एक गांव में पंचों की सभा लगी हुई थी। इन पंचों में उस गांव के पांच लोग पंच के पद पर नियुक्त थे। इन पांचों में एक मुल्लाजी भी थे जो पंच के पद पर विराजमान थे। लेकिन इनकी सोच बड़ी ही रूढ़िवादी और पुराने तरह की थी। यह किसी भी नीची जाति के लोगों को सीधे नजरों से नहीं देखते थे। अगर वह उनके सामने आ जाते तो वह अपने मुंह पर कोई कपड़ा रख लेते थे या अपना मुंह फेर लेते थे।
इन 5 पंचों में एक पंच नीची जाति से भी था लेकिन वह काफी समझदार और सुलझी हुई बुद्धि का व्यक्ति था। उन्होंने अपने काबिलियत के दम पर पंच का पद हासिल किया था। उनका नाम #राधेश्याम था। उनसे मुल्लाजी ज्यादा ही चिढ़ते थे।
सभा चल रही थी। 4 पंच अपनी जगह पर आकर विराजमान हो गए थे लेकिन राधेश्याम को आने में थोड़ी देर हो गई थी। राधेश्याम जल्दी-जल्दी सभा में आए और उन्होंने देखा कि उन्हें बैठने के लिए सिर्फ एक जगह खाली थी जो कि मुल्लाजी के बाजू में थी। तो राधेश्याम जाकर मुल्लाजी के बाजू में बैठ गए।
मुल्लाजी ने जैसे ही देखा कि राधेश्याम उनके पास आ गया है तो उन्होंने एक कपड़ा अपने मुंह पर डाल दिया। भरी सभा में उन्हें ऐसा करते देख किसी को भी अच्छा नहीं लगा। बाकी के पंचों ने उन्हें समझाया कि उन्हें इस तरह से राधेश्याम का अपमान नहीं करना चाहिए।
तो मुल्लाजी ने विरोध करते हुए कहा कि अगर मैं इस नीची जाति के व्यक्ति को सीधे नजरों से देख लूंगा तो मुझे #पाप लगेगा। नीची जाति के लोगों के पूर्वजों ने बहुत ज्यादा पाप किया था इसलिए उन्हें देखने से देखने वाले को भी पाप लगता है और एक मान्यता के अनुसार इन्हें देखने वाले को अगले जन्म में #गधा बनना पड़ता है।
सभी ने उन्हें समझाने की लाख कोशिश की लेकिन वह नहीं माने। राधेश्याम तब तो कुछ नहीं बोला लेकिन उसने मन ही मन ठान लिया कि वक्त आने पर वह मुल्लाजी को करारा जवाब जरूर देंगे। इस बात को कई दिन बीत गए।
सभी यह देखकर हैरान थे। सब को लगा कि शायद राधेश्याम का दिमाग खराब हो गया है। राधेश्याम जब उनके पास वापस लौटा तो सब ने उसे पूछा कि वह गधों को प्रणाम क्यों कर रहा था?
राधेश्याम ने शांति से जवाब दिया कि मेरे पूर्वजों को देखने की वजह से मुल्लाजी के पूर्वज गधे हो गए हैं। मैं मुल्लाजी के पूर्वजों को सम्मान दे रहा था इसलिए मैंने उनके पैर छुए!
सभी पंच राधेश्याम की बात सुनकर हंसने लगे सिवाय मुल्लाजी के। मुल्लाजी ने काफी सोचा और उन्हें राधेश्याम की व्यंग से की गई बात समझ में आ गई। उस दिन के बाद मुल्लाजी ने किसी को भी देखकर अपनी नज़रें नहीं घुमाई और किसी से बुरा व्यवहार भी नहीं किया।