझदार नौकर था, ने दुखी होकर कहा, “महाराज, मैंने दस साल तक आपकी सेवा की है, और आप मेरे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं? मेरी आपसे बस एक विनती है, मुझे कुत्तों के हवाले करने से पहले दस दिन का समय दें।”
महाराज विक्रम सहमत हो गए।
अर्जुन ने पहरेदार से कहा कि वह अगले दस दिनों तक कुत्तों की सेवा करना चाहता है। पहरेदार चकित था लेकिन उसने अनुमति दे दी। अर्जुन ने कुत्तों को खाना खिलाना, उनकी सफाई करना, और उन्हें हर तरह की सुविधा देना शुरू कर दिया।
जब दस दिन पूरे हुए, तो महाराज विक्रम ने अर्जुन को कुत्तों के हवाले करने का आदेश दिया। लेकिन सभी चकित रह गए जब देखा कि कुत्ते अर्जुन पर हमला करने के बजाय उसके पैरों को चाटने लगे!
महाराज विक्रम ने चकित होकर पूछा, “इन कुत्तों को क्या हो गया है? तुमने इनके साथ क्या किया?”
अर्जुन ने उत्तर दिया, “मैंने केवल दस दिनों के लिए कुत्तों की सेवा की और वे मेरी सेवा को नहीं भूले। लेकिन आपने मेरी दस साल की सेवा को पहली गलती पर ही भुला दिया।”
महाराज विक्रम को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने अर्जुन की सजा माफ कर दी, उससे माफी मांगी, और धन्यवाद देते हुए कहा, “तुम्हारी वजह से मेरी आंखें खुल गईं।”
**कहानी की सीख:**
1. बिना सोचे-समझे किसी को भी अपना स्वामी मत बनाएं। जिसकी भी आप सेवा करते हैं, पहले उसे परख लें कि वह आपकी सेवा के लायक है या नहीं। नहीं तो आपका हमेशा शोषण होता रहेगा।
2. समस्या कितनी भी बड़ी क्यों न हो, शांति और समझदारी से उसका हल निकाला जा सकता है।
3. व्यक्ति या प्राणी कितना भी क्रूर हो, प्रेम और सेवा से उसका आमूल परिवर्तन संभव है।