एक शाम, राकेश जी अपने घर लौटे और उनके मन में एक अजीब सी बेचैनी थी। उनके बेटे आर्यन का फोन आज भी नहीं आया था, और यह सोच-सोचकर उनका दिल डूबता जा रहा था। क्या रिजल्ट आज भी नहीं आया? या फिर रिजल्ट आ गया और वह अच्छा नहीं रहा? बेटे का फोन नहीं आना उनके मन में अनगिनत सवाल खड़े कर रहा था। उन्होंने चिंतित मन से घर का दरवाजा खोला।
अंदर जाकर उन्होंने देखा कि उनकी पत्नी, सुरभि, आँगन में चुपचाप बैठी थी, चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आ रही थीं। राकेश जी के कदम जैसे रुक से गए।
“क्या बात है, सुरभि? बेटे ने फोन किया था?” राकेश जी ने धीमी आवाज में पूछा।
“हाँ, किया था,” सुरभि ने संक्षिप्त उत्तर दिया, उनकी आवाज में गहराई थी।
“रिजल्ट निकल गया उसका?” राकेश जी ने थोड़ी हिचकिचाहट के साथ पूछा।
“हाँ, रिजल्ट निकल गया,” सुरभि ने फिर वही संक्षिप्त जवाब दिया, लेकिन इस बार उनकी आंखों में नमी साफ नजर आ रही थी।
राकेश जी ने गहरी सांस ली। उन्होंने आगे कुछ पूछने की हिम्मत नहीं की। उन्हें सब कुछ समझ में आ गया। अगर आर्यन पास हुआ होता, तो सुरभि खुशी-खुशी सब कुछ बता देती। अब बेटे की असफलता का कारण वह कैसे पूछें?
“आर्यन कैसे है? विचलित तो होगा?” राकेश जी ने अपनी चिंता व्यक्त की।
“हाँ, बहुत परेशान है,” सुरभि की आवाज में दर्द था। “लेकिन उससे ज्यादा वह आपकी चिंता में डूबा हुआ है। कह रहा था, ‘पापा का सपना तोड़ दिया मैंने। वे कितनी मेहनत से मुझे कोचिंग भेजते रहे, और मैं…।'”
राकेश जी का दिल भर आया। “सुरभि, उसने ऐसा क्यों कहा? मैं उसके लिए कुछ नहीं, बल्कि उसके भविष्य के लिए चिंतित हूँ। और क्या कहा उसने?”
सुरभि की आंखों से आँसू बहने लगे, “कह रहा था, ‘मन करता है कि पंखे से लटक जाऊं।'”
राकेश जी का चेहरा सफेद पड़ गया। वह घबराते हुए तुरंत फोन की ओर दौड़े और बेटे का नंबर डायल किया। कई बार कोशिश करने के बाद आखिरकार फोन लग गया।
“आर्यन, बेटा! ये क्या बातें कर रहा था तू माँ से? पंखे से लटकने जैसी बातें कर रहा है?” राकेश जी की आवाज में घबराहट थी।
“कुछ नहीं पापा,” आर्यन की आवाज में थकावट और उदासी थी।
“और तेरी आवाज को क्या हुआ? तू तो हमेशा हँसता-खिलखिलाता रहता था, और आज इस तरह…!”
“पापा, मुझे माफ कर दीजिए,” आर्यन ने धीरे से कहा, जैसे वह खुद को दोषी मान रहा हो।
“माफ? किस बात की माफी? क्या तूने कोई चोरी की है या किसी का नुकसान किया है?” राकेश जी ने कड़क आवाज में पूछा।
“नहीं पापा, मैंने किसी का बुरा नहीं किया। बस, फिर से फेल हो गया।” आर्यन की आवाज में गहरा दर्द था।
“तो क्या हुआ? फेल होना कोई पाप है क्या?” राकेश जी ने प्यार से कहा।
“आपका सपना टूट गया, पापा।” आर्यन की आवाज कांप रही थी।
“बेटा, वो मेरा सपना नहीं, तेरा सपना था। मैं तो बस तेरी मदद कर रहा था।” राकेश जी ने शांत स्वर में समझाया।
“फिर भी, मैंने आपकी इज्जत मिट्टी में मिला दी,” आर्यन ने दुखी स्वर में कहा।
“बिल्कुल नहीं, मेरे बेटे। तूने कोई गुनाह नहीं किया। असफलता से केवल एक चीज तय होती है कि तू इस बार कामयाब नहीं हुआ, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तुझे कभी कामयाबी नहीं मिलेगी।” राकेश जी की आवाज में सच्चाई और दृढ़ता थी।
“लेकिन पापा, समाज में फेल होने का क्या अर्थ होता है, यह तो आप जानते ही हैं ना?” आर्यन ने हिचकिचाते हुए पूछा।
“अरे, समाज की चिंता छोड़। असफलता केवल तुझे इंजीनियर बनने से रोक सकती है, लेकिन तुझे इंसान बनने से कोई नहीं रोक सकता।” राकेश जी ने हंसते हुए कहा।
“आपकी बात सही है, पापा, लेकिन मैंने तो कुछ और ही सोचा था।” आर्यन ने आह भरते हुए कहा।
“क्या सोचा था, बेटे?” राकेश जी ने धीरे से पूछा।
“यही कि मैं कुछ ऐसा करूँ जिससे आप मुझ पर गर्व करेंगे, समाज में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी।” आर्यन की आवाज में मायूसी थी।
“बेटे, मुझे तुझ पर गर्व है। तेरा सच्चा दिल और ईमानदारी ही मेरी सबसे बड़ी संपत्ति है। समाज की प्रतिष्ठा और दिखावे के लिए जिंदगी को मत जियो।” राकेश जी ने प्यार भरे शब्दों में कहा।
“फिर भी, पापा…!” आर्यन कुछ कहने ही वाला था कि राकेश जी ने उसे बीच में ही रोक दिया, “अरे, क्या फिर भी! क्या हमारे पुरखों ने कभी बड़ी पदवियों पर काम किया? फिर भी, क्या हमने कभी अपनी गरिमा खोई? नहीं ना!”
“मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, पापा,” आर्यन ने उदास स्वर में कहा।
“कुछ समझना भी नहीं है, बेटे। तू बस इन सब बातों को भुला दे और मन लगाकर पढ़ाई कर। भगवान ने जो तेरे भाग्य में लिखा है, वह होगा। और हाँ, दिवाली की छुट्टी में घर आ, हम साथ मिलकर सब काम करेंगे, दीये जलाएंगे, और खूब मजे करेंगे।” राकेश जी ने मुस्कुराते हुए कहा।
“सच पापा?” आर्यन की आवाज में अब थोड़ी राहत महसूस हो रही थी।
“हाँ, बेटा। इस बार तुझे खेत भी दिखाऊंगा। वहां मोर और हिरन देखने को मिलेंगे। मधुमक्खियों का छत्ता भी है, शहद निकालेंगे। और तितलियों के पीछे भी भागेंगे, देखना, बहुत मजा आएगा।” राकेश जी ने चुटकी लेते हुए कहा।
आर्यन हंस पड़ा, “क्या पापा! आप अब भी बच्चों जैसी बातें करते हैं।”
राकेश जी ने हंसते हुए जवाब दिया, “अच्छा! अब मेरा ही बेटा मुझे सयानापन सिखा रहा है?”
“तो सीख ही लीजिए ना, पापा! क्या हर्ज है?” आर्यन ने चुटकी ली।
“सयानापन अपने साथ चिंता और संताप लाता है, बेटे। इसलिए मैं कहता हूँ, अपनी मासूमियत को बचाए रख। यही जीने का सबसे बेहतरीन तरीका है।” राकेश जी की आवाज में फिर से वही सच्चाई और स्नेह था।
दूसरी तरफ, आर्यन ने चैन की लंबी सांस ली। जीवन के असली अर्थ को समझकर उसके चेहरे पर मुस्कान लौट आई थी। पंखे से लटकने का ख्याल अब एक भयावह सपना बनकर रह गया था। वह जान चुका था कि जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि केवल कामयाबी नहीं, बल्कि एक अच्छा इंसान बनना है।
सोशल मीडिया पर एक कहानी साझा की गई थी, लेकिन इसके पीछे छिपा संदेश था – असफलता जीवन का अंत नहीं, बल्कि एक नया आरंभ है।