“कुछ खास नहीं, मैं हर इतवार को महिला वृद्धाश्रम जाती हूं।” नीलू ने जवाब दिया।
“भगवान न करे कोई रिश्तेदार वहां जाए।” नीलू ने आसमान की तरफ हाथ जोड़ते हुए ठंडी आवाज में कहा।
“फिर रिश्तेदार नहीं है तो रोज-रोज क्यों जाती है?” रीना ने फिर सवाल किया।
“अब तो समझो रिश्तेदार ही हैं।” “क्या मतलब?” रीना ने माथे पर बल डालते हुए पूछा।
“मेरी मैडम अक्सर महिला वृद्धाश्रम जाती है। उन महिलाओं को कुछ खाने का या पहनने ओढ़ने का सामान देकर आती है। इसी साल जनवरी में हम, जब वृद्धाश्रम उन महिलाओं को गरम शॉल बांटने गए। तो सभी महिलाओं ने ले ली। परंतु एक संभ्रांत सी वृद्ध महिला ने शाल लेने से इनकार किया और साक्षी मैडम की बाह पकड़ कर कमरे की तरफ ले जाते हुए कहने लगी, ‘आप प्लीज मेरे साथ आएं, सिर्फ 5 मिनट के लिए।’
एक अजीब सी कशिश थी उसके कहने और ले जाने में। हम दोनों ही उसके साथ चल दीं। कमरे में जाकर उसने अपने बेड के नीचे से एक बड़ा सा ट्रक निकालकर खोला तो हमने देखा उसमें ढेरों गरम बहुत सुंदर नई शॉल रखी थी। उसका नाम माधुरी है। वह कहने लगी, ‘मेरे पास कपड़ों की कोई कमी नहीं। अगर बेटा दे सकती है तो कभी-कभी थोड़ा समय मुझे दे दिया कर।’ साक्षी मैडम एकदम बोलीं, ‘क्या मतलब समय से?’ माधुरी ने कहा, ‘मुझसे कभी-कभी बात कर लिया कर। आ सको तो, तुम्हारा बहुत एहसान बेटा, नहीं तो फोन पर ही बात कर लिया कर। मुझे भी लगे कि मेरा कोई है, मुझसे मिलने आने वाला, बात करने वाला।’ वह कहकर चुप हो गई और एक आस के साथ मैडम को देखने लगी। मैं अपने आंसुओं को बड़ी मुश्किल से रोक पाई। मैं जो हमेशा यह सोच-सोच कर दुखी होती थी कि भगवान ने मेरे को तो इतना पैसा नहीं दिया कि कुछ दान कर सकूं। माधुरी देवी की इस बात ने एक पल में मुझे राहत दे दी।” नीलू जो लगातार रीना को बता रही थी, उसे रीना ने बीच में ही टोका, “वह कैसे?”
“अब मैं हर इतवार सुबह 9:30 से 12:30 बजे तक अपना समय महिला वृद्धाश्रम में बिताती हूं, उन महिलाओं के साथ, खासकर माधुरी देवी के साथ।” नीलू की आवाज में एक अजीब सी खुशी और सुकून था।