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The height of dreams and facing the reality: The true story of a struggle journey
लाइफस्टाइल

सपनों की ऊँचाई और वास्तविकता का सामना: एक संघर्षपूर्ण यात्रा की सच्ची कहानी

राघव सुबह 8 बजे के करीब ऑफिस के लिए तैयार होकर दरवाजे से निकलने ही वाला था कि उसकी पत्नी प्रिया ने पीछे से आवाज लगाई, “राघव! टिफिन में प्याज के साथ हरी मिर्च भी डाल दी है, दो रोटी और आलू-गोभी की सब्जी भी है।”
राघव ने बस सिर हिलाया और कुछ बुदबुदाते हुए बाहर निकल गया। पिछले कुछ दिनों से उसकी भूख लगभग गायब हो गई थी। दो रोटियों को भी खत्म करना उसके लिए मुश्किल हो रहा था। उसके चेहरे पर एक अजीब सी उदासी और उसके व्यवहार में एक असामान्य खामोशी थी। वह बातें भी ठीक से नहीं कर पा रहा था और प्रिया को यह सब बहुत खटक रहा था।
रात को 9 बजे, जब दोनों घर के छोटे से डाइनिंग टेबल पर बैठे थे, प्रिया ने फिर से बात छेड़ी, “राघव, क्या हो रहा है? तुम आजकल बिल्कुल भी ठीक से बात नहीं कर रहे हो। एक मोबाइल नंबर भी हमेशा बंद रहता है।”
राघव ने नजरें झुका लीं और बोला, “सब ठीक है प्रिया। प्राइवेट नौकरी है, काम का थोड़ा दबाव है बस।”
प्रिया ने उसे ज्यादा तंग नहीं किया। वह जानती थी कि जब तक राघव खुद से नहीं बताएगा, कोई भी कोशिश बेकार होगी। उसने माहौल को हल्का करने के लिए कहा, “ठीक है, चलो खाना खा लेते हैं।”
राघव और प्रिया की शादी को कुछ ही महीने हुए थे। दोनों नोएडा के सेक्टर 75 में एक आलीशान अपार्टमेंट में रहते थे। राघव ने एक नामी आईटी कंपनी में नौकरी पा ली थी और प्रिया भी अपने तरीके से गृहस्थी संभालने में लगी हुई थी। उनका अपार्टमेंट दसवें माले पर था, जहां से पूरी दिल्ली और गाजियाबाद का नजारा दिखाई देता था। एक समय था जब राघव इस अपार्टमेंट से देखे गए नजारों को स्वर्ग जैसा मानता था, लेकिन अब उसके लिए यह सब बेमानी हो चुका था।
राघव के मन में उथल-पुथल मची थी। पिछले तीन महीने से उसे तनख्वाह नहीं मिली थी और ऊपर से क्रेडिट कार्ड के बकाया भुगतान का भारी बोझ था। कोरोना महामारी के कारण ऑफिस भी बंद हो गया था, जिससे उसके लिए परिस्थितियां और भी कठिन हो गई थीं। वह सोचने लगा, “क्या यह मुसीबत अब ही आनी थी?”
राघव का परिवार वाराणसी में रहता था। वह अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। परिवार के पास चालीस बीघा जमीन थी, जो अब तक बिकी नहीं थी। घर में नौकर-चाकर भी थे और जीवन सुख-सुविधाओं से भरा हुआ था। उसके माता-पिता को उस पर गर्व था कि वह नोएडा में सेटल हो गया है, लेकिन वे यह नहीं जानते थे कि उनका बेटा किन परेशानियों का सामना कर रहा है।
एक दिन, सुबह की धूप बालकनी में फैली हुई थी और राघव और प्रिया वहां खड़े होकर आपस में बात कर रहे थे। राघव ने अपने दूसरे मोबाइल को चालू किया, जिसे उसने पिछले कुछ दिनों से बंद कर रखा था। जैसे ही मोबाइल चालू हुआ, लगातार कई कॉल्स आने लगीं। हर बार अलग-अलग नंबर से कॉल आ रही थी, कुछ लैंडलाइन से और कुछ मोबाइल से। राघव का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। आखिरकार, उसने एक कॉल उठाने की हिम्मत जुटाई।
“हेलो, कौन बोल रहा है?” राघव ने कांपती हुई आवाज में पूछा।
“मैं अभिषेक बोल रहा हूं, एसबीआई बैंक से।” दूसरी तरफ से तेज आवाज में गालियां देते हुए व्यक्ति ने कहा। “जब पैसे लेते वक्त मजा आ रहा था, तो अब क्यों नहीं चुका रहे?”
राघव ने घबराते हुए जवाब दिया, “सैलरी नहीं मिली है…अभी।”
अभिषेक ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, “तुम्हारे घर पर अभी पुलिस पहुंच रही है।” उसकी आवाज में धमकी की झलक साफ महसूस की जा सकती थी।
राघव का मन अब बिल्कुल टूट चुका था। उसने कल्पना की कि पुलिस उसके घर आ जाएगी, उसके पड़ोसी क्या कहेंगे, उसके माता-पिता को क्या जवाब देगा। एक-एक करके इन सवालों ने उसे अंदर से झकझोर कर रख दिया। उसे महसूस हुआ कि जैसे उसका जीवन अब खत्म होने की कगार पर है। उसे ऐसा लगा मानो यह सब खत्म करने का यही सही समय है—बालकनी से कूदकर आत्महत्या करना।
लेकिन तभी, प्रिया ने उसके कंधे पर हाथ रखा और मुस्कुराते हुए कहा, “चाय पीनी है?”
प्रिया ने कानून की पढ़ाई की थी और बच्चों को एलएलबी एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी कराती थी। वह इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थी कि राघव कुछ बड़ा छिपा रहा है। उसने उसका मोबाइल लिया और अगली कॉल खुद रिसीव की।
“हेलो, राघव से बात करनी है। आप कौन?” दूसरी तरफ से एक भारी आवाज आई।
“मैं उनकी पत्नी बोल रही हूं,” प्रिया ने शांत लेकिन दृढ़ आवाज में जवाब दिया।
अभिषेक ने फिर से गालियां देते हुए कहा, “सुजीत से बात करवाओ। पुलिस के साथ आ रहा हूं, पैसा लिया है तो चुकाओ।”
प्रिया ने अब तक पूरा माजरा समझ लिया था। उसने आवाज को थोड़ा तेज करते हुए कहा, “कौन से एसबीआई ब्रांच से बोल रहे हो?”
“मैं पुलिस के साथ आ रहा हूं,” अभिषेक ने और भी धमकाते हुए कहा।
प्रिया ने अब उसे खरी-खोटी सुनाने का मन बना लिया। “मैंने वकालत की है। मैं तुम्हारी नौकरी खा सकती हूं। अपने बाल-बच्चों के बारे में सोचो।”
अब अभिषेक की बारी थी घबराने की। उसने अपनी आवाज को थोड़ी धीमी करते हुए कहा, “मैं अपने सीनियर से बात करवाता हूं, मैडम।”
प्रिया ने उसे और धमकाते हुए कहा, “कहां से बोल रहे हो, एसबीआई ब्रांच का नाम बताओ। कोर्ट से पहले पुलिस इन्वॉल्व कैसे हो सकती है? तुम्हारी नौकरी खा सकती हूं।”
अब तक राघव भी प्रिया के पास आकर खड़ा हो चुका था। उसके चेहरे पर तनाव कम हो रहा था। वह महसूस कर रहा था कि उसे डरने की जरूरत नहीं है, उसकी पत्नी उसके साथ है।
अभिषेक ने कॉल कट कर दी, और फिर एक और नंबर से कॉल आई। इस बार राघव ने खुद फोन उठाया और शांत स्वर में बोला, “मैं बैंक के साथ सेटलमेंट करूंगा।”
प्रिया ने अपने पिता से एक लाख पचास हजार रुपये उधार लिए और बैंक से बात करके सेटलमेंट किया। राघव ने क्रेडिट कार्ड के ब्याज का भुगतान नहीं किया, लेकिन मूल राशि को किश्तों में चुकाने का समझौता किया। साथ ही, उसने आगे से क्रेडिट कार्ड का उपयोग न करने की कसम खाई।
कई दिनों बाद, राघव के चेहरे पर मुस्कान लौटी थी। प्रिया ने इस खुशी में घर पर रसगुल्ला और समोसा बनाया। सरसों के साग के साथ चावल, और आज दोनों ने आनंद के साथ डिनर किया।
रात में सोने से पहले, राघव ने प्रिया का ललाट चूमा और प्यार भरे स्वर में कहा, “आई लव यू… तुमने मुझे नया जीवन दान दिया।”

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