1 अप्रैल 1929 को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के नौतन हतियागढ़ गांव में जन्मे रामचंद्र विद्यार्थी पुत्र बाबूलाल प्रजापति ने महज 13 साल की उम्र में देश के लिए अपने प्राणों की बलि दी। महात्मा गांधी के ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन की प्रेरणा से, युवा रामचंद्र ने 14 अगस्त 1942 को देवरिया कचहरी पर तिरंगा फहरा दिया, और अंग्रेजों की गोलियों का शिकार बनकर शहीद हो गए।
उनकी शहादत ने साबित कर दिया कि देशभक्ति की कोई उम्र नहीं होती। उनका पार्थिव शरीर तिरंगे में लपेट कर अंतिम संस्कार किया गया। 1949 में, प्रधानमंत्री नेहरू ने उनके परिवार से मिलकर शहीद की याद में एक चांदी की थाली और गिलास भेंट किया।
रामचंद्र विद्यार्थी की कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची देशभक्ति और बलिदान की भावना हर दिल में होनी चाहिए। उनकी वीरता और बलिदान के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए, आइए हम सब उनके आदर्शों को अपनाएं और देशभक्ति की मशाल जलाए रखें।