एक गांव में विवेकानंद नाम का एक बड़ा ही विद्वान ब्राह्मण रहा करता था। विवेकानंद बचपन से ही ब्रह्मचारी था, इसलिए उसका परिवार के नाम से कोई नहीं था, हां, उसका एक बचपन का मित्र, सुरेश, था। सुरेश, जो विवेकानंद के गांव से तीन-चार गांव दूर रहता था, जन्म से ही गूंगा और एक पैर से विकलांग था।
एक बार विवेकानंद को जब मानसिक अशांति होने लगी, तो उसने सोचा कि अपने बचपन के मित्र से मिलना चाहिए, जिससे उसे शांति मिलेगी। यही सोचकर विवेकानंद सुरेश के गांव की ओर निकल पड़ा।
सुरेश के गांव जाने के रास्ते में कई गांव और कुछ जंगल भी थे। जब विवेकानंद जंगल से गुजर रहा था, तब महादेव नाम का एक आदमी उसके साथ सफर में जुड़ गया।
महादेव का साथ पाकर विवेकानंद को भी अच्छा लगा और उनके बीच बातचीत के दौरान सफर कटने लगा। चलते-चलते जब पहला गांव आया, तो महादेव ने विवेकानंद से कहा, “तुम आगे बढ़ो, मेरा इस गांव में कुछ काम है, उसे खत्म करके मैं तुम्हें आगे मिलता हूं।”
विवेकानंद ने धीरे-धीरे अपना सफर जारी रखा। थोड़ी ही देर बाद उसे पता चला कि उस गांव में कोई फांसी लगाकर मर गया है। आगे, महादेव फिर से उसके साथ सफर में जुड़ गया। दोनों फिर से आगे बढ़ते रहे।
कुछ मील चलने के बाद फिर से एक गांव आया, जहां महादेव ने विवेकानंद से कहा कि, “मेरा इस गांव में कुछ काम है, मैं उसे पूरा करके तुम्हें आगे मिलता हूं।” और वह उस गांव में चला गया।
विवेकानंद ने फिर से धीरे-धीरे अपना सफर जारी रखा, और थोड़ी देर बाद उसे खबर मिली कि उस गांव में एक आदमी को सांप ने काट लिया और वह मर गया! विवेकानंद सोच में पड़ गया कि यह कैसा अजीब इत्तेफाक है, जहां भी महादेव जाता है, वहां कुछ बुरा हो जाता है। लेकिन उसने महादेव से कुछ नहीं पूछा और दोनों का सफर जारी रहा।
जब वह अगले गांव में पहुंचे, तो महादेव ने फिर से वही किया, और इस बार उस गांव में आग लगने से कई लोग मारे गए। विवेकानंद ने महादेव से पूछा, “तुम कौन हो? और यह सब क्या हो रहा है?”
महादेव ने सच-सच बता दिया कि वह यमराज का एक दूत है, जिसका काम ही लोगों की जान लेना है।
आगे की यात्रा के दौरान, महादेव ने विवेकानंद को बताया कि जिस व्यक्ति से वह मिलने जा रहा है, वह वही है जिसकी मृत्यु होने वाली है। यह जानकर विवेकानंद को दुख हुआ, लेकिन महादेव ने बताया कि उसके मित्र सुरेश की मृत्यु का कारण खुद विवेकानंद बनेगा।
विवेकानंद ने सोचा कि अगर वह सुरेश से नहीं मिलेगा, तो उसकी मृत्यु भी नहीं होगी, इसलिए उसने सुरेश के गांव न जाने का निर्णय लिया। लेकिन, तब तक सुरेश वहां पहुंच चुका था, जहां विवेकानंद और महादेव बातें कर रहे थे। और सुरेश अचानक गिर पड़ा और वहीं उसकी मृत्यु हो गई।
विवेकानंद ने महादेव से पूछा, “आपने कहा था कि उसकी मृत्यु का कारण मैं बनूंगा, लेकिन वह तो मुझसे मिले बिना ही मर गया, ऐसा कैसे हुआ?”
महादेव ने जवाब दिया, “वह तुम्हारा पीछा कर रहा था और थकान के कारण उसे दिल का दौरा पड़ा और वह मर गया।”
विवेकानंद अपने मित्र की मृत्यु से दुखी हुआ और उसे अंतिम संस्कार करके अपने गांव लौट आया।
कुछ समय बाद, विवेकानंद ने महादेव से अपनी मृत्यु के बारे में जानने की इच्छा जताई। महादेव ने उसे बताया कि उसकी मृत्यु तीन महीने बाद फांसी लगने से होगी।
विवेकानंद ने निर्णय किया कि वह अपने राज्य से बाहर नहीं जाएगा, लेकिन चिंता के कारण वह नींद में चलने की पुरानी बीमारी से ग्रस्त हो गया।
फांसी के दिन, विवेकानंद नींद में चलकर राजा के महल में पहुंच गया और सुबह राजा की पत्नी के शयन कक्ष में मिला। राजा ने उसे फांसी की सजा सुनाई, और उसे एक पतली सूत की डोरी से फांसी दी गई।
डोरी टूट गई, लेकिन उससे पहले विवेकानंद की गले की नस कट गई और वह मर गया।
कहानी का संदेश:
मृत्यु अटल है, लेकिन हमें वर्तमान में जीना चाहिए और अपने जीवन का पूर्ण आनंद लेना चाहिए।
