बचपन से ही मैं सुनती आ रही थी कि हमारे आंगन में जो अनार का पेड़ है, उसे मेरी माँ ने लगाया था। माँ इस दुनिया से बहुत साल पहले चली गई थीं। पेड़ पर इतने फल लगते थे कि उसकी शाखाएं जमीन तक पहुंच जाती थीं, जिससे कोई भी अनार आसानी से तोड़ सकता था। माँ के जाने के बाद घर के बाग-डोर भाभी के हाथों में आ गई थी।
एक बार मेरे पति ने मुझसे कहा, “मैंने सुना है कि तुम्हारे मायके में जो अनार का पेड़ है, उस पर बहुत ही स्वादिष्ट अनार लगते हैं।” अगले ही दिन मैं मायके गई और चुपके से कुछ अनार तोड़कर अपने बेग में छुपा दिए। जब भाभी ने देखा तो आग बबूला हो गईं। उन्होंने तुरंत मेरे बेग की तलाशी ली, मुझे बुरा-भला कहा और सारे अनार निकाल लिए।
मैं दुखी मन से अपने घर वापस आ गई और सारी बात पति को बता दी। लेकिन फिर वही हुआ जो कहा जाता है, जिस घर से बेटी दुखी मन से निकल जाती है, उस घर से बरकत भी उठ जाती है। अगले साल उस पेड़ पर एक भी अनार नहीं लगा, बल्कि उसकी जड़ों में कीड़े पड़ गए। आखिरकार, पेड़ को जड़ से उखाड़कर फेंकना पड़ा और उस जगह पर भारी मात्रा में केमिकल डालना पड़ा।
जब मुझे यह पता चला तो मैं मायके गई। पेड़ की जगह पर हाथ रखकर माँ को याद करते हुए रोने लगी। अचानक मेरी नजर एक नन्ही सी जड़ पर पड़ी। मैंने उस जड़ को उखाड़कर अपने बाग में लगा दिया और अपने घर वापस आ गई।
अपने घर आकर मैंने वह जड़ जमीन में लगाई और वह जड़ बढ़ने लगी। दो ही सालों में वह जड़ एक बड़े अनार के पेड़ में बदल गई। देखने वाले यह देखकर आश्चर्यचकित हो गए कि तीन सालों में उस पेड़ पर मीठे, स्वादिष्ट और बड़े आकार के अनार लगने लगे। वह बिल्कुल वैसा ही पेड़ बन गया, जैसे मायके में था।