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महिलाओं के लिए नागा साधु बनने की कठिन प्रक्रिया
धर्म

महिलाएं अपने आध्यात्मिक सफर में खुद को तलाश रही हैं

महाकुंभ 2025: महिलाओं ने लिया संन्यास का संकल्प, बनेगीं नागा साध्वियां

प्रयागराज के महाकुंभ में महिलाओं ने संन्यास की ओर कदम बढ़ाए हैं, और इस बार के कुम्भ में सबसे अधिक महिला संन्यासियों के दीक्षा लेने का ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनने जा रहा है। श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े की महिला संत दिव्या गिरी के अनुसार, इस बार अकेले उनके अखाड़े में 200 से अधिक महिलाओं की संन्यास दीक्षा होगी। अगर अन्य अखाड़ों को भी जोड़ा जाए, तो यह संख्या हजार का आंकड़ा पार कर जाएगी।

महिलाओं के लिए नागा साधु बनने की राह काफी कठिन होती है। इसमें 10 से 15 साल तक कठोर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना होता है। गुरु को अपनी योग्यता और ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रमाण देना होता है। महिला नागा साधुओं को जीवित रहते हुए अपना पिंडदान और मुंडन भी जरूर करना होता है। इस कठिन प्रक्रिया के बावजूद, महिलाएं अपना संकल्प लेकर महाकुंभ में हिस्सा ले रही हैं।

महिलाओं का संन्यास लेना समाज में न केवल एक नई सोच को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि उनके आत्मविश्वास को भी नई ऊंचाइयों पर ले जा रहा है। यह कदम न केवल धार्मिक, बल्कि महिलाओं की स्वावलंबन की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की शुरुआत कर रहा है। साथ ही, ये महिला साध्वी अपने संन्यास के जरिए समाज को एक संदेश भी दे रही हैं कि महिलाओं को भी आध्यात्मिक ऊंचाइयों तक पहुंचने का पूरा अधिकार है।

महाकुंभ के इस आयोजन में, महिलाएं न केवल अपनी धार्मिक यात्रा पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं, बल्कि अपने संघर्षों को भी इस माध्यम से साझा कर रही हैं। यह आयोजन न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में महिलाओं की शक्ति और आध्यात्मिक क्षमता को पहचानने का एक महत्वपूर्ण मंच बन गया है। महिलाएं इस अवसर का उपयोग कर अपने अंदर की शक्ति को पहचान रही हैं और एक नए जीवन की शुरुआत कर रही हैं।

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