शाम के घर में थोड़ी ठहराव के बाद, मैं पड़ोस में निशा के पास गई। उसकी सासु माँ कई दिनों से बीमार हैं, तो सोचा कि उनसे भी मिल लूं। जैसे ही मैं वहाँ बैठी, निशा की तीनों देवरानियां भी आ गईं। सभी अम्मा जी के बारे में बातें करने लगीं, लेकिन केवल शिकायतें ही थीं। कोई भी अम्मा जी के कमरे तक नहीं गया, केवल उनके बारे में बातें होती रहीं।
जब मैं घर वापस आई, तो अम्मा जी के बारे में सोचती रही। उन्होंने अपने जीवन में कितना कुछ सहा है। मेरे पति, बेटा, शान और शोहरत, सब कुछ मेरी सासु माँ की ही देन है।
मेरे बच्चे भी अपनी दादी के पास सुबह-शाम बैठते हैं। उन्हें देखकर दादी माँ मुस्कुराती हैं और अपने कमजोर हाथों से उनके माथे और चेहरे को सहलाकर दुआएं देती हैं। जब मैं उन्हें नहलाती, खिलाती-पिलाती हूँ, तो मेरे पति के चेहरे पर संतुष्टि का भाव देखकर मैं धन्य महसूस करती हूँ।
अम्मा जी मुझे भी खूब दुआएं देती हैं और कहती हैं, “तुम मेरी बहू नहीं, बेटी हो। मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करती हूँ कि तुम्हारे बच्चे तुम्हें हमेशा खुश रखें और तुम्हें किसी चीज की कमी न हो।” उनकी ये दुआएं मेरे दिल को बड़ा सुकून देती हैं और ऐसा लगता है कि मैंने अपने बुढ़ापे का इंतजाम कर लिया है।
फिर निशा उत्साह से बोली, “एक और बात है, जहाँ भी ये रहेंगी, घर में खुशहाली ही रहेगी। ये तो मेरा तीसरा बच्चा बन चुकी हैं।”
निशा की समझदारी देखकर मैं हैरान थी। मैंने उसे अपनी छाती से लगाया और मन ही मन उसे नमन किया। कैसे कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए अपने प्यार और ममता की मूरत को ठुकरा देते हैं। जीते जी माँ की सेवा कर लो, मरने के बाद नाटक मत करना। माँ है तो घर में रौनक और बरकत है। उसकी गलतियां निकालने से पहले यह सोचना कि उसने आपकी कितनी गलतियां माफ की हैं।