शाम के साढ़े तीन बजे थे। गर्मी का मौसम था, लेकिन सूरज की तेज़ किरणों के बावजूद घर में एक अजीब-सी ठंडक पसरी हुई थी। दीवार घड़ी की टिक-टिक के साथ ही कमरे की खामोशी और भी भारी लग रही थी। तभी फोन की घंटी बजी। निशा, जो अपने घर के कामों में व्यस्त थी, ने फोन उठाया और धीरे से बोली, “हैलो, कौन बोल रहा है?”
दूसरी तरफ से एक कांपती हुई आवाज़ आई, “बेटा, मैं रामनाथ हूं… तुम्हारे बाबूजी। तुम्हारी माँ बहुत बीमार हैं। घर में बिजली चली गई है… शायद तुम बिजली का बिल भरना भूल गए हो।”
निशा थोड़ी देर के लिए चुप रह गई। आवाज़ इतनी कमजोर थी कि उसे समझने में भी मुश्किल हो रही थी। उसने धीरे से कहा, “आप कौन हैं? लगता है आपने गलत नंबर मिला दिया है।”
रामनाथ की आवाज़ फिर आई, “बेटा, मेरा बेटा हमेशा मुझे फोन करता था, इसलिए मुझे उसका नंबर याद नहीं। मैंने फोन डायरेक्टरी से एक नंबर खोजा, और गलती से तुम्हें कॉल कर दिया।”
निशा को यह सुनकर अजीब लगा। उसने सोचा कि शायद यह कोई मजाक हो सकता है, लेकिन बूढ़ी आवाज़ में कुछ ऐसा था जो उसे परेशान कर गया। उसने कहा, “बाबूजी, आप चिंता मत कीजिए। मैं अभी एम्बुलेंस बुलाती हूं। आप मुझे अपना पता बता दीजिए।”
रामनाथ ने धीरे-धीरे अपना पता बताया, और निशा ने तुरंत एम्बुलेंस बुलाने की प्रक्रिया शुरू कर दी। निशा का दिल तेजी से धड़क रहा था। वह सोच रही थी, “क्या सच में कुछ गलत हो गया है?” उसने अपना सामान जल्दी से समेटा और एम्बुलेंस के साथ दी गई जानकारी के आधार पर उस पते की ओर चल दी।
बुजुर्ग दंपत्ति की व्यथा
रामनाथ और उनकी पत्नी, कमला, पिछले कई सालों से अकेले रह रहे थे। उनका इकलौता बेटा, अजय, शहर में काम करता था और अपने काम में इतना व्यस्त था कि वह महीनों से अपने माता-पिता से मिलने नहीं आया था। उसने अपने माता-पिता की देखभाल के लिए हर महीने पैसे भेजने की जिम्मेदारी निभाई थी, लेकिन पिछले कुछ महीनों से वह भी रुक गए थे।
कमला की सेहत दिनोंदिन बिगड़ती जा रही थी। घर में राशन की कमी थी, और बिजली का बिल भी नहीं भरा गया था, जिससे उनका घर अंधकारमय हो गया था। रामनाथ हर दिन अपने बेटे के फोन का इंतजार करते थे, लेकिन वह इंतजार अब व्यर्थ लगने लगा था।
निशा का आगमन
निशा उस पते पर पहुंची, लेकिन जो दृश्य उसने देखा, वह उसके दिल को चीर कर रख देने वाला था। घर के अंदर घुसते ही उसे रामनाथ और कमला की लाशें मिलीं। कमला सोफे पर पड़ी हुई थी, और रामनाथ फर्श पर पड़े थे, हाथ में एक पुरानी फोन डायरेक्टरी पकड़े हुए। निशा को यकीन नहीं हो रहा था कि कुछ समय पहले ही उसने उनसे फोन पर बात की थी।
डॉक्टर और पुलिस वहां पहुंच गए। डॉक्टर ने निशा को बताया कि बुजुर्ग दंपत्ति की मौत 4-5 घंटे पहले ही हो चुकी थी। निशा की आंखों से आंसू बहने लगे। उसने खुद को संभालते हुए डॉक्टर से कहा, “यह कैसे हो सकता है? मैंने उनसे थोड़ी देर पहले ही बात की थी।”
पुलिस अधिकारी ने निशा से पूछा, “क्या आप इन्हें जानती हैं?” निशा ने जवाब दिया, “नहीं, लेकिन उन्होंने गलती से मुझे कॉल कर दिया था। उन्होंने मुझसे मदद मांगी थी।”
बेटे की बेरुखी
पुलिस ने जब अजय से संपर्क किया, तो उसने कहा कि वह बहुत व्यस्त है और अंतिम संस्कार के लिए नहीं आ सकता। निशा यह सुनकर दंग रह गई। उसने अजय से फोन पर कहा, “मैं तुम्हें एक तस्वीर भेज रही हूं, जिस स्थिति में तुम्हारे माता-पिता की मौत हुई, उसे कभी नहीं भूलना। यह तस्वीर तुम्हारे भविष्य की तस्वीर हो सकती है।”
अजय ने निशा की बातों को गंभीरता से नहीं लिया और फोन काट दिया। निशा का दिल दर्द से भर गया। उसने सोचा कि कैसे कोई बेटा अपने माता-पिता की इस तरह अनदेखी कर सकता है। उसने उन तस्वीरों को अपने फोन में सहेज लिया, जो रामनाथ और कमला की आखिरी यादें थीं।
अंत
निशा ने अपने दिल में एक संकल्प लिया। उसने रामनाथ और कमला का अंतिम संस्कार किया, और उनकी याद में एक छोटा सा स्मारक बनवाया। उसने अपने आसपास के लोगों से भी यह बात साझा की, ताकि वे अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल में कभी कमी न करें।
निशा के लिए यह घटना एक बहुत बड़ा सबक थी। उसने महसूस किया कि समाज में ऐसे कई बुजुर्ग हैं जो अपने बच्चों से दूर, अकेले और असहाय जी रहे हैं। उसने अपने जीवन का एक हिस्सा बुजुर्गों की सेवा में समर्पित करने का फैसला किया।
कहानी का अंत इस बात पर होता है कि हमें अपने माता-पिता की देखभाल को अपनी प्राथमिकता बनानी चाहिए, क्योंकि एक दिन आएगा जब वे हमारे साथ नहीं होंगे, और तब हमारी पछतावा और अपराधबोध के अलावा कुछ नहीं बचेगा।