कल, जब मैं और मेरी बेटी सिया शहीद नगर से लौट रहे थे, तो मैंने उसे एक घर दिखाया। यह घर मेरी बचपन की सहपाठी प्रीति का था। प्रीति हमेशा स्कूल में दूसरे नंबर पर आती थी, जबकि पहले नंबर पर हमारे क्लासमेट विकास रहता था। बड़ा मजेदार संयोग था कि दोनों ने बड़े होकर एक-दूसरे से शादी कर ली और अब मुंबई में रहते हैं।
कुछ समय पहले, हमारे एक पुराने दोस्त को कैंसर हो गया और हमने व्हाट्सएप ग्रुप में उसकी मदद के लिए पैसे जुटाने की बात की। कई क्लासमेट्स ने दिल खोलकर मदद की, लेकिन प्रीति, विकास और उनके कुछ करीबियों ने न तो कोई आर्थिक सहायता दी, न ही कोई संदेश भेजा। यह जानकर सिया और मैं सोचने लगे कि बचपन की पुरानी नाराजगी अब भी क्यों बनी हुई है।
मैंने सिया से कहा, “बेटा, बचपन में सभी से गलतियाँ होती हैं। इसका मतलब यह नहीं कि हमें रिश्ते तोड़ देने चाहिए। इंसानियत सबसे बड़ी बात होती है।”
मैंने उसे समझाया, “क्या कोई अपनी दौलत या चीज़ें अपने साथ ले जाएगा? सबको इस दुनिया को छोड़कर जाना है। हो सकता है कि वे मुंबई की बड़ी एसयूवी में घूम रहे हों और मैं यहाँ साधारण जिंदगी जी रहा हूँ, लेकिन अंततः सबका यही हश्र होना है।”
मैंने सिया से कहा, “ज़िन्दगी की एक सच्चाई है कि जब कोई मुश्किल में होता है, तो बहुत से लोग मदद की जगह उसे और ताने मारते हैं। जो लोग अपने होते हैं, वही अक्सर सबसे ज्यादा चोट पहुंचाते हैं।”
“बुरा वक्त आने पर किसी बेगाने के सामने अपनी तकलीफ़ साझा कर लेना, भगवान के सामने रो लेना, पर अपनों के सामने नहीं। क्योंकि जब आप अपने दर्द को अपनों के सामने खोलते हैं, तो वे आपकी मदद करने के बजाय पुराने गिले-शिकवे निकाल कर आपको और भी तकलीफ में डाल सकते हैं।”
मैंने सिया से कहा, “जो लोग आपके अच्छे समय में आपका साथ नहीं देते, वे आपके बुरे समय में भी आपकी मदद नहीं करेंगे।”
“भले ही कोई आपके साथ बुरा बर्ताव करे, लेकिन अगर उनका बुरा वक्त आता है, तो उनके दर्द का मजाक मत उड़ाना। भले ही आप उनकी आर्थिक मदद न करें, लेकिन उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश मत करना।”
“उनकी हालत पहले से ही खराब है, उन्हें और ज्यादा चोट पहुंचाने का कोई फायदा नहीं। ऐसे वक्त में उन्हें माफ कर देना और कम से कम हाल-चाल पूछ लेना। यही इंसानियत है।”
“ज़िन्दगी में इंसानियत और दिल का बड़ा होना ही सबसे बड़ी पूंजी है।”
