शुद्ध प्रेम एक ऐसी अनुभूति है जो किसी रासायनिक संयोजन या तत्वों के मिश्रण से अधिक है। यह एक गहरी भावना है, जो ओस की नमी, फूलों की खुशबू, वसंत की ठंडक, आकाश की विशालता, समुद्र की गहराई, पत्तों का कुरकुरापन, पहाड़ों की ऊंचाई और सितारों की चमक में समाहित होती है। यह एहसास उन सभी तत्वों का एक असीमित मिलाजुला है जो एक लंबी खामोशी में घुलकर एक अद्वितीय भावना का निर्माण करते हैं।
शुद्ध प्रेम की अनुभूति किसी धर्मग्रंथ या काव्य से नहीं होती, न ही यह किसी यातायात नियम का पालन करती है। यह कभी वन-वे में बहती है तो कभी नो इंट्री में घुस जाती है। कभी यह उल्टी दिशा में आती है तो कभी विपरीत दिशा में, और जब यह शांति और आत्मीयता से दूरी बनाकर प्रवेश करती है, तो यह सोने की चमक से भी अधिक कीमती हो जाती है।
भावना नदी की तरह बहती है, उसकी धारा कभी सीधी नहीं होती। यह घुमावदार, ऊपर-नीचे होती है। दिल के दरवाजे पर कोई घंटी नहीं होती, लेकिन जब भावना धीरे-धीरे प्रवेश करती है, तो यह स्वाभाविक रूप से महसूस होती है। भले ही घर की खिड़कियां और दरवाजे बंद हों, लेकिन प्रेम की किरणें चुपचाप भीतर प्रवेश करती हैं, जैसे रवि की किरणें बिना किसी अवरोध के प्रवेश करती हैं।