रचना हमेशा अपने घर की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाती आई थी। स्वादिष्ट खाना बनाती थी, घर के काम सलीके से करती थी, लेकिन उसकी सास माया और पति अर्जुन कभी उसकी तारीफ नहीं करते थे। सास का गुस्सा और पति की चुप्पी उसे बहुत तकलीफ देती थी। परदेस में पढ़ाई कर रहे छोटे देवर कबीर से समय-समय पर मिलने वाले फोन उसे खुश कर देते थे, लेकिन जब कबीर घर आया और एक लड़की से शादी करने की बात की, तो रचना को एक नई चुनौती का सामना करना पड़ा।
कबीर की शादी के लिए माया ने तुरंत रचना को दोषी ठहराया, लेकिन कबीर ने अपनी पसंद की लड़की से शादी करने का निर्णय लिया। इस बारे में अर्जुन को बताने पर वह भी राजी हो गया और माया भी मान गई। रचना को खुशी हुई कि एक नई बहन आएगी, लेकिन उसे थोड़ी चिंता भी थी कि नई बहन कितनी जल्दी घर में समा पाएगी।
नेहा, रचना की छोटी देवरानी, घर में आई और पूरी जिम्मेदारी संभाल ली। माया ने नेहा की बहुत तारीफ की और उसे मां जैसा प्यार दिया। रचना को यह देखकर दुख हुआ कि उसने भी वही काम किया था लेकिन उसकी सराहना कभी नहीं हुई। धीरे-धीरे माया ने रचना के साथ भी अच्छा बर्ताव करना शुरू किया और घर का माहौल हंसता-खेलता हो गया।
नेहा और रचना की दोस्ती ने घर का माहौल बदल दिया। माया ने दोनों बहनों को समान प्यार दिया और अर्जुन भी रचना के साथ अच्छा व्यवहार करने लगा। नेहा ने रचना को आश्वस्त किया कि वह अपने पति के साथ परदेस जाएगी, लेकिन बीच-बीच में आती रहेगी और शनिवार-रविवार की छुट्टियों में रचना के पास रहेगी। रचना ने अपनी देवरानी को गले लगाया और उन्हें अपने पति के साथ जाने की खुशी दी।
नेहा की बातें सुनकर रचना को एहसास हुआ कि देवरानी-जेठानी का रिश्ता बहनों से कम नहीं होता। दो अलग-अलग घरों से आई ये लड़कियां जब एक साथ रहती हैं, तो एक-दूसरे की आदतों को अपनाते हुए एक नई शुरुआत करती हैं। रचना और नेहा की दोस्ती इस बात का प्रमाण है कि प्यार और समझदारी से रिश्ते मजबूत होते हैं और हर किसी की जिंदगी में खुशियाँ आती हैं।