सब बॉलीवुड के हीरो हीरोइन के बारे मैं जानना पसंद करते हैं बल्कि इन्हे कोई नही जानता की स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर, जिन्हें वीर सावरकर के नाम से जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन महानायकों में से एक हैं जिनकी जीवनगाथा त्याग, संघर्ष और देशभक्ति की प्रेरणा देती है। उनका जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भगूर गांव में हुआ था। एक शिक्षित और धार्मिक ब्राह्मण परिवार में पले-बढ़े सावरकर ने बचपन से ही देशभक्ति की भावना को अपने जीवन का ध्येय बना लिया था।
सावरकर का प्रारंभिक जीवन साधारण था, लेकिन उनकी शिक्षा ने उन्हें असाधारण बना दिया। उन्होंने नासिक में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और बाद में पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में दाखिला लिया। यहां उनका संपर्क लोकमान्य तिलक और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों से हुआ, जिन्होंने उनके मन में स्वतंत्रता संग्राम के प्रति जुनून पैदा किया। 1906 में वे इंग्लैंड गए, जहाँ उन्होंने कानून की पढ़ाई की। लेकिन कानून के साथ-साथ, उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्थन जुटाने का भी कार्य शुरू कर दिया।
इंग्लैंड में रहते हुए, वीर सावरकर ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम पर एक शोध पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक था “द फर्स्ट वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस”। इस पुस्तक में उन्होंने 1857 के विद्रोह को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम बताया, जो अंग्रेजों के खिलाफ संगठित विद्रोह था। इस पुस्तक ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए नए जोश और उमंग का संचार किया।
उनकी वीरता और संकल्प की असली परीक्षा तब शुरू हुई जब उन्हें ब्रिटिश सरकार ने 1910 में गिरफ्तार कर लिया और उन्हें काला पानी की सजा सुनाई गई।
सावरकर को अंडमान और निकोबार की कुख्यात सेलुलर जेल में भेजा गया, जिसे ‘काला पानी’ के नाम से जाना जाता है। यह जेल ब्रिटिश हुकूमत का वह अत्याचारपूर्ण स्थल था, जहाँ स्वतंत्रता सेनानियों को अमानवीय यातनाएं दी जाती थीं। सावरकर को यहाँ 14 साल तक कठोर कारावास की सजा भुगतनी पड़ी।
इस दौरान, सावरकर को लोहे की मोटी बेड़ियों में जकड़कर रखा जाता था। उन्हें दिन में 12-14 घंटे कोल्हू में बैल की तरह जोता जाता था। इस कठोर श्रम में उनका शरीर टूट जाता, लेकिन उनकी आत्मा और स्वतंत्रता के प्रति जज़्बा अडिग रहा। उन्हें महीने में सिर्फ एक बार नहाने की अनुमति थी, और भोजन के नाम पर सिर्फ सड़ी-गली दाल और बासी रोटी मिलती थी।
सिर्फ शारीरिक यातनाएं ही नहीं, सावरकर को मानसिक यातनाएं भी झेलनी पड़ीं। उन्हें एक अंधेरे कोठरी में बंद रखा जाता था, जहाँ दिन और रात का पता ही नहीं चलता था। उन्हें अपने परिवार और प्रियजनों से मिलने की भी अनुमति नहीं थी। इस अलगाव में भी उन्होंने अपने मनोबल को टूटने नहीं दिया। सावरकर ने अपने विचारों और कविताओं को जेल की दीवारों पर लिखकर अमर कर दिया, ताकि आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा मिल सके।
सेलुलर जेल की भयावहता को झेलते हुए भी सावरकर ने हार नहीं मानी। उन्होंने जेल में ही स्वतंत्रता सेनानियों को संगठित किया और उन्हें प्रेरित किया कि वे अपनी आजादी के लिए संघर्ष करते रहें। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की क्रूरता का सामना करते हुए भी अपने आदर्शों को नहीं छोड़ा और अपने देश के प्रति असीम प्रेम को बनाए रखा।
वीर सावरकर की यह यातनाएं उनकी महानता को और भी बढ़ा देती हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया कि शारीरिक और मानसिक यातनाएं भी एक सच्चे देशभक्त के संकल्प को नहीं तोड़ सकतीं। काला पानी की यातनाओं ने सावरकर को और भी मजबूत बना दिया और उनकी यह कहानी हमें यह सिखाती है कि स्वतंत्रता की कीमत कितनी बड़ी होती है।
वीर सावरकर का यह बलिदान हमें हमेशा याद दिलाएगा कि स्वतंत्रता और स्वाभिमान के लिए कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। उनके त्याग और संघर्ष के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाएं और अपने देश की सेवा में समर्पित रहें। जय हिंद!
स्वातंत्र्यवीर सावरकर की जीवनगाथा हर भारतीय के लिए प्रेरणास्रोत है, विशेषकर उन लोगों के लिए जो अपने देश के इतिहास और संस्कृति से प्रेम करते हैं। उनका त्याग, संघर्ष और उनके विचार हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगे।
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