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महिलाओं की परवाह न करना: घर और परिवार में उनके योगदान को नजरअंदाज करना
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महिलाओं की परवाह न करना: घर और परिवार में उनके योगदान को नजरअंदाज करना

कई बार पुरुष यह कहते हैं, “घर में कौन-सा बड़ा काम होता है?” या “तुमसे दो काम भी ठीक से नहीं होते।” ये शब्द न केवल महिला की मेहनत को नजरअंदाज करते हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि समाज ने घर के कामों को एक विशेष नजरिए से देखा है। घर का काम, चाहे वह छोटे कपड़े धोने हों या बच्चे की देखभाल, एक महिला के लिए दिनभर की कठिन मेहनत और समर्पण का परिणाम होता है। इसके बावजूद, इन कामों को हल्का समझा जाता है। दूसरी ओर, पुरुष अपनी छोटी-सी जरूरत के लिए भी महिलाओं पर निर्भर रहते हैं, जैसे कपड़े संभालना या जूते ढूंढना। लेकिन जब महिलाओं से घर के काम में मदद की बात आती है, तो वे कहते हैं, “घर में कौन-सा बड़ा काम होता है?” और इनकी मेहनत को तुच्छ समझ लिया जाता है।

शादी के बाद, एक लड़की से यह उम्मीद की जाती है कि वह खुद को एक महिला के रूप में ढाल लेगी, और हर जिम्मेदारी को परिपक्वता के साथ निभाएगी। यह उम्मीद उसके संघर्ष को नकारती है, क्योंकि एक 21-22 साल की लड़की को नई जिम्मेदारियों का एहसास होने और उन्हें समझने में समय लगता है। घर, परिवार, और रिश्ते—इन सबकी नई परिभाषा शादी के बाद बनती है, और यह कभी भी आसान नहीं होता। इन सभी परिवर्तनों को समझने और अपनाने में वक्त लगता है। परंतु समाज और परिवार उससे यह अपेक्षाएँ रखते हैं कि वह तुरंत सब कुछ संभाल ले, जैसे घर, ऑफिस, और बच्चों की देखभाल। इसके बाद, यदि वह थकान या तनाव का सामना करती है और मदद की आवश्यकता महसूस करती है, तो उसे आलोचना का सामना करना पड़ता है।

गृहस्थी में बहु का जीवन और भी कठिन हो जाता है। समाज में एक बहु को लक्ष्मी का दर्जा दिया जाता है, लेकिन उसी बहु को उसी परिवार के लोग रुलाते भी हैं। यह विश्वास किया जाता है कि बहु को हर काम को सही और समय पर करना चाहिए, चाहे उसकी स्थिति कैसी भी हो। घर की सुख-शांति की जिम्मेदारी उस पर डाली जाती है, लेकिन जब वह थक जाती है या किसी चीज़ में असफल होती है तो उसे ताने दिए जाते हैं। “लक्ष्मी” का नाम देते हुए, उसे ही घर के हर काम में सबसे ज्यादा जिम्मेदारी दी जाती है, लेकिन उसके दर्द और संघर्ष को समझने के बजाय उसे लगातार दबाव दिया जाता है। घर, बच्चों और परिवार को अच्छे से संभालने की उम्मीद रखी जाती है, लेकिन उसे आराम का मौका नहीं दिया जाता।

शादी के बाद जब एक लड़की को बच्चे की देखभाल करनी पड़ती है, तो यह जिम्मेदारी उसके लिए और भी कठिन हो जाती है। हर दिन नई चुनौतियाँ और समस्याएं सामने आती हैं, लेकिन अगर वह थोड़ी देर भी आराम करना चाहती है, तो समाज उसे आलसी या काम से बचने वाली समझता है। कपड़े भले ही वॉशिंग मशीन में धुलते हों, लेकिन उन्हें सुखाना, तह करना और सही जगह पर रखना कोई आसान काम नहीं है। बच्चों का ध्यान रखना, घर की साफ-सफाई, और अन्य घर के कामों को सही समय पर और बिना किसी गड़बड़ी के पूरा करना मानसिक और शारीरिक दोनों रूपों में थकान का कारण बन सकता है। फिर भी, यह सब करने के बावजूद, अगर महिला को थोड़ा आराम करने का मन करता है तो उसे यह कहकर तिरस्कृत किया जाता है कि “तुमसे तो कोई काम ही नहीं होता।”

समाज में यह भी होता है कि जब किसी लड़की को घर की बहू बना दिया जाता है, तो यह माना जाता है कि वह तुरंत ही परिपक्व हो जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं होता। शादी के बाद एक लड़की को अपनी नई जिम्मेदारियों को समझने में समय लगता है। घर की देखभाल, बच्चों का ध्यान रखना, और पति के साथ संबंध बनाए रखना, यह सब बहुत कठिन होता है, और इसके लिए समय और संयम चाहिए। लेकिन, इसे हल्के में लिया जाता है। अगर महिला किसी कारणवश आराम करना चाहती है या थकावट महसूस करती है, तो उसे दोषी ठहराया जाता है।

इसलिए, समाज को यह समझने की जरूरत है कि एक महिला को हर समय परफेक्ट होने की उम्मीद न करें। उसे भी आराम की जरूरत होती है। शादी के बाद एक महिला को खुद को समझने और सब कुछ सीखने का समय चाहिए। समाज और परिवार को उसे सपोर्ट करना चाहिए, न कि उसे और ज्यादा दबाव डालना चाहिए।

समाज और परिवार को यह समझने की जरूरत है कि महिलाओं के कामों को हल्का समझना और उनकी मेहनत को नकारना गलत है। महिलाओं की यह जिम्मेदारी नहीं है कि वे हर समय सब कुछ सही तरीके से और बिना थके हुए करें। शादी के बाद एक लड़की को अपनी भूमिका को समझने के लिए समय चाहिए, और उस समय में उसे परिवार और समाज से समर्थन मिलना चाहिए। अगर वह किसी काम में गलती करती है, तो उसकी मदद की जानी चाहिए, न कि आलोचना की। महिलाएं न केवल शारीरिक मेहनत करती हैं, बल्कि मानसिक रूप से भी घर और परिवार की जिम्मेदारी निभाते हुए बहुत कुछ सहन करती हैं। यह जरूरी है कि हम उनकी मेहनत और संघर्ष को समझें और उनकी भावनाओं का सम्मान करें।

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