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Everyone was surprised when I quit smoking. The one who had no effect even after scolding and explaining, suddenly improved?
लाइफस्टाइल

मेरे सिगरेट छोड़ देने से सभी हैरान थे. जिस पर डॉटफटकार और समझानेबुझाने का भी कोई असर नहीं हुआ वह अचानक कैली सुधर गया?

जब मेरे दोस्त इस की वजह पूछते तो मैं बड़ी भोली सूरत बना कर कहता, “सिगरेट पीना सेहत के लिए हानिकारक है, इसलिए छोड़ दी. तुम लोग भी मेरी बात मानी और बाज आओ इस गंदी आदत से. मुझझे पता है, मेरे फ्रेंड्स मुझ पर हांसते होंगे और याही कहते होंगे, ‘नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली. बड़ा आया हमें उपदेश देने वाला’ मेरे मम्मीडैडी मेरे इस फैसले से बहुत खुश थे लेकिन आपस में वे भी यहीं कहते होंगे कि इस गधे को यह अकल पहले जयों नहीं जाई?
जब मैं उन से क्या कहूं? यह जक्त मुझे जिंदगी भर न जाती अगर उस रोज मेरे साथ यह हादसा न ठूला होता. कालेज में कदम रखते ही मुझे सिगरेट की लत पड़ गई थी. जब मौका मिलता, हम पारदोस्त पांडेजी की दुकान पर खड़े हो कर खूब सिगरेट फूंकते और फिर हमारे शहर में सिगरेट पीना मर्दानगी की निशानी समझी जाती थी. कालेज के जो लड़के सिगरेट पी कर खांसने लगते, हम उन का मजाक उड़ाते. हां,लेकिन घर लौटने से पहले मैं पिपरमिंट की गोलियां घूस लेता ताकि किसी को तंबाकू की बून आए, वजह यह नहीं थी कि मैं घर में किसी से डराता था!
कजह सिर्फ यहीं थी कि घर के लोग किसी भी बात पर लेक्चर देना शुरू कर देते जिस से मुझे बड़ी चिढ़ होती थी. मेरी बड़ी बहन अंजली की नाक्त बड़ी तेज थी. हमारे किचन में जगा कुछ जात सहा हो तो गली में दाखिल होते ही अंजली दीदी को उस की यू आ जाती. एक दिन में घर पहुंचा तो दरवाजा उसी ने खोला. वै बिल्ली की तरह नाक सिकोड़ कर बोली, “सिगरेट की बदबू कहा से जा रही है?
तुम ने पी है क्या?” मैं पहले तो सहम गया लेकिन फिर गुस्से से बोला, “आप क्यों हर समय मेरे पीछे पड़ी रहती हैं? हमारा बौकीदार दिन भर बीडी फूकता है. जब हवा चलती है तो उस का धुआं यहां तक आ जाता है. यकीन न आए ती बाहर जा कर देख लीजिए, वह इस वक्त जरूर बीड़ी पी रहा होगा.”
मुझे गलत साबित करने के लिए अंकली दीदी फौरन बरामदे में चली गई. संधोग से चौकीदार उस समय वाकई बीड़ी पी रहा था. मुझे शक भरी नजरों से देखती हुई है उस समय तो वहां से राली गई लेकिन उस दिन के बाद मैं ने नोट किया कि वे मुद्रा पर नजर सखने लगी थीं, मैं जब बाहर से लौट कर अपने कमरे में आता तब यह बात फौरन समझ में आ जाती कि मेरे कमरे की तलाशी ली गई है.
अलमारी और मेज की दरानें सब टटोले गए हैं. मुझे यकीन ही गया कि अंजली दीदी जबर कोई सुराग ढूंढ़ रही होंगी ताकि मुझ पर हमला किया जा सके, पर मैं ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेती थी, अपने कमरे में सिगरेट और माचिस की इब्बी में भूल से भी एक दिन मुझ से गलती हो गई. में महल्ले के लड़कों के साथ नुक्कड़ पर खड़े हो कर गपशप कर रहा था.
एक दोस्त ने सिगरेट सुलगाई तो मैं ने उस के हाथ से ले कर एक कश लगा लिया. उसी समय अंजली दीदी सब्जी ले कर घर लौट रही थी. उन की नजर मुझ पर पड़ी और मैं रंगेहाथ पकड़ा गया. वे तीर की तरह घर की तरफ भागों और मैं ने घबराहट में सिगरेट का एक और ऐसा दमदार कब लगाया कि मुझे चक्कर आने लगे. दोस्तों के सामने में ने शेखी बधारी कि में किसी से नहीं डरता. सिगरेट पीता हूं तो का हुआ? कोई चोरी तो नहीं की, डाका तो नहीं डाला.
मेरे दोस्तों ने मेरी पीठ ठोंक कर मुझे धावाची दी. मेरी हिम्मत वाकई काबिलेतारीफ थी. मैं ने खुश हो कर सब को एक इंपोटेड सिगरेट पिला दी. फिर में बर जाने के लिए मुहा, लेकिन कुल सोचकर रुक गया पर पहुंच ही कैसा हंगामा होगा, इस का अंदाजा था मुझे यहीं अब मीच कन दिनभर घर लौटने की मेरी हिम्मत न हुई पूरा दिन अपनी साइकिल पर सवार बाहर के चक्कर काटता रहा. सोचा कि चली लगेहाथ फिल्म देख डालें. लेकिन जब जेब में हाथ डाला तो पता चला कि टिकट के पैसे नहीं हैं. दोस्तों को इंपोर्टड सिगरेट जो पिला दी थी.
शाम को अंधेरा होने के बाद में इरतेडरते घर में दाखिल हुआ. मध्धी और डैड़ी बड़े कमरे में बैठे थे. उन के गंभीर बेहरों से साफ जाहिर था कि उन को अंजली दीदी से पता बल गया था कि मैं सिगरेट पीता हूँ. दे मेरी राह देख रहे थे. मल्नी के पीछे जंजली दीदी खड़ी चीं और उन के होंठों पर चिपकी हुई जहरीली मुसकान, नुकीने काटे की तरह चुभ रही थी मुझे. में समझ रहा था कि हैत्री अभी उड़ कर मेरे पास आएंगे और दोचार भारीभरकम सध्यड़ स्थीद करेंगे मुझे. लेकिन उन्होंने शांत आवाज में मुझे अपने पास बुला कर बिठाया.
हमारे परिवार में कोई किसी फिल्म का भी नशा नहीं करता था, न सिगरेट न शराब और न ही तंबाकू वाला पान. फिर मुझे यह लत कैसे लगी, इस बात का बड़ा अफसोस था उन्हें. काफी देर तक ये मुझे सिगरेट के नुकसान समझाते रहे. यह का कर डराया भी कि एक सिगरेट पीने से इंसान की उम्र 15 दिन कम ही जाती है. मैं बड़ी विनखता से सिर झुकाए उन की बातें सुनता रहा.
मन ही मन यह भी सोचता रहा कि अंजली दीदी से बदला कैसे लिया जाए? जब अदालत का समय समाप्त हुआ तब मैं ने ईडी को वचन दिया कि आग के बाद में सिगरेट फुड़ेगा तक नहीं. डैडी ने खुश हो कर मेरी पीठ थपथपाई और 500 रुपए का नोट मेरे हाथ में थमा कर कहा, ‘इस के फल खरीद कर ले आओ और रोज खाया की.
अपनी सेहत का खयात रखी. अंजली दीदी ने मिर्च लगाई, ‘डैडी, आप देख लेना, 500 रुपए यहा धुएं में उड़ा देगा. अब में ने अपने आप को वचन दिया, ‘अंजली दीदी की सबक सिखा के रहूंगा लेकिन वे इतनी चालाक थीं कि हर बार बढ़ कर निकल जातीं. मुश्किल से 3 दिन मैं ने अपने वादे पर अमल किया, मेरे दोस्त सिगरेट फूंकते तो उस की खुश्बू सूच कर ही में इस्मिन्नान कर लेता. लेकिन फिर मुझ में सात्र न हुआ और चौथे दिन पूरी इब्बी खरीद कर फूंक डाली, सिगरेट पीने वाले जानते हैं कि जब तलब लगती है तब इसान बेचैनी से कैरी फड़‌फड़ाता है.
कालेज की छुट्टियां शुरू हो गई गरमियों के दिन थे और सु. चलती थी, इसलिए बाहर जाने का मन नहीं करता था. एक दिन दोपहर में जब सब सो रहे थे, मौका देख कर मैं चुपचाप बाथरूम में गया अंदर से कुंडी लगाई और सिगरेट सुलगा जी. बड़े आराम से कमीध पर बैठ कर सिगरेट पीता रहा और सोचा, गाह, क्या जगह ढूंढ निकाली है में ने.’ लेकिन जब बाथरूम से निकलने के लिए दरवाजा खोलने लगा तो दिल धक से रह गधा, किसी ने बाहर से कुंडी लगा दी थी.
हमारे बाथरूम का एक दरवाजा आंगन की तरक खुलता था, मैं नै वह खोलना चाहा लेकिन उस की भी बाहर से कुंडी लगी हुई थी. दरवाजा खटखटा कर मैं ने जोर से पुकारा तो बाहर से अंजली दीदी की आवाज आई, बदतमीज, तुम कभी नहीं सुधरोगे. तुम्हारी यह हिम्मत कि घर में भी सिगरेट पीना शुरू कर दिया. अब हैडी ही आ कर खोलेंगे यह दरवाजा.’ मैं ने बहुत मिखत की, माफी मांगी, कसमें भी खाई लेकिन दीदी का दिल नहीं पसीजा. मदद के लिए मैं ने मम्मी की पुकारा लेकिन उन्हें भी मुझ पर तरस नहीं आया.
चीख कर बोली, ‘तेरी यहीं सजा है.’ शाम को हैडी ने घर लौट कर जब दरवाजा खोला तब तक मैं बातरूम की गरमी से निकाल हो चुका था. तिस पर हैडी ने आग देखा न लाग, गिन कर पूरे 4 मध्यह मेरे मुंह पर जड़ दिए. 1 घंटे तक
मेरा चेहरा लाल टमाटर बना रहा. उस खुशी और गहमागहमी के माहौल में मेरे सिगरेट पीने का जुर्म सब भूल गए थे. मैं भी इस बात से खुश था कि अब मुझे कुछ दिनों के लिए कोई तंग नहीं करेगा. अंकली दीदी की शादी की तैयारियां जोरों पर थीं और में भी अपने तरीके से इस मौके का मजा ले रहा था. लेकिन मेरी लत ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा.
शादी की रस्मों के बीच में भी मैं मौका पा कर सिगरेट पीने चला जाता. यह बात किसी से छिपी नहीं थी लेकिन उस वक्त सब इतने व्यस्त थे कि किसी ने मुझ पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. शादी का दिन आया और घर में चारों तरफ खुशियों का माहौल था. विदाई के वक्त अंजली दीदी मुझ से गले मिली और धीरे से कान में बोली, ‘भाई, मेरी शादी हो रही है, अब तुम बड़े हो गए हो. अब तो सिगरेट छोड़ दो.
‘ उन की इस बात ने मुझे अंदर से झकझोर दिया. में ने उन्हें वादा किया कि अब सिगरेट कभी नहीं पियूंगा. शादी के बाद में ने सचमुच सिगरेट छोड़ने की कोशिश की. हालांकि यह आसान नहीं था लेकिन हर बार जब सिगरेट पीने का मन करता, मुझ झे दीदी की वह बात याद आ जाती.
धीरेधीरे में ने खुद को सिगरेट से दूर करना शुरू कर दिया. और अब, जब मेरे दोस्त मुझ से सिगरेट छोड़ने की वजह पूछते हैं तो में सिर्फ मुस्कुरा कर कहता हूं, ‘कभीकभी जिंदगी में ऐसे मोड़ आते हैं जब आप समझ जाते हैं कि क्या सही है और क्या गलत. बस, वह दिन मेरे लिए वही मोड़ था.’ इस तरह, मेरी जिंदगी से सिगरेट की आदत भी चली गई और मैं एक नई शुरुआत की ओर बढ़ गया.

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