करीब 300 साल पहले, एक गांव में एक महिला रहती थी, जिसकी शादी को 12 साल हो चुके थे, लेकिन उसे मां बनने का सौभाग्य नहीं मिला था। अपने जीवन में संतान सुख पाने के लिए उसने अनगिनत कोशिशें कीं—हर मंदिर, मस्जिद, और गुरुद्वारे में माथा टेका, सभी उपवास और अनुष्ठान किए। आखिरकार, उसकी तपस्या रंग लाई और उसे एक सुंदर बेटे का आशीर्वाद मिला। 12 साल के दर्द और आंसू, जब उसने अपने बेटे का चेहरा देखा, तो उसकी दुनिया खुशियों से भर गई।
लेकिन उसकी खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं टिकी। जब उसका बेटा एक साल का हुआ, तो एक दूसरी महिला ने उसे चुरा लिया। यह खबर सुनकर उस मां का दिल टूट गया। जिसने अपनी पूरी दुनिया अपने बेटे में देखी थी, वह अब उसे ढूंढने के लिए दर-दर भटकने लगी। उसने पूरे गांव, जंगल और शहर में उसे ढूंढा, और आखिरकार एक दिन उसे पता चला कि उसका बेटा किसके पास है।
वह महिला उस चोर के पास पहुंची और अपने बच्चे को वापस करने की गुहार लगाई, लेकिन चोर ने भी दावा किया कि बच्चा उसका है। मामला राजा के दरबार तक पहुंचा, जहां दोनों महिलाएं अपने-अपने अधिकार जताने लगीं। राजा और उसके दरबारी सोच में पड़ गए, क्योंकि दोनों महिलाएं बच्चे के बारे में समान बातें बता रही थीं—उसकी आदतें, पसंद, और शरीर के निशान।
जब कोई हल नजर नहीं आया, तो राजा के मंत्री ने सुझाव दिया कि बच्चे के दो हिस्से कर दिए जाएं और दोनों को एक-एक हिस्सा दे दिया जाए। असली मां यह सुनकर सन्न रह गई और रोते हुए राजा के पैरों में गिर पड़ी। उसने विनती की कि बच्चा चाहे दूसरी महिला को दे दिया जाए, पर उसका नुकसान न किया जाए, क्योंकि वह अपने बेटे को जीवित देखना चाहती थी, चाहे वह उसके पास रहे या न रहे।
मंत्री ने राजा से कहा कि यही महिला बच्चे की असली मां है, क्योंकि वही मां अपने बच्चे की भलाई के लिए अपना दावा छोड़ सकती है। राजा ने तुरंत बच्चे को असली मां को सौंप दिया और दूसरी महिला को सज़ा सुनाई। लेकिन असली मां ने दरबार में दूसरी महिला को माफ करने की प्रार्थना की, क्योंकि वह भी मां बनने की तड़प से गुज़री थी और उसने बच्चे को प्यार से पाला था।