शादी की सुहागरात पर बैठी एक स्त्री का पति जब भोजन का थाल लेकर अंदर आया तो पूरा कमरा स्वादिष्ट भोजन की खुशबू से भर गया। स्त्री ने अपने पति से निवेदन किया, “मांजी को भी यहीं बुला लेते हैं, तो हम तीनों साथ बैठकर भोजन करेंगे।”
पति ने कहा, “छोड़ो उन्हें, वह खाकर सो गई होंगी। आओ, हम साथ में भोजन करते हैं।”
स्त्री ने फिर कहा, “नहीं, मैंने उन्हें खाते हुए नहीं देखा है।”
पति ने जवाब दिया, “क्यों तुम ज़िद कर रही हो? शादी के कार्यों से थक गई होंगी, इसलिए सो गई होंगी। नींद टूटेगी तो खा लेंगी।”
पति ने उसकी बात को अनसुना कर दिया !
पति की इस बात को अनसुना करने पर उसी वक्त उस स्त्री ने तलाक ले लिया!
कुछ समय बाद, उस स्त्री के पति ने दूसरी शादी कर ली। दोनों अलग-अलग अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गए और खुशहाल गृहस्थी बसा ली। उस स्त्री के दो बच्चे हुए, जो बहुत ही सुशील और आज्ञाकारी थे। समय बीतता गया और कई वर्ष बाद, एक दिन वह औरत अपने बेटों के साथ यात्रा पर निकली।
यात्रा के दौरान, वे एक स्थान पर भोजन के लिए रुके। बेटे ने भोजन परोसा और मां से साथ बैठकर खाने का अनुरोध किया। उसी समय, उस स्त्री की नजर एक फटेहाल वृद्ध पुरुष पर पड़ी, जो उस स्त्री के भोजन और बेटों की ओर बेहद कातर नजरों से देख रहा था। उस स्त्री को उस पर दया आ गई। उसने अपने बेटों से कहा, “हम सब मिलकर भोजन करेंगे। पहले उस वृद्ध को भोजन करवा दें।”
बेटों ने उस वृद्ध को नहलाया, उसे साफ कपड़े पहनाए, और उसे मां के सामने लाकर बैठा दिया। जब वह वृद्ध सामने आया, तो वह स्त्री उसे देखकर आश्चर्यचकित रह गई। वह वृद्ध और कोई नहीं, बल्कि उसका पहला पति था, जिससे उसने शादी की पहली रात को ही तलाक ले लिया था।
उसने वृद्ध से पूछा, “क्या हो गया, जो तुम्हारी हालत इतनी दयनीय हो गई?”
वृद्ध ने नजरें झुका कर उत्तर दिया, “सब कुछ होते हुए भी मेरे बच्चे मुझे भोजन नहीं देते। मेरा तिरस्कार करते हैं और मुझे घर से बाहर निकाल दिया।”
स्त्री ने उसे सख्त आवाज में कहा, “इस बात का अंदाजा मुझे सुहागरात को ही हो गया था, जब तुमने अपनी बूढ़ी मां को भोजन कराने की बजाय, स्वादिष्ट भोजन का थाल लेकर मेरे कमरे में आ गए थे। मेरे बार-बार कहने के बावजूद भी तुमने अपनी मां का तिरस्कार किया। उसी का फल आज तुम भोग रहे हो। माता-पिता के साथ तुम्हारा व्यवहार एक ऐसी पुस्तक है जिसे लिखते तो तुम हो, लेकिन तुम्हारी संतान उसे पढ़कर सुनाती है। जैसा व्यवहार हम अपने बुजुर्गों के साथ करेंगे, वैसा ही हमारा भविष्य होगा। याद रखना, मां-बाप नाराज तो ईश्वर नाराज।”