वैसे तो जानवर बोलते नहीं है या फिर बोलते भी है तो उनकी भाषा किसी को समझ में नहीं आती लेकिन कहानी का लेखक अपने काल्पनिक शक्ति से उन्हें बुलवाता है और उनके संवादों द्वारा अपनी कहानी में कुछ ऐसे संदेश भर देता है जो बोलते हुए इंसानों के जीवन में काफी काम आ सकते हैं।
मैं यह सब आपको क्यों बता रहा हूं? वह इसलिए क्योंकि आज की कहानी में दो उंट बातें करने वाले हैं ! तो चलिए शुरू करते है कहानी.
एक ऊंट का बच्चा अपनी माँ ऊंट से पूछता है, “माँ, हमारे शरीर पर कूबड़ क्यों होता है?”
माँ ने उत्तर दिया, “हमारे शरीर पर यह कूबड़ इसलिए होता है ताकि हम इसमें पानी जमा कर सकें और रेगिस्तान में कम पानी में जीवित रह सकें।”
बच्चा सोचने लगा, जैसे उसे इस उत्तर से कोई स्पष्टता नहीं मिली हो। उसने फिर माँ से पूछा, “हमारे पास गोल-गोल और नीचे से चौड़े पैर क्यों हैं?”
माँ ने समझाया, “हमारे ये पैर रेगिस्तान की रेत में चलने में बहुत मदद करते हैं, इसलिए ये ऐसे हैं।”
बच्चा यह जवाब सुनकर असमंजस में डूब गया। थोड़ी देर मौन रहने के बाद उसने फिर एक नया सवाल पूछा, “माँ, हमारी भौंहें और आंखों के बाल इतने बड़े और घने क्यों होते हैं? ये अक्सर मेरी आंखों के सामने आ जाते हैं और मुझे सामने की चीजें देखने में परेशानी होती है।”
माँ ने कहा, “जब रेगिस्तान में तेज हवा चलती है, तो रेत हमारी आंखों में चली जाती है। तब यही भौंहें और आंखों के बड़े बाल हमारी आंखों को बचाते हैं।”
सारे जवाब सुनने के बाद ऊंट के बच्चे ने अपनी माँ से आखिरी सवाल पूछा, जिसका माँ के पास कोई जवाब नहीं था। बच्चे ने कहा, “मुझे समझ में आ गया कि हमारे शरीर पर कूबड़, नरम गद्दी वाले पैर, और बड़े बाल और भौंहे हमें रेगिस्तान में सहूलियत देने के लिए हैं। फिर हम लोग चिड़ियाघर में क्यों हैं?”
कहानी की सीख
दोस्तों, दो ऊंटों की यह कहानी हमें सिखाती है कि हमारी काबिलियत और कुशलता तभी कीमती होती है जब हम उन्हें सही जगह पर और सही समय पर इस्तेमाल करें, वरना उनका कोई मोल नहीं।