# कहानी_जो_दिल_को_छू_जाए
#स्वार्थ : जैसे को तैसा
सुधा जी की आदत थी कि सुबह उठने के बाद उन्हें गर्म पानी चाहिए होता था। इसलिए सुबह से दो बार उठकर , कमरे के बाहर निकल कर ,वह आ कर देख चुकी थी लेकिन अभी तक बहु वृंदा और बेटा पलाश उठे तक नहीं थे। जब तक उन लोगों में से कोई एक उठेगा नहीं तब तक उन्हें गर्म पानी मिलेगा नहीं।
बात ये नहीं थी कि सुधा जी गरम पानी खुद से कर नहीं सकती थी। असल बात यह थी कि बहु वृंदा रात को रसोई का काम खत्म कर ,न जाने क्यों, रसोई में ताला लगा देती थी। अब जब तक ताला खुलेगा नहीं सुधा जी को गर्म पानी मिलेगा कैसे?
आखिरकार घड़ी में जब 9:00 बज गए और सुधा जी से रहा नहीं गया तो उन्होंने हिम्मत करके बेटे के कमरे का दरवाजा खटखटाया। दो-तीन बार दरवाजा खटखटाने के बाद वृंदा की जगह पलाश ने आकर दरवाजा खोला और तमतमाते हुए बोला, ” क्या हैं मां? सुबह-सुबह परेशान कर रही हो?”
” बेटा मुझे गर्म पानी चाहिए था। रसोई में ताला लगा हुआ है। तुम रसोई का दरवाजा खोल दो ताकि मैं गर्म पानी कर सकूं।”
“एक दिन गर्म पानी के बगैर नहीं रह सकती हो क्या माँ? रोज तो वृंदा करके दे ही देती है ना! आज संडे था इसलिए सोचा था कि थोड़ा आराम से उठेंगे, पर आप भी ना?”
कहते-कहते पलाश अंदर कमरे में गया और वृंदा को जगाया।
वृंदा भी तिलमिलाते हुए उठी और चाबी लाकर सुधा जी के हाथ में रख दी,
” अब रसोई का दरवाजा आप ही खोल लीजिए। खुद के लिए गर्म पानी करो तो हमारे लिए भी चाय बना देना। जल्दी नींद खुलने से मेरा सिर दर्द करने लगा। अपनी बहू को सोता देख कर कभी कोई सास खुश हुई है क्या जो आप मुझे सोते देखकर खुश होंगी? रोज तो सुबह से ही मशीन बनी रहती हूं, कम से कम सन्डे को तो थोड़ा आराम कर लेने दें। आप सास लोगों का बस चले तो बस बहू को मशीन बनाकर रख दें।” वृंदा बड़बड़ाती हुई वापस जाकर पलंग पर लेट गयी।
आखिर सुधा जी ने जाकर रसोई का दरवाजा खोला। खुद के लिए भी पानी गर्म किया और बेटे बहू के लिए चाय बनाकर उन्हें देकर आयी। वह गर्म पानी लेकर अपने कमरे में आई ही थी कि पाँच साल का पोता मनु जाग गया। जगते ही वह बोला, ” दादी, मेरा दूध।”
उसे देख सुधा जी मुस्कुरा कर बोली, ” हां मेरे बच्चे अभी लेकर आयी।”
गरम पानी वहीं रखकर पहले वह मनु के लिए दूध गर्म करने गयी। अभी दूध गर्म कर ही रही थी कि इतने में पलाश की आवाज आयी, ” माॅं, ओ माॅं, कहां हो तुम? क्या आप भी सुबह-सुबह संभाल नहीं सकती इसे। आपको पता है ना कि वृंदा के सिर में दर्द हो रहा है?” कहते कहते पलाश भी रसोई में आ गया। साथ में मनु भी गोद में था।
पलाश को रसोई में देखते ही सुधा जी बोली, ” बेटा मैं तो मनु के लिए ही दूध गर्म करने आयी थी। मुझे नहीं पता ये कब तुम्हारे कमरे में चला गया?”
” तो ध्यान रखना चाहिए था ना आपको? आपको तो बस कोई न कोई काम का बहाना चाहिए। मानता हूं कि आप सास हो, पर बहू को भी तो इंसान समझो। वही है जो आपकी जिम्मेदारी निभा रही है। नहीं तो दूसरे बेटे बहू ने तो आपको रखने से ही मना कर दिया था?”
मनु को सुधा जी के पास छोड़कर ही पलाश वापस अपने कमरे में चला गया। सुधा जी देखती ही रह गयी। उनकी आंखों में आंसू आ गए। मन ही मन वह सोचने लगी कि मैं कुछ ना करने पर भी बदनाम हो रही हूं। ऐसी कौन सी जिम्मेदारी उठा ली है इन लोगों ने मेरी , जो मुझे इतना सुना जाते हैं? ऐसा सोच कर उन्होंने अपने आंसू पोछे और मनु और उसका दूध लेकर कमरे में आ गयी।
नाश्ते के समय पलाश ने वृंदा से कहा,
” तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है तो मैं माँ से कह कर नाश्ता बनवा लेता हूँ ताकि तुम आराम कर सको।”
” रहने दो, उनसे कुछ मत कहना। मैं नाश्ता खुद ही बना लूंगी।”
” अरे पर तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है।”
” नहीं नहीं, मैं खुद ही नाश्ता बना लूंगी। उनका क्या भरोसा? कौन सा सामान उठाकर अपने दूसरे बेटे बहु को देकर आ जाए? अक्सर रसोई से सामान कम हो जाता है। मुझे तो पूरा यकीन है माँ जी ही सामान की हेराफेरी करती है और अपने उन बेटे बहू को देकर आ जाती है।” ऐसा बोलकर वृंदा रसोई में जाकर नाश्ता तैयार करने लगी।
वृंदा को रसोई में नाश्ता तैयार करते देखकर पलाश गुस्से में आकर सुधा जी से बोला, ” देख लो मॉं, ये सब आपके कारण है। उसकी तबीयत खराब है पर फिर भी वह नाश्ता तैयार कर रही है। आपकी इन्हीं हरकतों के कारण हम परेशान हो चुके हैं। पता नहीं भगवान भी हमें चैन से कब रहने देगा?”
सुधा जी बेटे की बात सुनकर हैरान रह गयी। वह अपने कमरे में चुपचाप शांति पूर्वक बैठ गयी। उनकी आंखों से झर-झर आंसू बहे जा रहे थे। मन ही मन वह सोच रही थी कि क्या इसी दिन के लिए इन बेटों को जन्म दिया था? जब शादी के सात साल बाद मंदिर-मंदिर माथा टेकने के बाद उन्हें दो जुड़वा बेटे हुए थे तो कितने खुश हुए थे घर में सब लोग?
यार, दोस्त, रिश्तेदार सभी लोगों ने कितनी बधाईयां दी थी। सासू माॅं तो बलैया लिए जा रही थी, ” अरे! दो-दो बेटों की माॅं बनी है। बुढ़ापे में बैठकर राज करेगी राज।”
कुछ साल बाद जब पति का देहांत हो गया तब भी सुधा जी ने हिम्मत करके अपनी दोनों बेटे पलाश और सुहास को संभाला। कितनी परेशानी झेलकर भी इन लोगों को पढ़ाया लिखाया, इतना बड़ा किया। दोनों की शादी करायी पर उसके बाद सब कुछ बदल गया।
दोनों बहुओं की आपस में बनी नहीं। इस कारण बेटों में भी झगड़े होने लगे। आखिरकार दोनों बेटे अलग हो गए। सुधा जी के पति ने दो मंजिला मकान बनवाया था। उसी में ऊपरी मंजिल पर सुहास अपने पत्नी के साथ रहने लगा और नीचे वाले फ्लोर पर पलाश अपनी पत्नी और सुधा जी के साथ रहने लगा।
सुधा जी को रखने को लेकर भी दोनों भाइयों में बहस हुई थी। सुहास ने साफ मना कर दिया था कि वो माॅं को अपने पास नहीं रखेगा तो मजबूरी में पलाश को ही अपने पास सुधा जी को रखना पड़ा था। सच कहूं तो उस समय की (बेटे के जन्म के समय ) की बधाईयाँ आज कानों में चुभ रही थी।
थोड़ी देर बाद पलाश कमरे में आया और पोहे की प्लेट सुधा जी के सामने टेबल पर रखते हुए या यूँ कहिए पटकते हुए बोला,
” लो, नाश्ता कर लो आखिर एक ही बहू को ही परेशान करते जाओ। दूसरी से कोई लेना-देना ही नहीं।”
सुधा जी को पलाश की बात बहुत बुरी लग रही थी। उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे कि पोहे की प्लेट उन्हें चिढ़ा रही है। ऐसा खाना भी किस काम का जो तिरस्कार करके दिया जाए। सुधा जी ने उस नाश्ते की प्लेट को हाथ भी नहीं लगाया। आखिरकार सुधा जी ने काफी सोचा। और सोच समझकर वो एक निर्णय पर पहुंची।
शाम को सुहास अपनी पत्नी के साथ बाहर कहीं घूमने जा रहा था। पलाश और वृंदा भी बाहर खड़े हुए थे कि तभी एक प्रॉपर्टी ब्रोकर उनके घर पर आया। उसे देखकर चारों बेटे बहू हैरान रह गए। उसने आते ही पूछा,” क्या मैं सुधा जी से मिल सकता हूं?”
” आपको सुधा जी से क्या काम है? हमें बताइए, हम उनके बेटे हैं” पलाश ने कहा।
” जी मुझे सुधा जी ने फोन करके बुलाया है”
सब एक दूसरे को हैरानी से देखने लगे। इतने में सुधा जी अंदर से आयी।
” क्या आप ही सुधा जी हैं?”
” जी मैं ही सुधा हूं। आप..”
” जी आपने सुबह फोन किया था मकान को बेचने की बात करने के लिए.”
” अरे हां, मैंने ही आपको फोन किया था”
इससे पहले सुधा जी आगे कुछ कहती, पलाश बोला, ” कौन सा मकान बेच रही हो आप? हमसे पूछे बगैर आप ये निर्णय कैसे ले सकती हो?”
” माँ मकान बेच दोगी तो हम कहां जाएंगे” सुहास ने भी कहा।
” क्या तुम लोगों ने कभी मेरे बारे में सोचा था कि मैं कहां रहूंगी? कैसे रहूंगी? सुनाने में तुम लोग तो मुझे कोई कसर नहीं छोड़ते हो। मकान तो मेरे पति का बनाया हुआ है। मेरे नाम पर है। फिर किस हक से मकान में हिस्सा मांग रहे हो?”
” पर माँ जी, समस्या क्या है? आप मकान को बेच दोगी तो फिर आप उन पैसों का करोगी क्या?” वृंदा ने कहा।
” सोच रही हूं कि वापस गांव चली जाऊँ। जहां से जिंदगी की शुरुआत हुई थी, वहीं जाकर अपनी जिंदगी के अंतिम दिन देखूँ। इसलिए मैं मकान बेचकर गांव में ही जमीन खरीद रही हूं। और वही रहूंगी।”
” फिर हम लोगों का क्या होगा?” छोटी बहू ने कहा।
” मुझे नहीं पता। तुम लोगों के तो हाथ पैर चलते हैं और उससे भी तेज जबान चलती है। अपने आप कमाओ और अपनी प्रॉपर्टी बनाओ। बाकी मुझे नहीं पता।”
” माँ तुम इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती हो?” पलाश और सुहास एक साथ बोले।
” माॅं को महानता का चोला मत पहनाओ। जैसे बेटे स्वार्थी हो सकते हैं, वैसे ही माॅं भी स्वार्थी हो सकती है और अगर बेटे तुम जैसे हो तो माँ को ऐसी ही होनी चाहिए। मैं यह मकान बेच रही हूं और यह मेरा अंतिम निर्णय है। तुम लोग अपना बंदोबस्त कहीं और देख लो।”कह कर सुधा जी उस ब्रोकर को मकान दिखाने चल दी।
एक महीने बाद वो मकान बिक गया और सुधा जी गांव में एक मकान लेकर वहीं रहने लगी। खाली समय में वह वहाँ बच्चों को पढ़ाती थी और गांव के शांत वातावरण में अपनी जिंदगी जीती थी।