सुमन बार-बार बालकनी में आकर गली में झाँक रही थी। शाम के चार बजने को थे, लेकिन उसकी नज़रें अब भी मनोज का इंतजार कर रही थीं। सुबह जब मनोज घर से निकला था, तो कितने आत्मविश्वास के साथ उसने कहा था, “आधे दिन की छुट्टी लेकर लंच टाइम तक घर आ जाऊँगा।” अब तो शाम हो चुकी थी, लेकिन उसका कोई अता-पता नहीं था।
सुमन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। पाँच बजे तक किटी पार्टी में उसकी सभी सहेलियाँ पार्क में इकट्ठा हो जाएंगी। लेकिन सुमन के पास अभी तक न उसकी साड़ी आई थी, न ही कोई उपहार। वह सोच रही थी, कैसे तैयार होगी? दो साल हो गए थे इस शहर में रहते हुए, और हर करवाचौथ पर मनोज समय से पहले घर आ जाता था, मोगरे का गजरा, रजनीगंधा का गुलदस्ता और मीठा पान लिए हुए। लेकिन आज… आज क्या हुआ?
ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी सुमन की नजरें अपने ही अक्स से टकराईं, मानो वह खुद से सवाल कर रही हो, “क्या सच में नहीं जानतीं क्या हुआ?” उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था। मनोज की स्थिति और उसकी जिद दोनों ही सामने थीं। मनोज चाह कर भी महंगे उपहार नहीं ला सकता था, क्योंकि अभी तक फ्लैट के लोन की भारी किश्तें चल रही थीं। लेकिन उस वक्त उसे न जाने क्या हो गया था, जो उसने कह दिया था, “अगर निभा नहीं सकते तो शादी क्यों की मुझसे? मेरे मन का आज तक कुछ किया है क्या?”
मनोज की उदास आँखें याद आ रही थीं, जब उसने कहा था, “कुछ कोशिश करूँगा।” सुमन को अब अपनी कही बातें चुभ रही थीं।
फोन भी कई बार लगाया, लेकिन नेटवर्क क्षेत्र से बाहर बता रहा था। अचानक कॉल बेल की आवाज ने उसे वर्तमान में खींच लिया। दौड़कर दरवाजा खोला तो देखा, एक अजनबी हाथ में कुछ पैकेट्स लिए खड़ा था।
“मैडम, साहब ने भिजवाया है। उन्हें आने में देर होगी,” अजनबी ने कहा। सुमन ने झट से पैकेट्स ले लिए और दरवाजा बंद कर दिया। अंदर आकर पैकेट्स खोले तो देखा, एक सुंदर लाल रेशमी साड़ी और जगमग करता हीरों का सेट था।
“ओह, तो ये बात है!” सुमन के मन में ख्याल आया। सहेलियों की बातें कानों में गूंज रही थीं, “इन पतियों की जेब ढीली करवाने के लिए उँगली टेढ़ी करना जरूरी है, अपनी खुशी से कौन कुछ देता है?”
सुमन ने जल्दी-जल्दी तैयार होकर साड़ी पहनी और गहने पहने। ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी हुई तो खुद को देखकर मोहित हो गई। लेकिन कुछ कमी महसूस हो रही थी। “ओह, आज मोगरे का गजरा तो भेजा ही नहीं मनोज ने,” उसने सोचा। रजनीगंधा की खुशबू भी गायब थी, जो हर करवाचौथ पर घर को महकाए रखती थी। लेकिन सहेलियों को उपहार दिखाने की खुशी में उसने इन बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
साड़ी और गहनों को लेकर वह पार्क में पहुँची, जहाँ उसकी सहेलियाँ पहले से ही इकट्ठा थीं। सभी ने उसकी साड़ी और गहनों की तारीफ की। लेकिन सुमन का मन वहीं नहीं था। उसकी नजरें बार-बार मनोज को खोज रही थीं। शादी के बाद पहली बार वह अकेले करवाचौथ की पूजा कर रही थी। पूजा में उसका मन नहीं लग रहा था। उसे याद आ रहा था, कैसे हर साल मनोज उसके बालों में मोगरे का गजरा सजाता था और उसके चारों ओर घूम-घूमकर उसकी तैयारी में मदद करता था।
वर्मा आंटी की बातें याद आ रही थीं, “तुम दोनों के प्यार से जलती हैं सब।” सुमन को मनोज की बेहद याद आ रही थी। महंगी साड़ी और गहनों के ऊपर मनोज का हँसमुख और जिंदादिल व्यक्तित्व हावी हो रहा था। “क्या फायदा ऐसे उपहारों का, जब आपको यूँ अकेला रहना पड़े?” उसने खुद से पूछा।
पूजा खत्म करके जब वह घर लौटी, तो कदम भारी हो रहे थे। उसे यह भी चिंता हो रही थी कि मनोज ने इतने महंगे उपहार कैसे खरीदे होंगे। वह खुद को ही कोस रही थी, “कितनी बचकानी जिद थी मेरी।” घड़ी में देखा, साढ़े आठ बज रहे थे और मनोज का अब तक कोई अता-पता नहीं था।
घबराहट बढ़ती जा रही थी। इतने में कमरे में कुछ आवाज हुई और जानी-पहचानी रजनीगंधा की महक आई। उसने पलटकर देखा, मनोज हाथ में गुलदस्ता लिए मुस्कुरा रहा था।
“कहाँ थे अब तक? मेरी तो जान ही निकल गई। फोन भी नहीं लग रहा था,” सुमन ने उसे देखते ही सवालों की बौछार कर दी।
“साड़ी पसंद आई, और गहने?” मनोज ने मुस्कुराते हुए पूछा।
“तुम्हारे बिना कुछ अच्छा नहीं लगा। मुझे माफ कर दो, कितनी बचकानी जिद थी मेरी,” कहते हुए सुमन की नजरें शर्म से झुक गईं।
“बहुत सुंदर लग रही हो, नकली हीरे भी बिल्कुल असली लग रहे हैं तुम पर,” मनोज ने हंसते हुए कहा।
“क्या… नकली!” सुमन ने आश्चर्य से पूछा।
“हाँ, लेकिन तुम्हारे लिए असली तो यह है,” कहते हुए मनोज ने सुमन के जूड़े में मोगरे की कलियाँ सजाई।
गमकता हुआ गजरा, महकता हुआ रजनीगंधा और आकाश में चमकता चाँद, सब मिलकर सार्थक कर रहे थे एक और करवाचौथ। जिसमें दिखावे की कोई जगह नहीं थी, था तो बस प्यार का अहसास और जन्म-जन्मांतर तक साथ निभाने की ख्वाहिश।