राजस्थान के एक सज्जन आदमी, नंदलाल प्रजापति, ने अपने सेविंग्स का बड़ा हिस्सा खर्च करके एक सुंदर दो मंजिला घर खरीदा। यह घर केवल अपनी सुंदरता के लिए नहीं, बल्कि इसके पीछे के आम के पेड़ों के कारण भी विशेष था, जो नंदलाल की धर्मपत्नी को बहुत पसंद थे।
घर की ख़रीदारी के बाद, कई लोगों ने नंदलाल को सलाह दी कि वह घर के वास्तु की जांच भी करा लें। इस सुझाव को मानते हुए, नंदलाल ने दिल्ली के एक प्रख्यात वास्तुशास्त्री को अपने घर पर बुलाया। वास्तुशास्त्री ने फ्लाइट लेकर जयपुर का सफर किया, और नंदलाल ने उन्हें अपनी गाड़ी से रिसीव किया।
गाड़ी में यात्रा के दौरान, वास्तुशास्त्री ने देखा कि नंदलाल हर उस गाड़ी को रास्ता दे रहे थे जो उन्हें ओवरटेक करके आगे बढ़ना चाहती थी। इस पर वास्तुशास्त्री ने नंदलाल से पूछा, “आप हर किसी को रास्ता क्यों दे रहे हैं?”
नंदलाल ने उत्तर दिया, “हो सकता है इन लोगों को हमसे ज्यादा जरूरी काम हो। हमारा क्या है, हम आराम से चले जाएंगे।”
थोड़ी देर बाद, एक बच्चा सड़क पर दौड़ते हुए गुज़रा। नंदलाल ने तुरंत ब्रेक लगाई और तब तक गाड़ी में ही बैठे रहे जब तक कि बच्चे का रास्ता सुरक्षित हो गया। फिर नंदलाल ने गाड़ी चलाना शुरू किया। इस पर वास्तुशास्त्री ने पूछा, “आपको कैसे पता था कि यहां से एक और बच्चा गुज़रेगा?”
नंदलाल ने मुस्कराते हुए कहा, “याद कीजिए शास्त्री जी, जब हम बच्चे थे तो क्या हम अकेले खेलते थे? हमारे पीछे और भी बच्चे होते थे। इसलिए मैंने सोचा कि इस बच्चे के पीछे भी और बच्चे होंगे, उन्हें चोट न लगे इसलिए मैं रुका।”
गाड़ी चलाते हुए, जब वे नंदलाल के नए घर के पास पहुँचे, तो नंदलाल ने देखा कि घर के पीछे से कुछ पंछी उड़कर आ रहे थे। नंदलाल ने फिर से गाड़ी में बैठे रहने का अनुरोध किया और कहा, “घर के पीछे आम के पेड़ हैं। पंछी उड़ते हुए दिखे तो इसका मतलब कुछ बच्चे आम तोड़ रहे होंगे। अगर हम उन्हें दिख जाएंगे, तो हड़बड़ी में गिर सकते हैं और चोट लग सकती है। हमें थोड़ी देर इंतजार करना चाहिए।”
कुछ समय बाद, सचमुच कुछ बच्चे आम तोड़ते हुए दिखाई दिए। नंदलाल ने कहा, “अब चलिए, घर आ गया है, घर का वास्तु देख लीजिए।”
वास्तुशास्त्री ने मुस्कराते हुए जवाब दिया, “मुझे आपके घर का वास्तु देखने की कोई आवश्यकता नहीं है।”
नंदलाल को लगा कि कहीं वह गलती तो नहीं कर बैठे। उन्होंने विनम्रता से पूछा, “माफ कीजिए, अगर मुझसे कोई गलती हो गई हो तो।”
वास्तुशास्त्री ने हाथ जोड़ते हुए कहा, “नहीं, आप से कोई गलती नहीं हुई है। आप जैसे स्वभाव के आदमी जहाँ भी रहेंगे, वहाँ कोई वास्तुदोष नहीं हो सकता। बल्कि मैं तो कहूंगा कि किसी भी वास्तुदोष वाली जगह को आप जैसे लोग दुनिया की सबसे अच्छी जगह बना देंगे। आपके मन में सबके लिए दया और प्रेम है। आप हमेशा दूसरों की सोचते हैं, इसलिए कोई वास्तु, कोई मुश्किल आप जैसे लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ सकती।”
यह कहानी हमें सिखाती है कि असली अच्छाई और समृद्धि किसी घर के वास्तु या भौतिक सुविधाओं में नहीं, बल्कि हमारे स्वभाव और दया भाव में होती है। नंदलाल प्रजापति की उदारता और दया ने साबित कर दिया कि सच्चे सुख और शांति का घर हमारे अपने स्वभाव में छिपा होता है।
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