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नैतिकता और आदर्श: एक असामान्य अनुभव से मिली सीख
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नैतिकता और आदर्श: एक असामान्य अनुभव से मिली सीख

अप्रैल का महीना था और शादी-विवाह का सीजन जोरों पर था। मैं भी एक बारात में शामिल होने का मौका पाकर काफी उत्साहित था। मेरे नजदीकी दोस्त श्याम नारायण जी के साढ़ू भाई के घर से बारात जानी थी। हम दोनों दोपहर को ही वहां पहुंच गए। जैसे ही पहुंचे, उनके साढ़ू भाई ने हमें स्वागत करते हुए पानी मंगवाया। थोड़ी देर में एक नौजवान महिला, जो बहुत आकर्षक और सजी-धजी हुई थी, पानी और मिठाई लेकर आई। मैंने उसे नमस्ते किया, और उसने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया। मैंने मजाक में कहा, “पहचान नहीं रही हैं क्या?” वह मुस्कुराई और बोली, “क्यों नहीं, पिछली बार भी तो आप आए थे, याद है।”
यह जानकर मुझे तसल्ली हुई कि उसने मुझे पहचाना था। उसके बाद वह वापस अंदर चली गई। मैंने नारायण जी के साढ़ू भाई से उसके बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि वह दूर के रिश्ते में उनकी बहन लगती है और उसका नाम सोनम है।
शाम होते ही दूल्हे को तैयार किया गया और बारात निकलने की तैयारी शुरू हो गई। डी.जे. बजने लगा और औरतें खुशी से नाचने लगीं। सोनम भी उनमें शामिल थी। उसका नृत्य बहुत ही मनमोहक और सजीव था, जो सबका ध्यान खींच रहा था। कुछ देर बाद, शायद वह थक गई और उसने नाचना बंद कर तालियाँ बजाने लगी। मैं वहां पास खड़ा होकर यह सब देख रहा था, और उसकी कला की प्रशंसा कर रहा था। तभी सोनम की नजर मुझ पर पड़ी। वह पास आई और मुझे भी नाचने के लिए खींचने लगी। मैं मन रखने के लिए थोड़ा नाचने लगा। नृत्य खत्म होते ही मैंने उसकी तारीफ की, “आप बहुत अच्छा नाचती हैं।” वह मुस्कुराई और बोली, “आप भी बहुत अच्छे लगते हैं।”
बारात के भोजन और नाश्ते के बाद, गांव के कुछ लोग बारात से जल्दी घर लौटने की योजना बनाने लगे। मैंने भी सोचा कि क्यों न हम भी लौट चलें, ताकि सुबह जल्दी उठकर इलाहाबाद के लिए निकल सकें।
रात करीब एक बजे हम लोग बारात से घर लौट आए। गांव के बाराती अपने-अपने घर चले गए, और हम दोनों बैठे थे। घर के सामने एक बैठका था, जिसमें हमने दो चारपाई बिछाई। नारायण जी अंधेरे में अंदर की तरफ की चारपाई पर लेट गए, और मैं दरवाजे के पास की चारपाई पर, जहां बाहर की रोशनी पड़ रही थी। मैंने उनसे एक चादर मांगी, तो उन्होंने कहा कि जाओ, घर से मांग लो, औरतें अभी जाग रही हैं।
मैं घर के अंदर गया और देखा कि औरतें अभी भी नाच-गाने में मगन थीं। मैंने आवाज दी, तो साढ़ू भाई की मां खुद आईं। मैंने उनसे एक चादर मांगी, और वे उसे लेने अंदर चली गईं। तभी सोनम ने उन्हें देखा और उनसे चादर ले ली, “मां जी, आप बैठिए, मैं दे आती हूं।” वह चादर लेकर आई और मुस्कुराते हुए बोली, “चलो, बिछा दूं?” मैं हंसते हुए मजाक किया, “अरे नहीं, अभी आप सोने के लिए भी कह देंगी, तो?” वह हंसकर बोली, “नहीं-नहीं, आपको खोजने की जरूरत नहीं पड़ेगी।”
मैंने चादर ली और अपनी चारपाई पर बिछाकर बैठ गया। सोचते-सोचते कि सोनम कितनी मजाकिया और खुशदिल है, मुझे नींद आने लगी। करीब पैंतालीस मिनट बाद, जब मैं लेटने ही वाला था, तभी वह फिर से आई और अचानक मुझे पकड़कर चारपाई पर लेटा दिया। वह मुझसे किस करने की कोशिश कर रही थी। मैं हड़बड़ाकर बोला, “अरे…रे…रे, ये क्या?” वह बोली, “मैंने कहा था न, आप बहुत अच्छे लगते हैं।”
इस पर मेरी आवाज सुनकर नारायण जी भी हड़बड़ा कर उठ बैठे और बोले, “अरे, क्या हुआ? कौन है?” सोनम नारायण जी की आवाज सुनकर सन्न रह गई और तेजी से वहां से चली गई।
मेरे दिल में एक अजीब सी राहत महसूस हुई, और मैंने सोचा कि ये सब कितना गलत था। मैंने नारायण जी से कहा, “मैं तो समझ रहा था कि वह एक अच्छी महिला है, लेकिन यह तो बिल्कुल गलत निकली। उसे शर्म नहीं आई, लाज नहीं आई?” नारायण जी बोले, “अरे कैसी लाज? उसका पति विदेश में है और वह चरित्रहीन है। तुम्हें चुपचाप मजे लेने चाहिए थे, मौका गंवा दिया।”
मैंने गंभीरता से कहा, “नारायण जी, आप कैसी बातें कर रहे हैं? वह एक महिला है, और अगर वह अपने पति के अलावा किसी और के साथ संबंध बनाती है, तो यह उसका चरित्र है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम भी अपना चरित्र गिराकर उसी स्तर पर आ जाएं। मैं अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता हूं, और अगर मेरी पत्नी ऐसा कुछ करे, तो मुझे बहुत बुरा लगेगा।”
मैंने आगे कहा, “एक पत्नी अपने पति से प्यार करती है और उम्मीद करती है कि उसका पति भी उससे वफादार रहेगा। एक पत्नी किसी के साथ अपना सब कुछ साझा कर सकती है, लेकिन अपने पति को नहीं। इसलिए हमें भी अपने रिश्ते और खुद की इज्जत करनी चाहिए।”
उस रात के बाद, मैंने तय कर लिया कि मैं अपने मूल्यों और आदर्शों से कभी समझौता नहीं करूंगा, चाहे हालात कुछ भी हों।

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