इस समय रात के 12 बज रहे हैं। सारा घर सो रहा है, पर मेरी आँखों से नींद गायब है। जब मुझे नींद नहीं आई, तब मैं उठकर बाहर आ गया। अंदर की उमस से बाहर चलती बयार बेहतर लगी, तो मैं बरामदे में रखी आराम कुर्सी पर बैठ गया। वहां जब मैंने आँखें मूंद लीं, तो मेरे मन के घोड़े बेलगाम दौड़ने लगे। सच ही तो कह रही थी रीमा, आखिर मुझे अपनी व्यस्त जिंदगी में इतनी फुर्सत ही कहाँ है कि मैं अपनी पत्नी सीमा की तरफ देख सकूँ।
“भैया, मशीन बनकर रह गए हैं आप। घर को भी आपने एक कारखाने में तब्दील कर दिया है।” आज सुबह चाय देते वक्त मेरी बहन रीमा मुझसे उलझ पड़ी थी। “तू इन बेकार की बातों में मत उलझ, अमेरिका से 5 साल बाद लौटी है तू, धूम, मौज-मस्ती कर। और सुन, मेरी गाड़ी ले जा। और हाँ, रक्षाबंधन पर जो भी तुझे चाहिए, प्लीज वह भी खरीद लेना और मुझसे पैसे ले लेना।”
“आपको सभी की फिक्र है, पर अपने घर को आपने कभी देखा है?” अचानक ही रीमा मुखर हो उठी थी, “भैया, कभी फुर्सत के 2 पल निकाल कर भाभी की तरफ तो देखो। क्या उनकी सूनी आँखें आपसे कुछ पूछती नहीं हैं?”
“ओह, तो यह बात है। उसने जरूर तुमसे मेरी चुगली की है। जो कुछ कहना था मुझसे कहती, तुम्हें क्यों मोहरा बनाया?”
“न भैया न, ऐसा न कहो,” रीमा का दर्द भरा स्वर उभरा, “बस, उनका निस्तेज चेहरा और सूनी आँखें देखकर ही मुझे उनके दर्द का एहसास हुआ। उन्होंने मुझसे कुछ नहीं कहा।” फिर वह मुझसे पूछने लगी, “बड़े मनोयोग से तिनका-तिनका जोड़कर अपनी गृहस्थी को सजाती और संवारती भाभी के प्रति क्या आपने कभी कोई उत्साह दिखाया है? आपको याद होगा, जब भाभी शादी करके इस परिवार में आई थीं, तो हंसना, खिलखिलाना, हाजिरजवाबी सभी कुछ उनके स्वभाव में कूट-कूट कर भरा था, लेकिन आपके शुष्क स्वभाव से सब कुछ दबता चला गया।
“भैया, आप अपनी भावनाओं के प्रदर्शन में इतने अनुदार क्यों हो जबकि यह तो भाभी का हक है?”
“हक… उसे हक देने में मैंने कभी कोई कोताही नहीं बरती,” मैं उस समय अपना आपा खो बैठा था, “क्या कमी है सीमा को? नौकर-चाकर, बड़ा घर, ऐशो-आराम के सभी सामान क्या कुछ नहीं है उसके पास। फिर भी यह…”
“अपने मन की भावनाओं का प्रदर्शन शायद आपको सतही लगता हो, लेकिन भैया, प्रेम की अभिव्यक्ति भी एक औरत के लिए जरूरी है।”
“पर रीमा, क्या तुम यह चाहती हो कि मैं अपना सारा काम छोड़कर सीमा के पल्लू से जा बंधूँ? अब मैं कोई दिलफेंक आशिक नहीं हूँ, बल्कि ऐसा प्रौढ़ हूँ जिससे अब सिर्फ समझदारी की ही अपेक्षा की जा सकती है।”
“पर भैया, मैं यह थोड़ी ही न कह रही हूँ कि आप अपना सारा कामधाम छोड़कर बैठ जाओ। बल्कि मेरा तो सिर्फ यह कहना है कि आप अपने बिजी शेड्यूल में से थोड़ा सा वक्त भाभी के लिए भी निकाल लो। भाभी को आपका पूरा नहीं बल्कि थोड़ा सा समय चाहिए, जब आप उनकी सुनें और कुछ अपनी कहें। सराहना, प्रशंसा तो ऐसे टॉनिक हैं जिनसे शादीशुदा जीवन फलता-फूलता है। आप सिर्फ उन छोटी-छोटी खुशियों को समेट लो, जो अनायास ही आपकी मुट्ठी से फिसलती जा रही हैं। कभी शांत मन से उनका दिल पढ़कर तो देखो, आपको वहाँ झील सी गहराई तो मिलेगी, लेकिन चंचल नदी सा अल्हड़पन नदारद मिलेगा।”
अचानक ही वह मेरे नजदीक आ गई और उसने चुपके से कल की पिक्चर के 2 टिकट मुझे पकड़ा दिए, फिर भरे मन से बोली, “भैया, इस से पहले कि भाभी डिप्रेशन में चली जाएं, संभाल लो उन्हें।”
“पर रीमा, मुझे तो ऐसा कभी नहीं लगा कि वह इतनी खिन्न, इतनी परेशान है,” मैं अभी भी रीमा की बात मानने को तैयार नहीं था।
“भैया, ऊपरी तौर पर तो भाभी सामान्य ही लगती हैं, लेकिन आपको उनका सूना मन पढ़ना होगा। आप जिस सुख और वैभव की बात कर रहे हो, उसका लेशमात्र भी लोभ नहीं है भाभी को। एक बार उनकी अलमारी खोल कर देखो, तो आपको पता चलेगा कि आपके दिए हुए सारे महंगे उपहार ज्यों के त्यों पड़े हैं और कुछ उपहारों की तो पैकिंग भी नहीं खुली है। उन्होंने आपके लिए क्या नहीं किया, आपको और आपके बेटों अनुज और नमित को शिखर तक पहुंचाने में उनका योगदान कम नहीं रहा। माँ-बाबूजी और मेरे प्रति अपने कर्तव्यों को उन्होंने बिना शिकायत पूरा किया, तो आप अपने कर्तव्य से विमुख क्यों हो रहे हैं?”
“पर पगली, पहले तू यह तो बता कि इतने ज्ञान की बातें कहाँ से सीख गई? तू तो अब तक एक अल्हड़ और बेपरवाह सी लड़की थी,” मैं रीमा की बातों से अचंभे में था।
“क्यों भैया, क्या मैं शादीशुदा नहीं हूँ। मेरा भी एक सफल गृहस्थ जीवन है। समीर का स्नेहिल साथ मुझे एक ऊर्जा से भर देता है। सच भैया, उनकी एक प्यार भरी मुस्कान ही मेरी सारी थकान दूर कर देती है।” इतना कहते-कहते रीमा के गाल शर्म से लाल हो गए थे। “अच्छा, ये सब छोड़ो भैया और ज़रा मेरी बातों पर गौर करो। अगर आप कदम भी उनकी तरफ बढ़ाओगे, तो वे 10 कदम बढ़ाकर आपके पास आ जाएंगी।”
“अच्छा मेरी माँ, अब बस भी कर। मुझे ऑफिस जाने दे, लेट हो रहा हूँ मैं,” इतना कहकर मैं तेजी से बाहर निकल गया था। वैसे तो मैं सारा दिन ऑफिस में काम करता रहा, पर मेरा मन रीमा की बातों में ही उलझा रहा। फिर घर लौटा तो यही सब सोचते-सोचते कब मेरी आँख लगी, मुझे पता ही नहीं चला। मैं उसी आरामकुर्सी पर सिर टिकाए-टिकाए सो गया।
“भैया ये लो चाय की ट्रे और अंदर जाकर भाभी के साथ चाय पियो,” रीमा की इस आवाज से मेरी आँख खुली।
“तू भी अपना कप ले आ, तीनों एकसाथ ही चाय पिएंगे,” मैं आँखें मलता हुआ बोला।
“न बाबा न, मुझे कबाब में हड्डी बनने का कोई शौक नहीं है,” इतना कहकर वह मुझे चाय की ट्रे थमा कर अंदर चली गई। जब मैं ट्रे लेकर सीमा के पास पहुंचा, तो मुझे अचानक देखकर वह हड़बड़ा गई, “आप चाय लेकर आए, मुझे जगा दिया होता। और रीमा को भी चाय देनी है, मैं देकर आती हूँ।” कहकर वह बैड से उठने लगी तो मैं उससे बोला, “मैडम, इतनी परेशान न हो, रीमा भी चाय पी रही है।” फिर मैंने चाय का कप उसकी तरफ बढ़ा दिया। चाय पीते वक्त जब मैंने सीमा की तरफ देखा, तो पाया कि रीमा सही कह रही है। हर समय हंसती रहने वाली सीमा के चेहरे पर एक अजीब सी उदासी थी, जिसे मैं आज तक या तो देख नहीं पाया था या उसकी अनदेखी करता आया था। जितनी देर में हमने चाय खत्म की, उतनी देर तक सीमा चुप ही रही।
“अच्छा भाई, अब आप दोनों जल्दीजल्दी नहा-धोकर तैयार हो जाओ, नहीं तो आप लोगों की मूवी मिस हो जाएगी,” रीमा आकर हमारे खाली कप उठाते हुए बोली।
“लेकिन रीमा, तुम तो बिलकुल अकेली रह जाओगी। तुम भी चलो न हमारे साथ,” मैं उससे बोला।
“न बाबा न, मैं तो आप लोगों के साथ बिलकुल भी नहीं चल सकती, क्योंकि मेरा तो अपने कॉलेज की सहेलियों के साथ सारा दिन मौज-मस्ती करने का प्रोग्राम है। और हाँ, शायद डिनर भी बाहर ही हो जाए।” फिर रीमा और हम दोनों तैयार हो गए। रीमा को हमने उसकी सहेली के यहाँ ड्रॉप कर दिया, फिर हम लोग पिक्चर हॉल की तरफ बढ़ गए।
“कुछ तो बोलो। क्यों इतनी चुप हो?” मैंने कार ड्राइव करते समय सीमा से कहा, पर वह फिर भी चुप ही रही। मैंने सड़क के किनारे अपनी कार रोक दी और उसका सिर अपने कंधे पर टिका दिया। मेरे प्यार की ऊष्मा पाते ही सीमा फूट-फूट कर रो पड़ी और थोड़ी देर रो लेने के बाद जब उसके मन का आवेग शांत हुआ, तब मैंने अपनी कार पिक्चर हॉल की तरफ बढ़ा दी। मूवी वाकई बढ़िया थी और सीमा की पसंद की थी। थोड़ी देर बाद उसे महसूस हुआ कि वह सही है, लेकिन रीमा सही है। तब उसने खुद को संभाला और प्यार से रीमा को धन्यवाद किया।