नंदलाल पेपर पढ़ रहे थे जब उनकी पत्नी कविता ने शिकायत की, “देखो, कब से मना रही हूँ लेकिन अमित खाना नहीं खा रहा।” नंदलाल ने पेपर साइड पर रखा और अमित को पास बुलाया। उन्होंने बेटे से पूछा, “बेटा, खाना क्यों नहीं खा रहे हो? मेरे अच्छे बेटे हो, मेरी बात मानते हो ना? चलो, जल्दी से खाना खा लो।”
अमित ने आंसुओं के साथ कहा, “पिताजी, मैं खाना खा लूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है!” नंदलाल ने कहा, “नहीं बच्चे, मैं तुम्हें महंगी चीज नहीं खरीदूंगा। बस खाना खाओ, जिद मत करो।” अमित ने कहा, “पापा, मुझे महंगी चीज नहीं चाहिए। बस, मैं अपने सारे बाल कटवाना चाहता हूँ।”
यह सुनकर नंदलाल और कविता चकित हो गए। वे समझाने लगे कि बाल नहीं कटवाते, लेकिन अमित की जिद के आगे उन्हें हार माननी पड़ी। अगले दिन जब नंदलाल अमित को स्कूल छोड़ने गए, तो बिना बालों के देखकर सभी बच्चे चिढ़ा रहे थे। तभी एक महिला ने नंदलाल को धन्यवाद देते हुए कहा, “आपके बेटे ने मेरे बेटे को स्कूल आने के लिए प्रेरित किया। मेरे बेटे को कैंसर के कारण बाल खो गए थे और वह स्कूल जाने में हिचकिचा रहा था। आपके बेटे ने उसे समझाया और अपने बाल कटवाकर उसे प्रोत्साहित किया।”
महिला की बात सुनकर नंदलाल को समझ में आया कि अमित ने दूसरों को अच्छा महसूस कराने के लिए अपने बाल कटवाए थे। इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि यदि हम किसी की परवाह करते हैं और उन्हें अच्छा महसूस कराना चाहते हैं, तो हम उनके लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।
हमें अपनी असफलताओं के लिए दूसरों को दोष देने के बजाय, अपनी सोच और दृष्टिकोण को बदलना चाहिए। अगर हम अच्छा सोचें और मदद का हाथ बढ़ाएं, तो हम जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।