विराज नाम का एक धनी व्यक्ति अपनी पत्नी सारिका के साथ सुखी जीवन जी रहा था। जीवन के हर पहलू में सम्पन्नता का आनंद उठाते हुए, वह समाज में एक प्रतिष्ठित स्थान रखता था। पर जैसे-जैसे समय बीता, व्यापार में घाटा होता गया, और धीरे-धीरे वह कंगाल हो गया। उसका कभी भरापूरा खजाना अब खाली हो गया था। सारिका ने एक दिन उससे कहा, “सम्पन्नता के दिनों में राजा से आपका अच्छा संबंध था। क्या इस कठिन समय में वे हमारी मदद नहीं कर सकते, जैसे श्रीकृष्ण ने सुदामा की की थी?”
विराज ने थोड़ा संकोच किया, लेकिन पत्नी के कहने पर वह राजा के पास मदद मांगने के लिए चला गया।
जब वह राजमहल पहुंचा, तो द्वारपाल ने भीतर संदेश भिजवाया कि एक निर्धन व्यक्ति आया है, जो राजा को अपना मित्र बताता है और उनसे मिलना चाहता है। राजा, जो अपने मित्रों की बड़ी इज्जत करते थे, ने संदेश सुनते ही दौड़कर बाहर आए। उन्होंने अपने पुराने मित्र को इस हालत में देखा तो बहुत दुखी हो गए।
राजा ने उसे सहानुभूतिपूर्ण स्वर में कहा, “मित्र, बताओ, मैं तुम्हारी किस प्रकार सहायता कर सकता हूँ?”
विराज ने धीरे-धीरे अपना हाल सुनाया, तो राजा ने कहा, “चिंता मत करो, मैं तुम्हें अपने रत्नों के खजाने में ले चलता हूँ। वहां से जी भरकर रत्न अपनी जेब में भर लो, लेकिन ध्यान रखना, तुम्हें केवल 3 घंटे का समय मिलेगा। यदि उससे अधिक समय लोगे तो तुम्हें खाली हाथ लौटना पड़ेगा।”
विराज खुश हो गया और बोला, “ठीक है, चलो।”
वह राजा के साथ रत्नों के खजाने में गया। वहां के चकाचौंध से भरे प्रकाश ने उसकी आँखों को हैरान कर दिया। खजाना रत्नों से भरा हुआ था। वह जितनी जल्दी हो सके, अपनी जेब में रत्न भरने लगा। तभी उसकी नजर दरवाजे के पास रखे छोटे-छोटे चांदी के खिलौनों पर पड़ी, जो बटन दबाने पर तरह-तरह के खेल दिखा रहे थे। उसने सोचा, “अभी तो समय है, थोड़ी देर इन खिलौनों से खेल लेता हूँ।”
वह खिलौनों में इतना मग्न हो गया कि समय का ध्यान ही नहीं रहा। अचानक घंटी बजी, जो समय सीमा समाप्त होने का संकेत था। उसकी समझ में आया कि वह खेल में उलझकर अपना सारा समय बर्बाद कर चुका था और उसे खाली हाथ ही बाहर आना पड़ा।
राजा ने मुस्कुराते हुए कहा, “मित्र, निराश मत हो। चलो, मैं तुम्हें अपने स्वर्ण के खजाने में ले चलता हूँ। वहाँ से जितना सोना चाहो, अपने थैले में भरकर ले जाओ। लेकिन समय सीमा का ध्यान रखना।”
विराज ने फिर से उत्साहित होकर कहा, “ठीक है, चलो।”
स्वर्ण का खजाना सुनहरे प्रकाश से चमक रहा था। विराज ने सोना भरना शुरू किया, लेकिन तभी उसकी नजर एक सुंदर घोड़े पर पड़ी, जो सोने की काठी से सजा हुआ था। यह वही घोड़ा था जिस पर वह राजा के साथ घूमा करता था। वह अपने पुराने दिनों की याद में खो गया और कुछ समय के लिए उस घोड़े पर सवारी करने बैठ गया।
वह अपनी पुरानी यादों में इतना खो गया कि फिर से समय सीमा समाप्त हो गई और घंटी बज उठी। वह निराश होकर फिर खाली हाथ बाहर आ गया।
राजा ने कहा, “कोई बात नहीं, निराश मत हो। चलो, मैं तुम्हें अपने रजत के खजाने में ले चलता हूँ। वहाँ से चाँदी भर लो, लेकिन समय सीमा का ध्यान रखना।”
विराज ने सोचा कि इस बार वह समय का ध्यान रखेगा। वह तेजी से चाँदी भरने लगा। तभी उसकी नजर दरवाजे के पास लगे एक चमकते चाँदी के छल्ले पर पड़ी। उसके पास लिखा था, “इस छल्ले को छूने पर उलझन हो सकती है। अगर उलझ गए तो दोनों हाथों से सुलझाने की कोशिश मत करना।”
विराज ने सोचा, “अरे, ऐसी कोई उलझन तो नहीं दिख रही। इसे देखता हूँ, शायद कीमती होगा।”
जैसे ही उसने छल्ले को छुआ, वह उसमें उलझ गया। पहले उसने एक हाथ से सुलझाने की कोशिश की, फिर दोनों हाथों से। पर छल्ला सुलझने के बजाय और उलझ गया। उसी समय घंटी बजी, और उसे फिर से खाली हाथ बाहर निकलना पड़ा।
राजा ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “कोई बात नहीं मित्र, अभी भी तांबे का खजाना बाकी है। चलो, वहाँ से जी भरकर तांबा भर लो, लेकिन समय सीमा का ध्यान रखना।”
विराज ने इस बार सोचा, “अब तो कुछ भी हो, मैं खाली हाथ नहीं जाऊंगा।” उसने तांबे के कई बोरे भर लिए, लेकिन बोरे भरते-भरते उसकी कमर में दर्द होने लगा। उसने इधर-उधर देखा तो एक पलंग बिछा हुआ दिखाई दिया। उसने सोचा कि थोड़ी देर सुस्ता लेता हूँ, फिर आगे काम करूंगा।
जैसे ही वह पलंग पर लेटा, उसे गहरी नींद आ गई। जब उसकी नींद खुली, तब तक समय समाप्त हो चुका था। एक बार फिर वह खाली हाथ बाहर आ गया।
राजा ने इस बार गहरी नज़र से उसे देखा और कहा, “मित्र, तुमने अपनी समय सीमा को समझा ही नहीं। तुम्हें बार-बार मौके दिए, लेकिन तुम हर बार किसी न किसी व्यर्थ के आकर्षण में फंसते चले गए।”
मोरल ऑफ द स्टोरी:
जीवन में भी हम कुछ ऐसा ही करते हैं। बचपन के खिलौने, जवानी के आकर्षण और गृहस्थी की उलझनों में समय का ध्यान नहीं रखते। बुढ़ापे में जब शरीर जवाब देने लगता है, तब पलंग पर आराम ही एकमात्र विकल्प रह जाता है। और जब अंत समय की घंटी बजती है, तो हमें खाली हाथ ही इस संसार से विदा लेना पड़ता है।