रात के 9 बजे, समृद्धा के घर में एक तनावपूर्ण माहौल छाया हुआ था। उसकी सास चंद्रा और ननद नंदिता के साथ खड़ी समृद्धा की आंखों में डर और असहायता झलक रही थी। चंद्रा की आवाज में गुस्सा और दया की कमी थी, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे घर में ऐसा करने की? चार दिन भी नहीं हुए और तुम खुद को घर की मालकिन समझने लगीं?”
समृद्धा का पति, देवेश, जो उसकी उम्मीदों का प्रतीक था, अब उसके जीवन में दुख और संघर्ष का कारण बन चुका था। शादी के बाद, समृद्धा के लिए यह नया जीवन एक बुरे सपने की तरह हो गया था। उसकी उम्र सिर्फ 18 साल थी, जबकि देवेश 30 साल का था। समृद्धा के ससुराल में उसे कई कठोर नियमों का सामना करना पड़ा था, जो उसकी छोटी उम्र और अनुभव के लिए अत्यधिक कठिन थे।
चंद्रा ने समृद्धा के लिए नियमों की एक लंबी सूची बनाई थी, जिनका पालन उसके लिए अत्यंत कठिन था। हर दिन उसे सुबह 4 बजे उठकर पूरे घर की सफाई करनी होती थी, और सास के बनाए नियमों का पालन करते हुए अपने जीवन की दिनचर्या चलानी होती थी। छोटे-छोटे गलतियों पर उसे सजा दी जाती थी और नंदिता, जो खुद समृद्धा से 5 साल बड़ी थी, उसे भी बिना किसी संकोच के थप्पड़ मार देती थी।
एक दिन, जब देवेश घर पर नहीं आया और समृद्धा भूखी थी, उसने अपने लिए खाना बनाया। लेकिन जैसे ही चंद्रा ने उसे देखा, समृद्धा को सजा दी गई। समृद्धा को बाहर धकेल दिया गया और घर में ताला लगा दिया गया। देवेश के घर लौटने पर उसे भड़काया गया और गुस्से में आकर उसने समृद्धा को थप्पड़ मारा और खाना भी नहीं दिया।
समृद्धा की स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही थी। सुबह जब उसने सास और नंदिता को खाना दिया, तब उसने एक रोटी अपनी पल्लू में बांध ली और बिना सब्जी के खाने लगी। उसकी हालत देखकर उसकी प्रार्थना यही थी कि देवेश घर पर न आए।
जब देवेश घर आया, तो गुस्से में उसने समृद्धा को मारा और उसे बाहर भागने पर मजबूर कर दिया। हालांकि, समृद्धा को जल्दी ही घर में वापस लौटना पड़ा, लेकिन उसकी स्थिति की गंभीरता को देख कर नंदिता के ससुर ने यह कहकर मामला पुलिस तक पहुंचा दिया कि समृद्धा के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जा रहा है।
पुलिस के आने के बाद, सास, देवेश और नंदिता की सच्चाई सामने आई। पुलिस ने समृद्धा की स्थिति को समझा और दोषियों को गिरफ्तार कर लिया। समृद्धा को एक स्वयंसेवी संस्था द्वारा नया जीवन जीने का मौका मिला। उसने घरेलू हिंसा के खिलाफ जागरूकता फैलाने का संकल्प लिया और अपनी नई यात्रा शुरू की।
समृद्धा की कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चे साहस और आत्म-निर्णय के साथ हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं। उसने न केवल अपनी आवाज उठाई बल्कि अपनी स्थिति को बदलने के लिए कदम उठाए, जिससे उसने अपने जीवन को एक नई दिशा दी।