एक संयुक्त सुखी परिवार था। संयुक्त होते हुए भी सुखी इसलिए क्योंकि इस परिवार के दोनों भाइयों की पत्नियां यानी की देवरानी और जेठानी आपस में बड़े प्यार से रहती थीं।
आधे घंटे बाद जेठानी के दरवाजे पर दस्तक हुई। जेठानी ने ऊंची आवाज में पूछा: कौन है? बाहर से आवाज आई: दीदी मैं हूं, दरवाजा खोलो! जेठानी ने जोर से दरवाजा खोला और गुस्से से बोली: अभी तो मेरा मुंह ना देखने की कसमें खाकर गई थी, अब क्या हो गया?
फिर क्या था, जेठानी ने रोते हुए अपनी देवरानी को गले से लगा लिया। दोनों ने एक साथ बैठकर आराम से, प्यार से चाय पी!