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जुड़वाँ बहनों का अद्वितीय प्रेम और समर्थन: एक विशेष कहानी
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सच्चे रिश्तों की मिसाल: जुड़वाँ बहनों की एक अद्वितीय यात्रा, एक बड़े त्याग और परिवार के अमूल्य समर्थन की कहानी

जुड़वाँ बहनों की अद्भुत कहानी: एक ही परिवार में दो जीवन, एक बड़ा त्याग और सच्चे प्यार की मिसाल

मेरा नाम रिया है. मेरी बहन का नाम प्रिया है. हम दोनों जुड़वाँ हैं. वो मुझसे 2 मिनट बड़ी है. हम दोनों बहनों में बहुत प्यार है।
हम दोनों ने सोचा था कि हमारी शादी एक ही घर में हो और एक साथ हो. और किस्मत से ऐसा ही हुआ. हम दोनों की शादी एक ही परिवार में हुई।

अरविंद मेरे पति हैं और करण मेरी बहन प्रिया के. अरविंद और करण दोनों चचेरे भाई हैं, पर परिवार एक ही साथ रहता है. पास के घर में ही प्रिया रहती है।

हमारे मिलने में अब कोई समस्या नहीं थी. करण और अरविंद हमारे पतियों में भी अच्छी बॉन्डिंग है. घर सिर्फ दीवारों से अलग है, ऐसे हम कहीं भी खाना खाते थे और कहीं भी रहते थे। हम दोनों बहनों को भी यह अच्छा लगा कि चलो कोई बंदिश नहीं है। शादी एक साथ होने के साथ अब हम दोनों एक साथ ही प्रेग्नेंट भी हो गईं।

लेकिन सच बताऊँ तो यह हमने नहीं सोचा था। यह बस हो गया। हम दोनों को डिलीवरी डेट भी एक ही दी गई। ससुराल और मेरे घर में सभी खुश थे।
हम दोनों बहनें एक साथ ही अपने घर गईं और एक और संयोग हुआ कि हम एक साथ ही अस्पताल भी गए डिलीवरी के लिए।
मेरी डिलीवरी में कुछ समस्या होने की वजह से ऑपरेशन ज़रूरी हो गया। कुछ समय के लिए तो होश में रही लेकिन बाद में मुझे कुछ याद नहीं।

आँख खुली तो पता चला कि मुझे लड़का हुआ है। फिर मैंने प्रिया के बारे में पूछा। तो पता चला उसे लड़की हुई है। उन दोनों का समय भी एक ही था।

हम दोनों बहनें खुश थीं और कुछ समय बाद ही अपने ससुराल वापस आ गईं। अब हम माँ बन गईं थीं, तो ज्यादातर एक-दूसरे के साथ अपने बच्चों को सँभालते थे।
बच्चे जल्दी ही बड़े हो जाते हैं। छोटे बच्चे किस पर गए हैं, यह पहले समझ नहीं आता है। थोड़े बड़े होने पर ही पता चलता है।
लेकिन जैसे-जैसे मेरा बेटा बड़ा हो रहा था, वो ना मुझ पर ना अपने पिता अरविंद जैसा था। बल्कि वो तो मेरी बहन के पति करण जैसा लगने लगा था।

पहले मुझे लगा कि यह मुझे ही लग रहा है। लेकिन ऐसा बाहर वाले भी कहने लगे थे। वो मेरे साथ जाता तब जो भी मिलता, यही कहता, “यह तो करण का है।”
फिर मैं मना करती कि नहीं, यह मेरा और अरविंद का है। प्रिया की बेटी बिल्कुल प्रिया की तरह ही दिखती थी।
लेकिन मेरा बच्चा उसके पति जैसा क्यों लगने लगा, यह बात मुझे समझ नहीं आई। मेरे पति को एक बार मैंने मज़ाक में कहा कि यह तो करण जैसा लगने लगा।

वो गुस्सा हो गए और कहने लगे, “पागल हो, ऐसे कुछ भी मत बोला करो।” मेरी मज़ाक में कही बात पर वो इस तरह गुस्सा हो जाएँगे, मुझे पता नहीं था।
लेकिन ऐसा वो पहली बार ही हुए थे। अब मेरे मन में कई सवाल मंडराने लगे कि मेरे साथ हो क्या रहा है। मेरी बहन और बाकि सभी को मैंने कुछ नहीं कहा।

लेकिन क्या सब को दिखाई नहीं पड़ रहा था? लेकिन कोई भी इस बारे में ज़िक्र भी नहीं करता था। कुछ महीने ऐसे ही और चल गया, लेकिन मेरे दिमाग में यह सब चलता ही रहा।
फिर मैंने सोचा कि मैं अपनी बहन से बात करूँ। मैंने उससे डायरेक्ट नहीं पूछा, क्योंकि हो सकता है वो गलत तरीके से ले ले और मैं नहीं चाहती थी कि मेरी वजह से उसके और करण में कुछ तनाव पैदा हो। मैंने मज़ाक में ही कहा कि यह तो धीरे-धीरे अपने चाचा जैसा लगने लगा और लगेगा भी, एक ही परिवार के तो हैं।

वो थोड़ा सा मुस्कुराई। बस, अब मैंने पकड़ लिया क्योंकि मैं अपनी बहन को बचपन से जानती थी, यह कुछ छिपाने वाली मुस्कान थी।
वो जल्दी से कुछ बहाना करके वहाँ से चली गई। इस घर में ऐसी कोई बात है जो मुझसे छिपाई जा रही है। मैं अब सब पर शक भी करने लगी – अपने पति पर, बहन पर, और उसके पति करण पर। मैं कुछ बहाना करके बिना बताए अपने मायके चली गई। प्रिया को नहीं बताया।
मेरी माँ से जाकर मैंने कहा कि मुझे पता नहीं क्या हो रहा है, मैं पागल हो गई हूँ, कुछ भी उल्टा-सीधा सोच रही हूँ। थोड़े दिन यहाँ रहती हूँ।

शायद दिमाग शांत हो जाए। मैं थोड़े दिन वहाँ रुकना चाहती थी लेकिन 2 दिन में ही वापस आ गई। जवाब के साथ।
इस दौरान भी मेरी बहन का फोन आता रहा माँ के पास। शायद कह रही होंगी कि रिया को कुछ मत बताना। लेकिन मेरी माँ ने मुझे बता दिया।

उन्होंने कहा कि शायद अब समय आ गया है कि तू जान ले, नहीं तो तू कुछ उल्टा-सीधा सोचने लगेगी। मैं अपने ससुराल गई।
मेरे पति जाते ही बोले कि यह क्या तरीका है, ऐसे भी कोई बिना बताए जाता है। मैंने उनसे कहा, “चलो।” उन्हें मैं प्रिया के यहाँ ले गई।

उसका पति करण भी वही था। मुझे और अरविंद को देखकर उन्हें थोड़ा आश्चर्य हुआ। प्रिया कहने लगी, “आ रिया, क्या लाई माँ के यहाँ से, बिना बताए चली गई।”

मैंने कहा, “तूने भी छिपाया कि तेरे गर्भ में जुड़वाँ बच्चे थे।” वो सुनकर मेरी ओर देखने लगी। मैंने जाकर उसे गले लगा लिया।
यह मेरी बहन है जिसने अपना एक बच्चा मेरी गोद में दे दिया। वो बोली, “मैंने सभी को मना किया था, क्योंकि मैं तुझे सरप्राइज देना चाहती थी। लेकिन तेरे समय में कुछ कॉम्प्लिकेशन की वजह से तेरा बच्चा बचा नहीं और मैं नहीं चाहती थी कि मेरी बहन आँख खोले तो उसे यह सुनना पड़े कि उसकी गोद सूनी है। और वैसे भी यह मेरे पास रहे या तेरे पास, क्या फर्क पड़ता है।”
अपनी बहन को गले लगाकर मैं बहुत रोई। उसकी जगह मैं होती तो शायद नहीं कर पाती, लेकिन उसका दिल तो बहुत बड़ा निकला। साथ ही उसके पति करण का। मेरे पति भी मुझे खुश देखना चाहते थे, इसलिए वो भी चुप रहे।
ऐसा परिवार और बहन मिल जाए तो और क्या चाहिए। उसके किए अहसान को मैंने अपने पास ही रखा और उसे बहुत प्यार देने की कोशिश करती हूँ।

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