आधी रात के समय, एक माँ की नींद खुल गई। उसने देखा कि उसका बेटा अपने बिस्तर पर तिरछा लेटा हुआ है, जबकि वह आमतौर पर बहू के कमरे में सोया करता है। यह देखकर माँ का दिल आशंकाओं से भर गया। उसने धीरे से अपने बेटे के सर के नीचे एक तकिया रखा और उसके माथे को सहलाते हुए कहा, “अब तुम कुछ परेशान से लग रहे हो, बेटा।”
बेटा करवट बदलते हुए माँ के करीब आ गया। माँ ने उसे किसी तरह से लिपटने की कोशिश की, लेकिन बेटा ने उन सवालों का कोई जवाब नहीं दिया। माँ ने बिस्तर से उठकर सेटमेज पर रखा तांबे का लोटा उठाया, पानी पीकर लोटा वापस रख दिया। फिर दीवार का सहारा लेकर बैठ गई और बेटे से पूछा, “क्या बात है, बेटा?”
बेटा ने कहा, “कुछ नहीं। बस, माँ की गोद में छोटे बच्चों की तरह बाहों में भरने की कोशिश कर रहा हूँ।” माँ के हर सवाल को बेटा नजरअंदाज करता रहा। माँ की घबराहट को महसूस करते हुए बेटे ने सोने का इंतजार छोड़ दिया और माँ के दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए।
बेटा बोला, “माँ, आपको याद है जब मैं बड़ा हो रहा था, पापा ने मेरा कमरा अलग कर दिया था। अपने लिए अलग कमरे की जिद आप ही ने की थी। लेकिन तब आप मेरे सो जाने के बाद मेरे कमरे में आकर मेरे माथे को सहलाया करती थीं और अक्सर मेरे बिस्तर पर सो जाती थीं। सुबह आप अपने बिस्तर पर जाकर मुझसे एक सवाल पूछा करती थीं, याद है?”
माँ ने हंसते हुए कहा, “हाँ, मुझे याद है। अच्छा, तो बताओ, क्या सवाल पूछती थी मैं?”
बेटा ने मुस्कुराते हुए कहा, “आप मुझे सुबह पूछा करती थीं कि रात कैसे बिताई। और अब, इतने सालों बाद, मुझे पता चला कि पापा से नाराज होने की वजह से ही आप ऐसा करती थीं। आपने हमेशा पापा को मेरे साथ देखा है और इसलिए मैंने भी पापा को याद किया। लेकिन अब, मैं जानना चाहता हूँ कि आप पापा को अकेला छोड़कर मेरे पास क्यों आती थीं।”
माँ ने जवाब दिया, “मैं अकेले कमरे में डरती थी। इसलिए मैं तुम्हारे पास आ जाती थी ताकि अकेलेपन का डर कम हो जाए।”
बेटा ने अपने माँ के हाथों को मजबूती से पकड़ते हुए कहा, “माँ, मैं हमेशा चाहूंगा कि आप और पापा दोनों हमेशा साथ रहें।”
कहानी का अंत इस बात पर होता है कि माँ और बेटे ने एक-दूसरे की भावनाओं को समझा और एक दूसरे के प्रति अपने प्यार और समझ को महसूस किया।