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A winter night and a train journey: The story of saving a family from breaking apart
ट्रैवल

सर्दी की रात और ट्रेन का सफर: एक परिवार को टूटने से बचाने की कहानी

सर्द नवंबर की रात थी। मैं एक ट्रेन के डिब्बे में अकेला बैठा था। ठंड के कारण मैंने पैंट और शर्ट के नीचे इनर, पैजामा और ऊपर से हाफ स्वेटर पहन रखा था। मेरे पास एक बड़ा बैग भी था। तभी, एक नवयुवती, जो लगभग पच्चीस वर्ष की लग रही थी, मेरे सामने वाली सीट पर आकर बैठ गई। उसने सिर्फ एक साड़ी पहन रखी थी और एक झोला ले रखा था। यात्रियों की संख्या कम थी, इसलिए डिब्बे में काफी सन्नाटा था।

उस युवती ने इधर-उधर देखा और हमारी नजरें कई बार टकराईं। मुझे आश्चर्य हुआ कि वह इस सुनसान स्टेशन से इतनी रात को अकेले क्यों चढ़ी है और कोई उसे छोड़ने भी नहीं आया था। कुछ समय बाद मैंने उससे पूछा, “आप कौनसे स्टेशन से चढ़ी हैं?” उसने बहुत धीमी आवाज में जवाब दिया, जिसे मैं सुन नहीं पाया। मैंने दुबारा नहीं पूछा और चुप रहा। फिर मैंने पूछा, “आपको कहाँ तक जाना है?” उसने कहा, “लखनऊ।” इस बार मैंने स्पष्ट सुना और चुप रहा। फिर उसने पूछा, “आपको कहाँ जाना है?” मैंने कहा, “मुझे भी लखनऊ जाना है।” इस प्रकार हम दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई।

रात के दस बज चुके थे और ठंड बढ़ती जा रही थी। मैंने अपने बैग से कंबल निकाला और ओढ़कर बैठ गया। उस युवती को एक साड़ी में ठिठुरते देख, मैंने उससे पूछा, “आपने कोई ऊनी कपड़े नहीं पहने हैं और ना ही कोई शॉल लाई हैं?” उसने कहा, “असल में जब मैं घर से निकली थी तो अच्छी धूप थी।” मैंने अपना कंबल उसे देते हुए कहा, “यह लीजिए, ओढ़ लीजिए।” उसने धन्यवाद कहते हुए कंबल थाम लिया।

फिर मैंने पूछा, “आपको कोई छोड़ने नहीं आया?” उसने कहा, “घर पर कोई छोड़ने वाला नहीं था।” मैंने पूछा, “आपके पति क्या करते हैं?” उसने कहा, “क्लर्क हैं।” मैंने कहा, “वह घर पर नहीं थे?” उसने कहा, “नहीं, ड्यूटी पर गए थे और उनके वापस आने से पहले ही मैं चली आई।” मैंने पूछा, “आपके पति आपको अकेले जाने देते हैं?” उसने कहा, “नहीं, मैं अपनी मर्जी से जा रही हूं।” मैंने कहा, “ओ, इसका मतलब आप लोगों में खटपट हुई है और आप मायके जा रही हैं।” उसने कहा, “नहीं, मेरा मायका गांव में है।” मैंने कहा, “तो आपको अपने मायके जाना चाहिए था।” उसने कहा, “मायके में कोई नहीं है। मैं अपने मां-बाप की अकेली संतान हूं और मेरे माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं।” मैंने कहा, “ओह, तो फिर लखनऊ में आपका कौन रहता है?” उसने कहा, “मामा के लड़के बैंक में हैं, उन्हीं के पास जा रही हूं।” मैंने कहा, “क्या आपके पति ने आपको मारा-पीटा है?” उसने कहा, “ज्यादा कुछ नहीं, बस एक बार दरवाजे से टकराने पर गुस्से में कुछ कह दिया।”

कुछ समय बाद मेरे फोन की रिंग बजी और मैंने फोन उठाकर कहा, “हां, बोलो क्या है। मैंने तुमसे कहा था कि मुझे फोन मत करना।” मैंने फोन काट दिया। थोड़ी देर बाद उसने पूछा, “इतनी रात को आप किसको डांट रहे थे?” मैंने कहा, “मेरी पत्नी थी।” उसने पूछा, “क्या आप घर से नाराज होकर आए हैं?” मैंने कहा, “हां।” उसने पूछा, “फोन पर क्या पूछ रही थी?” मैंने कहा, “पूछ रही थी कि कुछ खाया-पीया कि नहीं।” उसने कहा, “फिर भी आप डांट रहे थे?” मैंने कहा, “और नहीं तो क्या। ऐसी औरत किसी को न मिले।” उसने कहा, “क्यों, क्या हुआ था?” मैंने कहा, “बात-बात में मेरी मां को ताने मार दी।”

फिर उसने कहा, “आपके परिवार में कौन-कौन है?” मैंने कहा, “मेरे मां-बाप, मेरी पत्नी और दो बेटे।”

कुछ समय बाद वह उठकर गुसलखाने की तरफ गई। तभी जोर से उसकी आवाज आई, “दूर रहो. दूर रहो।” मैं जल्दी से उठा और देखा कि एक नौजवान हट्टा-कट्टा व्यक्ति उसके पीछे आ रहा था। वह पागल सा लग रहा था। दो भाईसाहब आए और उसे डांटकर भगा दिया। वह स्त्री मुझे पकड़ कर लिपट गई। कुछ देर बाद वह शांत हुई और हम अपनी सीटों पर बैठ गए।

मैंने उसका झोला उठाया तो उसमें से मोबाइल गिर पड़ा। मैंने उसे उठाकर दिया और कहा, “आपके पास मोबाइल है और उसे बंद करके रखा है। यह गलत बात है।” मैंने मोबाइल ऑन करके उसे दिया और कुछ ही देर बाद उसकी रिंग बजी। उसने फोन रिसीव किया और बोली, “मैं ट्रेन में हूं, लखनऊ जा रही हूं।” उधर से आवाज आई, “प्लीज वापस आ जाओ।” उसने कहा, “तुम्हारे लिए तो हमसे ज्यादा वह कांच का जग मायने रखता है ना।” फिर उसने फोन काट दिया।

सुबह साढ़े चार बजे ट्रेन लखनऊ पहुंची। मैंने उसे कहा, “अब आप सोच-समझकर फैसला करें कि आपको अपने घर जाना है या रिश्तेदार के यहां।” उसने कहा, “गलती मेरी भी थी।” और फिर उसके मोबाइल की बेल बजी और उसने फोन रिसीव किया। उधर से आवाज आई, “प्लीज वापस आ जाओ।” उसने रोते हुए कहा, “ठीक है।” मुझे समझ आ गया कि वह अपने घर वापस जाएगी। मैंने उसे एक टिकट ला दिया और ट्रेन आने पर वह चली गई।

इस घटना से मुझे एक परिवार को टूटने से बचाने की संतुष्टि मिली। यह सोचते हुए मैं भी अपने घर की ओर लौट गया, जहां मेरे बच्चे और पत्नी मेरा इंतजार कर रहे थे।

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Ravi Jekar

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