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"माँ की दर्दनाक सच्चाई: एक भावुक अंतिम मुलाकात"
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“अंतिम मुलाकात: एक वृद्धा की पीड़ा और परिवार की विडंबना”

“वृद्धा का अन्तिम संघर्ष: एक बेटी की मार्मिक कहानी”

“अत्याचार और आंसू: एक मां की अंतिम मुलाकात की कहानी”

“खुद को बदलने का संकल्प: अंतिम मुलाकात की भावनात्मक कथा”

“अंतिम मुलाकात” मार्मिक कहानी 👇

दोमंजिला मकान के पास टैक्सी रुकते ही निशा उस मकान के अंदर प्रवेश कर गई, फिर वह सीधे अपनी माँ सरिता के पास पहुंच गई। उसके पीछे-पीछे उसकी भाभी साक्षी भी चली आई।

“कमरे में अंधेरा है दिन में भी।”

“प्लग में कुछ खराबी आ गई है, मिस्त्री कल बना देगा, मैं जाती हूँ कैंडिल लेकर आती हूँ” कहती हुई साक्षी चली गई।

मां के चरणों को स्पर्श करने पर सरिता ने कहा,
“कौन?..”

“हम निशा!..”

“कब आई बेटी!..”
“अभी तुरंत।”

“मेहमान भी साथ आए हैं।”
“नहीं! ऑफिस के काम से बाहर गए हुए हैं।”
“हाल-सामाचार?”

“सब ठीक-ठाक है, अपना हाल-सामाचार बताओ” कहते-कहते उसने मोबाइल जलाकर देखा तो उसका कलेजा मुंह को आ गया, वह पहचान नहीं पाई कि वह वही गौरैया की तरह चहकने-फुदकने वाली उसकी मां है?
क्षण-भर के लिए वह किंकर्तव्यविमूढ़ सी देखती रह गई।
अस्थि पंजर सदृश रुग्ण देह पर अव्यवस्थित वस्त्रों को संभालती हुई उसने बेहद धीमी आवाज में कहा, “हम क्या करें बेटी?.. तुम्हारे बापू के गुजर जाने के बाद तो हम अपने ही घर में भिखारिन हो गई। हर चीज़ के लिए तरसना पड़ता है। इधर पन्द्रह-बीस दिनों से ही काम नहीं करने की छूट मिली है.. जब मेरा समांग (शक्ति) खत्म हो गया।”

“तुम्ही सब काम करती थी?”

“सुबह पांच बजे से ही बासन-बर्तन मांजना, झाड़ू देना, पोछा मारना, रसोई-घर को साफ करना, नल से पानी भरना..” कहते-कहते वह हांफने लगी। फिर पल-भर ठहरकर उसने कहा, “बेटा आरव सुबह टहलने के लिए निकल जाता है और यह महारानी देर रात तक टी. वी. देखती है, दिन में कभी आठ बजे, कभी नौ बजे उठती है। पोता-पोती तो तुम जानती ही हो, वह शहर के होस्टल में रहकर पढ़ाई करता है।”

“भाई कुछ बोलता या समझाता नहीं है।”

“उसने एक बार बिगड़ कर कहा था कि घरेलू काम मिल-जुलकर करो, किन्तु इस बात से वह दुख मान गई, और उसने खटवास-पटवास ले लिया था, दो दिनों तक चूल्हा गरम नहीं हुआ, घर में मातम पसरा रहा, तब आरव
ने उसे बहुत समझाया, उसकी खुशामद की तब कहीं जाकर मानी।”

“खाना वगैरह समय पर मिल जाता है।”

“देख यही एक थाल और ग्लास है, दिन में कभी एक बार, कभी दो बार दो रोटियां, कभी सब्जी, कभी अचार या कभी नमक के साथ इस शर्त पर मिलती है कि खाने के बाद थाली और ग्लास मुझे ही मांजना है।”

गुस्से से निशा का चेहरा तम-तमा आया। उसने निर्णय ले लिया कि वह भाभी साक्षी से पूछेगी कि एक निर्बल वृद्धा पर क्यों इतना अत्याचार कर रही हो।

उसकी मंशा को भांपते हुए उसकी मां सरिता ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया, उसने कहा, “ऐसा करके तुम मेरी मुसीबत और बढ़ा दोगी” कहती हुई वह हांफने लगी, उसके हाथ-पैर कांपने लगे।

निशा ने उसे सहारा देकर खाट पर लिटा दिया।
“मत बोलो अब कुछ मां, हममें अब बर्दाश्त करने की क्षमता नहीं है।”

साक्षी ने आकर कमरे में कैंडिल जला दिया और यह कहती हुई वह रसोई-घर की तरफ चली गई कि चूल्हा पर चाय चढ़ाकर आई है।

पल-भर बाद सरिता ने अत्यंत ही धीमी आवाज में कहा, “यह अंतिम मुलाकात है.. अब कहने-सुनने के लिए बचा ही क्या है बेटी!..” कहते-कहते उसकी आंखों से आंसू निकलकर उसके झुर्रीदार चेहरे पर बहने लगे।
पल-भर बाद ही द्दढ़ता के साथ उसने संकल्प लिया कि आइन्दा इस घर में अब ऐसा नहीं होगा। इसके लिए जो भी करना पड़ेगा, करेंगे।

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