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mother's last letter
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माँ की अंतिम चिट्ठी

रात के 12:00 बज चुके थे। ममता बार-बार दरवाजे की तरफ देखती और घड़ी की ओर नजर डालती। उसकी आंखों में और चेहरे पर चिंता साफ नजर आ रही थी। थोड़ी ही देर में दरवाजे की घंटी बजी। ममता ने तेजी से दरवाजा खोला और सामने बेटे रोहन और बहू सविता को देखकर पूछा, “इतनी देर क्यों हो गई? मैं कब से तुम्हारी राह देख रही थी।”
“मां, मैं अब छोटा नहीं हूँ, तुम मेरी चिंता मत किया करो,” रोहन ने घर के अंदर प्रवेश करते हुए कहा।
“बेटा, कितना भी बड़ा हो जाए, मां के लिए छोटा ही रहता है। चलो, छोड़ो, हाथ-पैर धो लो, मैं तुम्हारे लिए खाना लगा देती हूं,” ममता ने दरवाजा बंद करते हुए कहा।
“माजी, हम बाहर से खाना खाकर आए हैं, आप खा लीजिए, हम सोने जा रहे हैं,” बहू सविता ने कहा।
“लेकिन मैंने तो तुम्हारी पसंद की खीर बनाई है, आओ थोड़ी-थोड़ी खा लो,” ममता ने कहा।
“मां, तुझे एक बार में समझ में नहीं आता क्या? तेरी बहू ने कहा ना, हम बाहर से खाना खाकर आए हैं, क्यों परेशान करती है? जा तू खीर खा ले और सो जा, हमें भी शांति से सोने दे,” सविता ने कहा।
ममता अकेले कैसे खीर खा सकती थी? और बिना खाए नींद कैसे आ सकती थी? बेटे के इंतजार में उसने भी कुछ नहीं खाया था। वह किचन में गई, एक ग्लास पानी पिया और अपने कमरे में चली गई।
सुबह 10:00 बजे रोहन की आंखें खुली। बाजू में सविता अभी भी सो रही थी। रोहन हॉल में आया तो लैपटॉप के पास रखी एक चिट्ठी पर उसकी नजर पड़ी। चिट्ठी खोलकर पढ़ते ही वह समझ गया कि यह चिट्ठी किसकी हो सकती है।
“मेरे प्यारे बेटे,
तू सोच रहा होगा कि एक ही घर में रहते हुए यह चिट्ठी क्यों? हां, बता सकती थी अगर तू मेरी बातें सुनना चाहता। जैसे एक्सप्रेस गाड़ी की तरह तू आता है और कुछ ही पलों में निकल जाता है।
खैर, कल तुम्हारा जन्मदिन था, इसलिए मैंने खीर बनाई थी। सोचा कम से कम आज के दिन साथ में बैठकर खाना खाएंगे। मगर मैं यह कह गई थी कि मेरा बेटा बड़ा हो चुका है! तू अपने दोस्तों के साथ पार्टी करके खाना खाकर आया, चलो मुझे खुशी हुई।
मेरी दवाइयां खत्म हो गई हैं, मैंने कुछ दिन पहले तुझे दवाई की एक चिट्ठी दी थी। अगर वक्त मिले तो वह दवाई मुझे लाकर देना, मुझे थोड़ी राहत हो जाएगी।
रोहन को याद आया कि चार-पांच दिन पहले मां ने एक दवाई की चिट्ठी दी थी। उसने अपने ऑफिस के बैग में जाकर उस चिट्ठी को तलाशा और देखा कि उसमें लिखा था: ‘मुझे ऐसी दवाई लाकर दो जिससे मैं अपने बेटे को भुला सकूं!’
रोहन को एहसास हुआ कि उससे बहुत बड़ी गलती हो गई है। उसकी आंखें नम हो गईं। वह तुरंत अपने मां के कमरे की ओर दौड़ा। सबसे पहले उठ जाने वाली मां आज क्यों नहीं उठी थी देखकर उसे आश्चर्य हुआ। उसने मां को उठाने की काफी कोशिश की लेकिन मां एक गहरी नींद में सो चुकी थी। रोहन के पास फूट-फूट कर रोने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा।
दोस्तों, यह कहने की जरूरत नहीं है कि मां-बाप जीवन में कितने मूल्यवान हैं। उनके रहते हुए ही उनकी सेवा करो, उनसे प्यार करो। वह चले जाएंगे तो कुछ नहीं कर पाओगे।”

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