एक बहुत बड़ा नामी राजा था। बहुत शूरवीर, बहुत बलवान, बहुत पराक्रमी। राजा अपनी बहादुरी से नई-नई राज्यों को जीतकर, अपने राज्य का विस्तार दिन दोगुना और रात चौगुनी गति से बढ़ाए जा रहा था।
धन-दौलत, सेना, जमीन, शोहरत किसी चीज की उसे कोई कमी नहीं थी। इतना सब कुछ होने के बाद भी राजा को जिस एक चीज की कमी थी वह था संतान सुख।
राजा ने संतान पाने के लिए हर वह तरीका अपनाया जो अपना सकता था। वैद्य, हकीम सबसे अपना इलाज कराया। मंदिर, मस्जिद हर जगह मन्नतें मांगी। कई यात्राएं कीं, कई हवन-यज्ञ किए। तब जाकर कहीं उसके घर में पालना हिला।
संतान होने की खुशी उस राजा को इतनी ज्यादा हुई के ऐसी खुशी उसे किसी राज्य को जीतने में भी नहीं हुई थी। इस खुशी को अपनी प्रजा के साथ बांटने के लिए राजा ने एक ऐलान किया कि अगले दिन 9:00 बजे वह अपने महल के दरवाजे लोगों के लिए खोल देगा और जो भी व्यक्ति जिस भी वस्तु पर हाथ रखेगा, वह उसको दे दी जाएगी।
जैसे जंगल में आग फैलती है, वैसे यह खबर पूरे राज्य में फैल गई। पूरे राज्य में बस अब इसी की चर्चाएं होने लगीं। लोग समूह बनाकर एक दूसरे से विचार-विमर्श करके योजनाएं बनाने लगे कि वह किन-किन वस्तुओं पर हाथ रखेंगे। कोई कहता वह घोड़े पर हाथ रखेगा। कोई कहता हाथी पर, कोई कहता रथ पर, कोई कहता वह कीमती हीरे-जवाहरात पर हाथ रखेगा। कोई कहता वह राजा के महल पर हाथ रखेगा। लोगों ने अपने-अपने हिसाब से तय कर लिया कि वह किन-किन वस्तुओं को हाथ लगाकर अपना बना लेंगे।
राजा के राज्य में एक छोटा सा परिवार भी रहता था, माता-पिता और एक 8 साल का छोटा बच्चा। जब हर तरफ इसी बात की चर्चा हो रही थी, तो उस बच्चे के मन में जिज्ञासा उठी और उसने अपने माता-पिता से कहा कि मुझे भी आप कल राजा के महल में लेकर चलिएगा.. मुझे भी कुछ चाहिए। बच्चे के माता-पिता ने उसे बहुत समझाया कि तुम अभी छोटे हो। तुम्हें भला इन सब से क्या मतलब? लेकिन बच्चा जिद पकड़ कर बैठ गया। बच्चे की जिद के आगे उसके माता-पिता ने हार मान ली और बच्चे को भी वहां ले जाने का तय हुआ।
राजा के आदेश अनुसार अगले दिन 9:00 बजे राजा के महल के द्वार खोल दिए गए। वहां पर पहले से ही हजारों की तादाद में लोग मौजूद थे। जैसे ही द्वार खुले, सब अंदर घुसे और अपने हिसाब से हर कीमती से कीमती वस्तुओं पर हाथ रखकर उसे अपना बनाने लगे।
इस भीड़ में वह 8 साल का बच्चा भी था, जो अपने माता-पिता के साथ आया था। बच्चे ने भीड़ में अपने माता-पिता से हाथ छुड़ा लिया और कहीं गायब हो गया। बच्चे को अपने साथ न पाकर उसके माता-पिता बहुत परेशान हो गए और उसे इधर-उधर ढूंढने लगे। थोड़ी देर बाद माता-पिता ने देखा कि उनका बच्चा तेज दौड़ लगाते हुए सीधे राजा के सिहासन की तरफ जा रहा था। बच्चा राजा के सिहासन तक पहुंचा और बच्चे ने सीधे राजा के ऊपर हाथ रख दिया और चिल्लाके बोला आज से यह राजा मेरा है और इसके साथ यह सारी प्रजा भी!!
दोस्तों, छोटी सी ये हिंदी कहानी हमें जिंदगी का बहुत बड़ा पाठ सिखाती है। हम जीवन भर क्षणभंगुर और विनाशी वस्तुओं के पीछे दौड़ते रहते हैं। हमें लगता है कि इन वस्तुओं को पाकर हमें सुख मिलेगा, हमें आनंद मिलेगा। और इन सब में हम उस अविनाशी शक्ति को भूल जाते हैं जिसने हम सब को बनाया है, जिसे पाकर हम धन्य हो सकते हैं।
अपने जीवन की फालतू की रेस से थोड़ा समय निकालकर ध्यान लगाकर सोचिए कि जिन चीजों के लिए इतनी भागदौड़ मचा रहे हो क्या हमारे जीवन का यही लक्ष्य है? क्या हम किसी छोटे और झूठे लक्ष्य का पीछा कर रहे हैं, जो ज्यादा दिनों तक नहीं टिकने वाला? क्या हमें ऐसी चीजों के पीछे अंधी दौड़ लगानी चाहिए जो एक दिन खत्म हो जाएगी?
सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में सिर्फ क्षणिक सुखों के पीछे भागने के बजाय हमें उन मूल्यों को अपनाना चाहिए जो स्थायी हैं। असली संतुष्टि और खुशी बाहरी चीजों से नहीं, बल्कि अंदरूनी शांति और आत्म-साक्षात्कार से मिलती है। हमें जीवन के सच्चे लक्ष्यों की पहचान करनी चाहिए और अपनी ऊर्जा सही दिशा में लगानी चाहिए।