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Recognizing true relationships: The story of blood relations and the closeness of strangers
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सच्चे रिश्तों की पहचान: खून के रिश्ते और परायों के अपनापन की कथा

सीमा की एक बात ने नंदनी के दिल को सुकून दिया। “यहां की आप चिंता मत करो भाभी, मैं सब देख लूंगी आप बेफिक्र होकर जाओ। अगर कोई और मदद चाहिए होगी तो आप बस एक फोन कर देना। मैं सब मैनेज कर दूंगी,” सीमा के इस वाक्य ने नंदनी को राहत महसूस कराई। उसने अपने पति विनय की ओर देखा और उसकी आँखों में मानो यह संदेश था, “आप जिन्हें हमेशा पराया समझते थे, आज वही पराए लोग अपनों से भी ज्यादा अपने निकले।”

नंदनी ने अपनी बेटियों को प्यार किया और उनकी चिंता को मन में रखते हुए, उन्हें सीमा के भरोसे छोड़ दिया। बेटियों के बोर्ड एग्जाम पास थे, इसलिए वह उन्हें अपने साथ नहीं ले जा सकती थी। दिल में बेटियों को छोड़ने का दुख था, लेकिन साथ ही नंदनी ने सोचा कि उसकी ननद कंचन, जो तीज-त्योहार पर अक्सर अपने अधिकार की मांग करती थी, आज उसे कितनी मदद करेगी।

जब नंदनी ने कंचन से अपनी बेटियों के साथ कुछ दिन रुकने का आग्रह किया, तो कंचन ने साफ इंकार कर दिया। उसने कहा कि उसकी सास ने मना कर दिया है, क्योंकि उसकी ननद आ रही है और सासूजी को पसंद नहीं कि भाभी के रहते उनकी बेटी को घर का काम करना पड़े।

नंदनी अपने माता-पिता की इकलौती बेटी थी। उसके मम्मी-पापा अकेले हो गए थे, लेकिन नंदनी को लगता था कि चाचा-चाची उनके साथ हैं और किसी भी जरूरत में मदद करेंगे। एक सुबह उसे फोन आया कि उसके पिता सीढ़ियों से फिसल गए हैं और डॉक्टर ने 24 घंटे का समय दिया है। नंदनी के चाचा ने उसे तुरंत बुलाया।

नंदनी चाहती थी कि कंचन आकर बेटियों के साथ कुछ दिन रह जाए, लेकिन कंचन के इंकार ने उसका दिल और भी भारी कर दिया। नंदनी की आदत थी कि वह दूसरों की तकलीफों को देखकर खुद को रोक नहीं पाती थी। सोसाइटी में किसी को भी कोई परेशानी होती, तो वह सबसे पहले मदद के लिए पहुंचती। उसकी इसी आदत से विनय अक्सर चिढ़ता था और उसे इन कामों से मना करता था।

एक दिन, नंदनी हंसते हुए विनय से बोली, “शुक्र मानिए कि मेरी इसी आदत की वजह से आपकी बहन को आराम है, वरना उसे किसे बुलाती? मुझे पता है कि कल को अगर मुझे मदद की जरूरत पड़ी, तो यही पराए लोग अपने बन जाएंगे।”

विनय ने कहा, “मदद? लेकिन इन परायों की मदद हमें क्यों पड़ेगी? तुम भूल रही हो कि मेरी सगी बहन और जीजाजी भी इसी शहर में रहते हैं। जब जरूरत होगी, वे तुरंत आ जाएंगे।”

नंदनी विनय की बात सुनकर बस मुस्कुरा दी और मन ही मन सोची, “पतिदेव, आप अपनी बहन को समझ ही नहीं पाए हैं। वह सिर्फ मतलब की रिश्तेदार है। जो अपनी जिम्मेदारी खुद नहीं उठा सकती, आए दिन मुझे बुलाती है, वह हमारी मदद करेगी… कभी नहीं।”

आज वही दिन आ गया, जब विनय का सिर शर्म से झुका हुआ था। जब उसने अपनी बेटियों को संभालने के लिए कंचन से कहा, तो कंचन ने अपनी परेशानियों का रोना लेकर बैठ गई। वहीं, जैसे ही सीमा को इस बात की खबर लगी, वह तुरंत घर आ गई और बोली, “बेफिक्र होकर जाइए, हम लोग सब संभाल लेंगे।”

सच में, कभी-कभी अपने खून के रिश्तों से भी बढ़कर होते हैं ये परायों के अपनेपन के रिश्ते। नंदनी के इस अनुभव ने उसे एक गहरी सच्चाई सिखाई – कि सच्चे रिश्ते खून के बंधनों से नहीं, बल्कि दिलों के जुड़ाव से बनते हैं। जो लोग आपके सुख-दुख में आपके साथ खड़े होते हैं, वही आपके सच्चे अपने होते हैं, चाहे उनके साथ खून का कोई रिश्ता हो या नहीं।

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