जन्म से अंधे होने के बावजूद, राजा ने अपने राज्य को सुख-शांति से परिपूर्ण रखा था। इसका कारण था राजा की अच्छाई और परोपकारी स्वभाव। राजा ने अपने दरबार में और खास लोगों में उन लोगों को नियुक्त किया था, जो उसके जैसे अच्छे और दूसरों के भले की सोच रखने वाले थे।
एक दिन, राजा के राज्य में एक तपस्वी आए। राजा ने उनका आदरपूर्वक स्वागत किया और उन्हें बहुत सम्मान दिया। तपस्वी ने राजा को काजल की एक छोटी डिब्बी भेंट की और कहा, “राजन, इस डिब्बी में तुम्हारी दोनों आंखों की रोशनी वापस लाने के लिए पर्याप्त काजल है। इसे अपनी दोनों आंखों में आधा-आधा डालकर तुम इस सृष्टि को देख सकोगे।”
राजा काजल पाकर बहुत खुश हुआ। लेकिन काजल का उपयोग करते समय उसे एक पुराने मंत्री की याद आई, जिसे उसकी आंखों की कमजोरी के कारण सेवानिवृत्त कर दिया गया था। राजा तुरंत अपने कुछ आदमियों के साथ उस मंत्री के घर पहुंचा, जो अब पूरी तरह अंधा हो चुका था और एक कोने में बैठा था। राजा ने उसे तपस्वी और काजल के बारे में बताया और काजल उसके हाथ में दे दिया।
मंत्री ने काजल का आधा हिस्सा अपनी एक आंख में डाला और तुरंत ही उस आंख से सब कुछ साफ-साफ देख पाने लगा। लेकिन, इसके बाद उसने बचे हुए काजल को अपनी जीभ पर डाल लिया। राजा के आदमियों ने जब राजा को इस बारे में बताया तो राजा गुस्से में बोला, “तुमने क्या मूर्खता की? जब तुम दोनों आंखों की रोशनी पा सकते थे, तो तुमने आधे काजल को बर्बाद क्यों किया?”
मंत्री ने राजा को प्रणाम करते हुए उत्तर दिया, “महाराज, जब आप इतनी निस्वार्थता और समर्पण के साथ प्रजा का भला सोचते हैं, तो क्या मेरा कर्तव्य नहीं बनता कि मैं भी ऐसा ही करूँ? मैंने बचे हुए काजल को जीभ पर डालकर यह पता किया है कि यह किस वस्तु से बना है। अब मैं इसे बनाकर न केवल अपनी आंखों की दृष्टि प्राप्त कर सकता हूं, बल्कि आपकी और हजारों अन्य लोगों की आंखों की रोशनी भी वापस ला सकता हूं।”
राजा अपने मंत्री की समझदारी और परोपकारी सोच को जानकर अत्यंत खुश हुआ। इस घटना ने उसे यह सिखाया कि सच्ची अच्छाई और सेवा का अर्थ केवल स्वयं के भले से नहीं, बल्कि दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने की सोच से भी है।