26 साल पहले, 17 साल की गीता की शादी हुई। शादी के एक साल बाद, उसने पहली बेटी को जन्म दिया और चार साल बाद दूसरी बेटी का स्वागत किया। लेकिन गीता की जिंदगी की राह आसान नहीं थी। उसका पति अक्सर शराब पीकर घर आता और उसे पीटता था। बेटियां उसकी इस क्रूरता से डर जाती थीं। यह सिलसिला हर दूसरे दिन जारी रहता था।
आख़िरकार, गीता ने अपने आत्मसम्मान और बेटियों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए इस स्थिति का सामना करने का निर्णय लिया। उसने पूरी हिम्मत जुटाई और पति को छोड़कर एक नई शुरुआत करने का फैसला किया। इस कठिन समय में, उसकी चिंता उसकी बेटियों के अच्छे भविष्य की थी।
गीता ने कभी हार नहीं मानी। उसने दिन-रात मेहनत की, विभिन्न स्थानों पर काम किया और अपनी बेटियों को अच्छी शिक्षा देने के लिए अथक प्रयास किया। उसकी मेहनत का फल आज देखने को मिलता है। उसकी बड़ी बेटी, कृति, गुरुग्राम में एक प्रतिष्ठित कंपनी में काम कर रही है, और छोटी बेटी, मीनू, एक मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई कर रही है।
गीता ने अपनी पूरी जिंदगी अपने बच्चों के भविष्य के लिए बलिदान कर दी। उसने मुश्किल हालात का सामना किया, लेकिन कभी उम्मीद नहीं छोड़ी और अपने दम पर सफलता की ओर बढ़ती गई। उसकी कहानी हमें सिखाती है कि हालात चाहे कितने भी कठिन क्यों न हों, अगर हमारी मेहनत और संकल्प मजबूत हो, तो हम किसी भी बाधा को पार कर सकते हैं।
गीता की इस यात्रा ने यह भी दिखाया है कि सच्चे संघर्ष और समर्पण के साथ किए गए प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाते। उसकी बेटियां आज उस संघर्ष का परिणाम हैं और उनकी सफलता गीता के बलिदान और मेहनत की गवाह है।
सिखने की बात: गीता शर्मा की कहानी हमें यह प्रेरणा देती है कि जीवन की कठिनाइयों के बावजूद हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। अपने सपनों और लक्ष्यों के प्रति पूरी तरह समर्पित रहना और कठिनाईयों का डटकर सामना करना ही हमें अंततः सफलता की ओर ले जाता है। गीता की कहानी उन सभी के लिए एक सबक है जो जीवन में कठिनाईयों का सामना कर रहे हैं और अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।