Jansansar
How stupid a woman is
लाइफस्टाइल

औरत कितनी बेवकूफ होती है

वह सुबह उठी, प्रार्थना की और रसोई में आ गई। चाय के लिए चूल्हे पर पानी रखा। फिर बच्चों को जगाया ताकि वे स्कूल के लिए तैयार हो सकें। रसोई में जाकर चाय बनाई और अपने सास-ससुर को दे दी। इसके बाद उसने अपने बच्चों के लिए नाश्ता बनाना शुरू किया।
बच्चे जब तैयार हो गए, तो उन्होंने नाश्ता किया और उसने बच्चों का लंच बनाया। इसी बीच बच्चों की वैन आ गई और उसने बच्चों को स्कूल भेजा। फिर टेबल से बर्तन उठाकर साफ किए। इतने में उसके पति ऑफिस के लिए तैयार हो गए थे, तो उसने उनके ज़रूरी सामान निकाल कर दे दिए। जल्दी से किचन में आई और पति के लिए नाश्ता बनाने लगी।
इसी बीच, देवर भी यूनिवर्सिटी के लिए तैयार हो गया था। उसने जल्दी से पति और देवर के लिए नाश्ता बनाया और उन्हें परोस दिया। 9:00 बजे जब पति ऑफिस के लिए गए, तो उसने टेबल से बर्तन उठाए और सास-ससुर के लिए नाश्ता बनाया। जब तक सास-ससुर नाश्ता करते, तब तक वह रसोई साफ कर बर्तन धो चुकी थी।
सास-ससुर के नाश्ते के बर्तन समेट रही थी कि तभी सफाई वाली आ गई। उसके साथ मिलकर घर की साफ-सफाई भी की। सफाई वाली को विदा किया, तभी दरवाजे की घंटी बजी। उसकी विवाहित ननद अपने दो छोटे बच्चों के साथ आ गई। मेहमानों के लिए जल्दी-जल्दी चाय और कुछ नाश्ता तैयार किया।
अब 12:00 बज रहे थे। वह जल्दी से रसोई में खाना बनाने लगी, तभी सास की आवाज़ आई, “आज अपनी ननद के लिए कुछ अच्छा बनाना।” उसने ननद के लिए विशेष खाना बनाया और जल्दी-जल्दी रोटी बनाने लगी क्योंकि 1:00 बजे बच्चे स्कूल से आने वाले थे।
बच्चे जब स्कूल से आए, तो उन्होंने मुंह धोए, कपड़े बदले, और उसने उन्हें खाना खिलाया। तभी कॉलेज से छोटी आ गई और देवर भी वापस आ गया। उसने सबके लिए जल्दी-जल्दी रोटियां बनाईं और सबको परोसकर खिलाया। जब सब खा चुके, तो तीन बज चुके थे और उसे अचानक भूख लगी।
उसने मेज पर हॉट पॉट में देखा, तो एक भी रोटी नहीं बची थी। वह सब बर्तन समेट कर रसोई में जा ही रही थी कि तभी उसका पति घर में दाखिल हुआ। उसे देखकर पति ने कहा, “मुझे बहुत भूख लगी है, जल्दी से खाना निकालो।” वह झट से रसोई में गई और अपने पति के लिए रोटियां और सब्जी बनाने लगी।
जब उसने अपने पति के लिए खाना बनाया, तब 4 बज चुके थे। उसके पति ने कहा, “आओ, तुम भी खा लो।” उसने आश्चर्य से अपने पति की ओर देखा क्योंकि उसने सुबह से कुछ नहीं खाया था। वह पति के साथ खाना खाने बैठ गई। जब उसने अपने मुंह में रोटी का टुकड़ा रखा, तो उसकी आंखों से आंसू निकल पड़े।
उसके पति ने पूछा, “तुम रो क्यों रही हो?” उसने मन में सोचा, “मैं इनसे क्या कहूं, ये क्या जानते हैं कि ससुराल में इतनी मेहनत के बाद मुझे यह रोटी मिलती है, जिसे लोग मुफ्त की रोटी कहते हैं।” उसने अपने पति को उत्तर दिया, “कुछ नहीं।”
उसके पति ने कहा, “औरत कितनी बेवकूफ होती है, किसी कारण के बिना ही रोने लगती है।”
इस कहानी से हमने यह सीखा कि औरतें अक्सर अपने परिवार के लिए बिना किसी शिकायत के बहुत सारी जिम्मेदारियां निभाती हैं। वे सुबह से लेकर रात तक सबकी देखभाल करती हैं, लेकिन उनके इस योगदान को अक्सर नजरअंदाज किया जाता है।
इस कहानी से यह भी सिखने को मिलता है कि कभी-कभी छोटी-छोटी बातों पर भी ध्यान देना चाहिए और अपने परिवार के सदस्यों के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिए। किसी के काम को हल्के में नहीं लेना चाहिए और उनकी मेहनत और त्याग की कद्र करनी चाहिए।
सबसे महत्वपूर्ण, यह कहानी यह बताती है कि बिना वजह दूसरों के भावनात्मक संघर्षों को समझे बिना उन्हें बेवकूफ समझना गलत है। उनके त्याग और मेहनत को समझने की कोशिश करनी चाहिए।

Related posts

उम्र की इस दहलीज़ पर: एक माँ की दर्द भरी यात्रा

Jansansar News Desk

समय की अहमियत और जीवन के खोए अवसर: विराज की कहानी

Jansansar News Desk

उम्र का अहसास और परिवार का समर्थन: शिवराम जी की कहानी

Jansansar News Desk

सच्चे प्रेम की धैर्यवान यात्रा: निखिल और सपना की कहानी

Jansansar News Desk

नेहा के संकट का समाधान: पुलिस की मदद से समाधान की दिशा

Jansansar News Desk

खुशी का असली अहसास: पैसे से ज्यादा मायने रखता है परिवार

Jansansar News Desk

Leave a Comment