सुबह के सात बज रहे थे। शिवराम जी रोज की तरह जल्दी उठकर तैयार हो गए थे। उनकी दिनचर्या में हमेशा की तरह नहाना-धोना और पूजा करना शामिल था। अब 80 साल की उम्र में, शरीर भले ही कमजोर हो चुका था, लेकिन दिल और मन से वे अब भी उतने ही चैतन्य थे। पर आज उन्हें कुछ अलग महसूस हो रहा था। रीना, उनकी बहू, रोज की तरह चाय और नाश्ता लेकर नहीं आई थी। शिवराम जी ने सोचा कि शायद बहू की तबीयत ठीक नहीं होगी, और वे खुद ही रसोई की ओर बढ़ गए।
रसोई में जाकर देखा, तो रीना वहाँ खड़ी थी, लेकिन चेहरे पर गहरी उदासी थी। शिवराम जी ने हल्के स्वर में पूछा, “बेटा, क्या हुआ? तू ठीक तो है?” रीना ने बिना कुछ कहे नज़रें झुका लीं और धीरे से बोली, “कुछ नहीं, पापा जी। बस आज कुछ काम ज़्यादा है।”
शिवराम जी ने समझा कि शायद घर के कामों का बोझ है, लेकिन असली वजह से वे अनजान थे। दरअसल, कल रात जब बहू रीना और बेटा अभिषेक अपने कमरे में बातें कर रहे थे, तो रीना ने अभिषेक से शिकायत की थी, “पापा जी के कारण घर के काम और बढ़ जाते हैं। रोज बाथरूम में पानी गिरा देते हैं, कई बार तो खाना भी गिरा देते हैं। मैं अकेले सब कैसे संभालूं?”
अभिषेक ने कुछ देर चुप रहने के बाद कहा, “रीना, मैं जानता हूँ कि पापा जी उम्रदराज हो चुके हैं। लेकिन ये वही पापा हैं जिन्होंने मेरे बचपन में मेरी हर गलती को माफ किया, जब मैं गिरकर खुद को चोटिल कर लेता था, पापा ही थे जो मुझे गोद में उठाकर दवा लगाते थे।”
रीना ने कुछ जवाब नहीं दिया, लेकिन उसका दिल थोड़ा पिघलने लगा।
आज सुबह, शिवराम जी ने जब रीना के उदास चेहरे को देखा, तो वे खुद को दोषी महसूस करने लगे। वे वापस अपने कमरे में चले गए और सोचने लगे, “अब उम्र के इस पड़ाव पर शायद मैं भार बन गया हूँ।” तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। अभिषेक कमरे में आया और बोला, “पापा, चलिए आपके लिए नाश्ता लगा दिया है।”
शिवराम जी ने सिर झुकाकर कहा, “नहीं बेटा, मैं खुद कर लूंगा। तुम्हारी माँ के बाद अब मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहता।”
अभिषेक ने धीरे से शिवराम जी का हाथ पकड़ा और बोला, “पापा, आप कभी बोझ नहीं थे, और ना होंगे। आपने मेरे लिए कितना कुछ किया है। अब आपकी सेवा करने का वक्त हमारा है।”
शिवराम जी की आँखों से आँसू छलक आए। अभिषेक ने उन्हें सहारा देकर कुर्सी पर बैठाया और नाश्ता उनके सामने रख दिया। “आज से आप मेरी जिम्मेदारी हैं, और मैं आपके लिए हमेशा रहूंगा,” अभिषेक ने मुस्कुराते हुए कहा।
उसी वक्त रीना भी आ गई। वह शिवराम जी के पास आकर बोली, “पापा जी, मुझसे गलती हो गई। मुझे आपकी तकलीफ समझनी चाहिए थी। मैं भी आपकी देखभाल में अभिषेक का साथ दूंगी।”
शिवराम जी की आँखों में फिर आँसू आ गए, लेकिन इस बार ये आँसू खुशी के थे। उन्होंने दोनों के सिर पर हाथ रखा और कहा, “भगवान तुम्हें खूब खुश रखे। आज मैं तुम्हारी माँ को जरूर बताऊंगा कि हमारे बच्चे कितने समझदार और प्यारे हैं।”
रीना और अभिषेक दोनों ने शिवराम जी को अपने बीच पाकर खुद को धन्य महसूस किया।