एक गाँव में एक किसान रहता था, जिसका जीवन साधारण था, लेकिन उसकी ज़िन्दगी में एक उलझन भी थी। उसकी दो पत्नियाँ थीं, और दोनों से उसे एक-एक बेटा था। दोनों बेटों की शादी हो चुकी थी, और किसान को लगा कि अब उसकी ज़िन्दगी स्थिर और सुखी हो गई है। लेकिन समय ने उसे एक नई चुनौती दी, जब उसके छोटे बेटे की तबीयत अचानक बिगड़ने लगी।
बड़े भाई ने अपने छोटे भाई का इलाज करवाने की पूरी कोशिश की। उसने गाँव के आस-पास के वैद्यों से परामर्श लिया, लेकिन छोटे भाई की तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ। धीरे-धीरे खर्च बढ़ता गया, और छोटे भाई की हालत और भी बिगड़ती चली गई। बड़े भाई के मन में चिंता ने धीरे-धीरे एक कड़वाहट का रूप ले लिया।
एक दिन, बड़े भाई ने अपनी पत्नी से सलाह-मशविरा किया। उसने कहा, “यदि छोटा भाई मर जाए, तो हमें उसके इलाज के लिए और पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा।” उसकी पत्नी, जो उसकी सोच में सहभागी हो गई थी, ने एक भयानक सुझाव दिया, “क्यों न किसी वैद्य से बात करके उसे जहर दे दिया जाए? किसी को शक भी नहीं होगा, और उसकी मौत को बीमारी के कारण माना जाएगा।”
बड़े भाई ने अपनी पत्नी की बात मान ली और एक वैद्य से संपर्क किया। उसने वैद्य से कहा, “जो भी तुम्हारी फीस होगी, मैं देने को तैयार हूं। बस मेरे छोटे भाई को ऐसा जहर दे दो, जिससे उसकी मृत्यु हो जाए।” लालच और निर्दयता से भरे वैद्य ने इस नृशंस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और छोटे भाई को जहर दे दिया। कुछ ही दिनों में छोटे भाई की मृत्यु हो गई।
बड़े भाई और उसकी पत्नी ने अंदर ही अंदर खुशी मनाई, यह सोचते हुए कि अब रास्ते का कांटा निकल गया है और सारी संपत्ति उनकी हो गई। छोटे भाई का अंतिम संस्कार कर दिया गया, और समय बीतता चला गया।
कुछ महीनों के बाद, किसान के बड़े बेटे की पत्नी ने एक बेटे को जन्म दिया। परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई, और उन्होंने बड़े लाड-प्यार से बच्चे की परवरिश की। समय के साथ वह लड़का जवान हो गया, और उसकी शादी भी धूमधाम से कर दी गई। लेकिन खुशी के ये दिन अधिक समय तक नहीं टिक सके।
शादी के कुछ समय बाद, बड़े बेटे की तबीयत अचानक बिगड़ने लगी। उसके माता-पिता ने उसके इलाज के लिए हर संभव कोशिश की। कई वैद्यों से परामर्श लिया गया, और जो भी पैसा माँगा गया, वे देने को तैयार थे। अपने बेटे की जान बचाने के लिए उन्होंने अपनी आधी संपत्ति तक बेच दी, लेकिन उसका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता गया। अब वह मौत के दरवाजे पर खड़ा था, शरीर इतना कमजोर हो चुका था कि उसकी हालत देखकर दिल दहल उठता था।
एक दिन, वह लड़का अपने चारपाई पर लेटा हुआ था, और उसका पिता उसे दुख भरी नजरों से देख रहा था। लड़के ने अचानक अपने पिता से कहा, “भैया, अपना हिसाब पूरा हो गया है। अब बस कफन और लकड़ी का इंतजाम बाकी है, उसकी तैयारी कर लो।”
पिता ने सोचा कि उसका बेटा बिमारी के कारण बड़बड़ा रहा है और बोला, “बेटा, मैं तेरा बाप हूं, भाई नहीं।”
लड़के ने दुखी आवाज में कहा, “पिताजी, मैं आपका वही भाई हूं जिसे आपने जहर देकर मरवा दिया था। जिस संपत्ति के लिए आपने मुझे मारा, वही अब मेरे इलाज में आधी बिक चुकी है। हमारा हिसाब बराबर हो गया है।”
यह सुनकर पिता का दिल टूट गया। वह फूट-फूट कर रोने लगा और बोला, “मेरा तो कुल नाश हो गया। जो मैंने किया, वह सब मेरे सामने आ गया। पर तेरी पत्नी का क्या दोष है, जो उसे इस बेचारी को जिंदा जलाया जाएगा?” उस समय सतीप्रथा चल रही थी, जिसमें पति की मृत्यु के बाद पत्नी को पति की चिता के साथ जला दिया जाता था।
लड़के ने दुख भरी नजरों से अपने पिता को देखा और कहा, “पिताजी, वह वैद्य कहां है, जिसने मुझे जहर खिलाया था?”
पिता ने उत्तर दिया, “तुम्हारी मृत्यु के तीन साल बाद वह मर गया था।”
लड़के ने कड़वाहट से हंसते हुए कहा, “वह दुष्ट वैद्य आज मेरी पत्नी के रूप में है। मेरे मरने पर उसे भी जिन्दा जलाया जाएगा।”
कहते हैं, परमेश्वर का न्याय अटल होता है। इस कहानी में उस न्याय की झलक मिलती है। जीवन में किए गए कर्मों का हिसाब-किताब कहीं न कहीं सामने आ ही जाता है।
कहानी के अंत में यही संदेश मिलता है कि जो बोओगे, वही काटोगे। जीवन में सच्चाई और ईमानदारी से जीना ही सबसे बड़ा धर्म है।
अंततः यही सच है कि:
“धर्मराज लेगा तिल-तिल का लेखा,
ऋण संबंध जुड़ा है ठाडा,
अंत समय सब बारह बाटा।”