एक बहुत अमीर सेठ थे, वह इतने अमीर थे कि उन्हें पता ही नहीं था कि उनके पास कितनी संपत्ति है! उनके हर छोटे-मोटे काम के लिए कई सारे नौकर थे। सारे काम नौकर ही कर लिया करते थे, इसलिए सेठ जी के पास करने के लिए कोई काम नहीं होता था। जैसे कि हम सब जानते हैं, खाली दिमाग तरह-तरह के विचारों को प्रेरित करता है। सेठ जी के मन में भी खाली बैठे-बैठे कई अलग-अलग तरह के विचार आते थे। एक दिन, खाली बैठे-बैठे सेठ जी को एक विचार आया कि क्यों न अपनी पूरी संपत्ति का हिसाब लगाया जाए, ताकि उन्हें पता चले कि उनके पास कुल मिलाकर कितनी दौलत है!
विचार आते ही सेठ जी ने अपने अकाउंटेंट को बुलाया और कहा, “मैं तुम्हें 7 दिनों की मोहलत देता हूं, एक अच्छी सी रिपोर्ट तैयार करो जिसमें मेरी संपत्ति का पूरा-पूरा हिसाब लिखा हो।” अकाउंटेंट ने हां कह कर काम शुरू कर दिया।
7 दिनों बाद, अकाउंटेंट सेठ जी के पास आया और कहा, “माफ कीजिए सेठ जी, इन 7 दिनों में भी मैं आपकी संपत्ति का पूरा हिसाब नहीं लगा पाया, लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि आपके पास इतनी संपत्ति है कि आपकी 7 पीढ़ियां बिना काम किए आराम से जी सकती हैं।”
सेठ जी यह सुनकर खुश हो गए और अकाउंटेंट से कहा, “ठीक है, तुम 15-20 दिन और ले लो और एक अच्छी सी रिपोर्ट तैयार करके मुझे दिखा दो।” अकाउंटेंट के जाने के बाद, सेठ जी के मन में एक और विचार आया। उन्होंने सोचा, “मेरी 7 पीढ़ियां तो आराम से जी लेंगी, लेकिन मेरी 8वीं पीढ़ी का क्या होगा?” यह विचार उनके दिमाग में बंद घड़ी की सुई की तरह अटक गया।
वह घर पहुंचे, लेकिन उनके दिमाग में यही विचार घूमता रहा। ना वह अपने पोता-पोती के साथ खेल पा रहे थे, ना ही सेठानी से बात कर रहे थे। सेठानी ने उनसे पूछा, “क्या हुआ है?” लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। सेठ जी ने सोचा कि अगर मैं यह बात किसी को बताता हूं, तो सब मुझे पागल समझेंगे कि 7 पीढ़ियों तक की दौलत होने के बावजूद मुझे चिंता क्यों हो रही है!
सेठ जी इस विचार को अपने दिमाग से हटाने में असमर्थ थे। एक-दो दिन बाद, उन्हें कहीं से पता चला कि उनके शहर में एक सिद्ध गुरु जी आए हैं, जो कथा करते हैं। सेठ जी ने सोचा, “चलो जाकर कथा सुनते हैं, शायद मन को शांति मिलेगी।”
सेठ जी गुरुजी के पास चले गए। उन्होंने कथा सुनी, लेकिन उनके चेहरे की चिंता देखकर गुरु जी ने उनसे पूछा, “तुम्हें क्या परेशानी है, मुझे बताओ।” तब सेठ जी ने कहा, “देखिए गुरु जी, मेरे पास इतना धन है कि मेरी 7 पीढ़ियां आराम से जी सकती हैं, मगर मेरी 8वीं पीढ़ी का क्या होगा? बस यही चिंता मुझे खाए जा रही है।”
गुरुजी ने सेठ जी को कहा, “तुम चिंता मत करो। मैं जो उपाय बताता हूं, उसे अगर तुम करोगे तो तुम्हारी सभी पीढ़ियों का भला होगा।” सेठ जी ने कहा, “अगर ऐसा हुआ तो बहुत अच्छा होगा, और आप जो कहेंगे, मैं वह करने के लिए तैयार हूं।”
गुरुजी ने कहा, “तुम्हारे शहर के पूर्व में, आखिरी छोर पर एक बुढ़िया, शांति देवी, एक झोपड़ी में रहती है। तुम उसे 100 किलो आटा दान कर आओ, बस तुम्हारा काम हो जाएगा।” सेठ जी बड़े खुश हो गए और सोचा, “अपने सभी पीढ़ियों का भला करने का यह तो बड़ा आसान उपाय है।”
सेठ जी अपने नौकरों के साथ 100 किलो आटा लेकर शांति देवी के पते पर चल पड़े। वहां पहुंचने पर, सेठ जी ने देखा कि शांति देवी अभी-अभी खाना खाकर उठी हैं और भगवान का नाम ले रही हैं।
सेठ जी ने उनके पास जाकर कहा, “मांजी, मुझे पता नहीं था कि आप यहां रहती हैं, वरना मैं बहुत पहले ही आपको ढेर सारा अनाज पहुंचा देता। चलिए, यह लीजिए, मैं आपके लिए 100 किलो आटा लेकर आया हूं। इससे आप 6 महीने तक आराम से बिना खाने की चिंता किए रह सकती हैं।”
शांति देवी ने कहा, “मैंने आज का खाना खा लिया है, अब मुझे इस आटे की कोई जरूरत नहीं है!” तब सेठ जी ने कहा, “भले ही आपने आज का खाना खा लिया है, मगर आपको आगे का भी विचार करना चाहिए। कम से कम 5 किलो आटा रख लीजिए, इससे आपको 15 दिनों तक के लिए चिंता करने की जरूरत नहीं होगी।” शांति देवी ने फिर से मना कर दिया।
जब वह नहीं मानीं, तब सेठ जी ने कहा, “ठीक है, कम से कम आधा किलो आटा ले लीजिए, ताकि आपको आने वाले कल के लिए खाना जुटाने की जद्दोजहद नहीं करनी पड़ेगी।” तब भी शांति देवी ने मना कर दिया और कहा, “आज का खाना मैंने खा लिया है, और जिस भगवान ने मेरे आज के खाने का बंदोबस्त किया है, वही मेरे कल के खाने का भी बंदोबस्त कर देगा। तो आपको मेरी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, आप जाइए और आराम करिए।”
यह सुनकर सेठ जी को समझ में आ गया कि गुरुजी ने उन्हें इसी बूढ़ी औरत के पास दान करने के लिए क्यों भेजा था। वह सेठ जी को बताना चाहते थे कि हमें आज में जीना चाहिए, और जो भगवान देता है उसमें संतोष करना चाहिए, आगे की चिंता नहीं करनी चाहिए।