एग्जाम खत्म होते ही कृष्णा भागकर घर गया। उसने अपने स्कूल बैग को मेज़ पर फेंक दिया। आज उसका मूड बहुत अच्छा था। उसका आज का पेपर बहुत अच्छा रहा। आते ही वह कल के लिए योजना बना रहा था। मां ने बाहर आकर उसे पानी पिलाया।
“पेपर कैसा गया?” “बहुत अच्छा गया पेपर, मां।” मां ने उसे एक गिलास छाछ पीने को दी। कृष्णा ने झट से सारा छास पी लिया। “मां, मैं नहाने के लिए नदी पर जा रहा हूं।” “अरे, यह नहाने का समय है क्या? तुम्हारे पिता को पता चला तो तुम्हारी पिटाई करेंगे।”
“मां, प्लीज पापा को कुछ मत बताना।” और वह तौलिया और कपड़ों का थैला लेकर मां की बात को अनसुना कर बाहर चला गया। सूरज सिर के ऊपर आ चुका था। चलते-चलते वह रवि के घर आया।
कृष्णा, रवि, और रोहित एक ही कक्षा में थे। एक-दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त थे। वे पहले ही तय कर चुके थे, रवि तैयार था। रोहित भी आ गया और तीनों नदी की तरफ चले गए।
अब नदी के पास कोई नहीं था। कपड़े धोने वाली औरतें कब की घर जा चुकी थीं। आज सुबह से माहौल बदल रहा था। आसमान बादलों से अटा पड़ा था। इससे गर्मी थोड़ी कम हो रही थी। नदी किनारे पहुँचते ही शर्ट निकाल कर फेंक दी गई। हाफ पेंट पर ही नदी में छलांग मार दी गई। ठंडे पानी की ठंडक शरीर पर पड़ते ही उनका मन प्रसन्न हो गया!
वे एक-दूसरे पर पानी फेंककर खेलने लगे। खेलते-खेलते स्कूल में आज की घटना के बारे में बात करने लगे। रवि अपने जेब में कागज लेकर गया था। “क्या तुम पकड़े नहीं गए?” “अरे क्या बताऊं, मैं उस मनोज की मूर्खता के कारण लगभग पकड़ा ही जाता! लेकिन बच गया भगवान की कृपा से।”
“हमें बताना क्या हुआ था?” “मनोज ने नकल करने के लिए मेरा पेपर ही ले लिया था। मस्त लिखने लगा, उतने में परीक्षक वहां आ गए और मनोज के पास खड़े हो गए। इतना अच्छा हुआ कि उसे पहले से ही परीक्षक का आभास हो गया था और उसने मेरा पेपर अपने पेपर के नीचे रख दिया। पर मुझे डर के मारे पसीना छूट रहा था। तभी बाहर से एक प्यून पूरक की गठरी लेकर आया और उसी वक्त मैंने अपना पेपर उससे ले लिया।” यह सब सुनकर वे दोनों हंसने लगे।
सच में बचपन कितना सुहाना होता है। वह गपशप, बचपन के खेल व्यक्ति को उसके जीवन के अंतिम क्षण तक ऊर्जा देते हैं। इसलिए हर किसी के दिल में एक छोटा बच्चा छुपा होता है।
अब उनका खेल जोरों पर था। तभी वहां एक छोटा लड़का आया। वह कब से इन तीनों की मस्ती देख रहा था। उसे भी पानी में खेलने की इच्छा हुई और वह भी नदी में कूद गया! वह उन तीनों को नहीं जानता था। वह उनके गांव का भी नहीं था। इसलिए उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि वह क्या कर रहा है। जब ये तीनों तैरने में व्यस्त थे।
वह छोटा लड़का अकेला खेलने लगा और अचानक उसका पैर फिसल गया और वह पानी के साथ बहने लगा! उसे तैरना नहीं आ रहा था। अचानक कृष्णा का ध्यान उसकी तरफ गया। तब तक वह ज्यादा दूर चला गया था। बहते पानी का बहाव ज्यादा था फिर वह तीनों खेल छोड़कर उसकी तरफ दौड़े।
कृष्णा अपनी पूरी जान लगाकर उसके पास पहुंचा लेकिन पानी के तेज बहाव से बने गड्ढे के पास भंवर बन गया था। कृष्णा भी उस लड़के के पीछे-पीछे गड्ढे में चला गया पर गड्ढे में वह लड़का और ज्यादा नीचे जाने लगा! कृष्णा ने उसे खींचने का प्रयास किया, पर उसकी शक्ति पर्याप्त नहीं थी। तभी पीछे से रवि और रोहित आ गए। तीनों ने अपनी ताकत से पकड़ा पर, गड्ढे से बाहर नहीं निकाल पा रहे थे।
काफी समय बीत जाने के बाद भी कृष्णा खाना खाने के लिए घर नहीं आया, तब उसकी मां ने घबराकर कृष्णा के पिता को बताया। “अजी सुनते हो, कृष्णा नदी में तैरने गया है लेकिन बहुत समय हो गया है और वह अभी तक घर नहीं आया।” कृष्णा के पिता बहुत गुस्से में थे। लेकिन गुस्सा बाजू में रखकर उन्होंने तुरंत शर्ट पहनकर नदी की ओर चलने लगे। तभी इतनी जल्दी में जाते देख गांव के जवान लड़के भी नदी के पास गए और गड्ढे के पास इन 4 बच्चों को डूबते देखा। वह दृश्य देखकर वे सब दंग रह गए!
साथ में आए तीन-चार जवान लड़कों ने गड्ढे में छलांग लगाई। वे सभी स्ट्रिप स्विमर थे। सभी ने मिलकर 4 बच्चों को सकुशल बाहर निकाल लिया। उनको उल्टा सुलाकर पेट का सारा पानी बाहर निकाला। बच्चे थकान के कारण बेहोश पड़े थे। उन्हें जल्दी से अस्पताल लेकर गए।
उनका इलाज हुआ। थोड़ी देर बाद गांव के लोगों को राहत की सांस आई। कृष्णा के पिता को बहुत गुस्सा आ रहा था। लेकिन अपने बेटे के इस कारनामे को देखकर उनको गर्व महसूस हुआ। वे सभी गांव में हनुमान जी के मंदिर के पास जमा हो गये, फिर कृष्णा के पिता ने सभी को चाय पिलाई।
उस लड़के का भी पता चला वह एक बकरी चराने वाले का बेटा था। रात को सभी गांव वालों ने, सरपंच जी ने और सभी बकरी चराने वाले ने कृष्णा, रवि, और रोहित का सत्कार किया। इस प्रकार से बुरा वक्त आया था पर काल नहीं। सभी बच्चे बच गए, यह हनुमान जी की ही कृपा थी।
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