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An example of true humanity: A child's struggle story and our responsibility
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सच्ची मानवता की मिसाल: एक बच्चे की संघर्षपूर्ण कहानी और हमारी जिम्मेदारी

रात का सन्नाटा था, और मैं अपने घर की ओर वापस लौट रहा था। जैसे ही मैं एक छोटे से घर के पास से गुजरा, अचानक उस घर के अंदर से एक बच्चे के रोने की दिल दहला देने वाली आवाज आई। आवाज में इतना दर्द और बेबसी थी कि मैं खुद को रोक नहीं पाया और उस घर के अंदर जाकर देखने का फैसला किया कि आखिर क्या हो रहा है।
दरवाजा खोलकर जब मैं अंदर गया, तो देखा कि एक मां अपने दस साल के बेटे को हल्के-हल्के मार रही थी, और खुद भी उसके साथ रो रही थी। यह दृश्य देखकर मेरा दिल कांप उठा। मैं आगे बढ़ा और मां से पूछा, “बहनजी, आप इस छोटे से बच्चे को क्यों मार रही हैं? और आप भी तो रो रही हैं। आखिर क्या हुआ है?”
मां ने आंसुओं से भरी आंखों के साथ उत्तर दिया, “भाई साहब, इस बच्चे के पिताजी भगवान को प्यारे हो गए हैं, और हम बहुत गरीब हैं। मैं लोगों के घरों में काम करके बड़ी मुश्किल से घर चलाती हूं और इसकी पढ़ाई का खर्चा उठाती हूं। लेकिन यह शरारती बच्चा रोज स्कूल से देर से आता है और घर लौटते समय भी इधर-उधर खेलता रहता है। रोजाना अपनी स्कूल की वर्दी गंदी कर लेता है और पढ़ाई में बिल्कुल भी ध्यान नहीं देता।”
मां की बात सुनकर मेरा दिल भर आया। मैंने उस बच्चे और उसकी मां को थोड़ा समझाया और फिर वहां से चला आया। लेकिन उनके दर्द ने मेरे दिल में एक गहरा असर छोड़ा।
कुछ दिन बीत गए, और एक दिन मैं सुबह-सुबह सब्जी मंडी गया। वहां अचानक मेरी नजर उसी दस साल के बच्चे पर पड़ी, जिसे मैंने कुछ दिनों पहले उसकी मां के हाथों पिटते देखा था। मैं उसे पहचान गया और चुपचाप उसका पीछा करने लगा। वह बच्चा मंडी में घूम रहा था और जो दुकानदार अपनी सब्जियां उठा रहे थे, उनके गिरने वाले सब्जियों के टुकड़ों को फौरन उठा कर अपनी झोली में डाल लेता था।
मैंने देखा कि वह बच्चा अपनी नन्ही सी दुकान लगाकर सब्जियां बेचने की कोशिश कर रहा था। लेकिन उसकी दुकान के सामने बैठे एक दुकानदार ने उसे वहां से धक्का मारकर भगा दिया। बच्चा चुपचाप अपनी सब्जियां इकठ्ठा करता रहा और फिर दूसरी जगह जाकर डरते-डरते दुकान लगाई। इस बार वहां के दुकानदार ने उसे कुछ नहीं कहा। बच्चा जल्दी-जल्दी अपनी सब्जियां बेचने लगा और फिर एक कपड़े की दुकान की ओर बढ़ गया।
उसने दुकान के मालिक को पैसे दिए और वहां से एक पैकेट उठाया। मैं अब भी उसके पीछे-पीछे था। बच्चा पैकेट लेकर सीधे अपने स्कूल की ओर चला गया। मैंने देखा कि वह आज भी एक घंटे देर से स्कूल पहुंचा था। जैसे ही वह स्कूल पहुंचा, उसने अपने शिक्षक के सामने जाकर हाथ जोड़ लिए, मानो मार खाने के लिए तैयार हो। लेकिन इस बार शिक्षक ने उसे डांटा नहीं, बल्कि गले लगा लिया और दोनों की आंखों में आंसू भर आए।
मैंने बच्चे से पूछा, “बेटा, यह जो तुमने पैकेट लिया है, उसमें क्या है?” बच्चा बोला, “अंकल, इसमें मेरी मां के लिए एक सूट है। मेरे पिताजी के जाने के बाद से मां बहुत मुश्किल से घर चलाती हैं। उनके पास पहनने के लिए अच्छे कपड़े भी नहीं हैं। मैंने जो भी पैसे कमाए, उनसे यह सूट खरीदा है।”
मेरी आंखें भीग गईं। मैंने बच्चे से पूछा, “तो अब तुम यह सूट मां को देकर खुश करोगे?” बच्चा धीरे से बोला, “नहीं अंकल, अभी नहीं। यह सूट मुझे दर्जी के पास देना है। मैंने सिलाई के पैसे जमा कर रखे हैं। मां को यह सूट सिले हुए ही दूंगा, ताकि उन्हें खुश कर सकूं।”
यह सुनकर मेरा दिल भर आया। मैंने महसूस किया कि हम कितनी आसानी से अपने छोटे-छोटे सुखों के लिए बड़े-बड़े खर्चे करते हैं, लेकिन हमारे आसपास के लोगों की ज़रूरतों का हमें अंदाज़ा तक नहीं होता।
इस घटना ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। उस बच्चे की मासूमियत और उसकी मजबूरियों ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या हमारे समाज में ऐसे गरीब और बेसहारा लोगों के लिए हमारी जिम्मेदारी नहीं बनती? क्या हम अपने आराम और सुख-सुविधाओं में से थोड़ा सा हिस्सा निकालकर इनकी मदद नहीं कर सकते?
अगर इस कहानी से आपको कुछ भी सीखने को मिला हो, तो कृपया इसे दूसरों के साथ साझा करें। हो सकता है, हमारी यह छोटी सी कोशिश किसी गरीब के घर की खुशियों की वजह बन जाए।
आइए, मिलकर उन जरूरतमंदों की मदद करें, जिनके लिए हमारी थोड़ी सी मदद भी उनके जीवन में बड़ी खुशी ला सकती है।

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