Jansansar
the gap between expectations and reality
वायरल न्यूज़

उम्मीदों और वास्तविकता के बीच का फासला

कुछ दिन पहले की बात है, जब मैं अपने छोटे से गांव से दिल्ली की ओर रवाना हो रहा था, जहां मुझे अपने काम-धंधे के सिलसिले में जाना था। जल्दी-जल्दी तैयार होकर स्टेशन पहुंचा और गाड़ी का इंतजार करने लगा। स्टेशन पर भीड़ का आलम यह था कि जैसे पूरा शहर ही वहां आ जुटा हो। जब गाड़ी आई, तो जनरल बोगी में पैर रखने की भी जगह नहीं थी। भीड़ इतनी ज्यादा थी कि बैठने के लिए सीट मिलना तो दूर, गैलरी में खड़े होने में भी मशक्कत करनी पड़ी। मैंने सोचा, चलो, अगले स्टेशन पर गाड़ी रुकते ही शायद किसी के उतरने से सीट मिल जाए।
जैसे ही ट्रेन अगले स्टेशन पर रुकी, मुझे एक सीट मिल गई। मैंने फौरन सीट पर कब्जा कर लिया और चैन की सांस लेते हुए मोबाइल निकालकर उसे चलाने लगा। मेरे पास ही एक बुजुर्ग दंपति बैठे थे। उनके चेहरे पर सफर की थकान और आंखों में एक अनकही उदासी थी। कुछ देर बाद, बुजुर्ग व्यक्ति ने मुझसे विनम्रता से पूछा, “बेटा, क्या तुम मेरे बेटे को फोन कर सकते हो?”
मैंने तुरंत हामी भरी और कहा, “जी दादाजी, बताइए नंबर।” मैंने उनके बेटे को फोन मिलाया, लेकिन पहली बार में उसने कॉल नहीं उठाया। दो-तीन बार कोशिश की, लेकिन फिर भी कोई जवाब नहीं मिला। बुजुर्ग ने निराशा से कहा, “कोई बात नहीं बेटा, फिर कभी कोशिश करेंगे।”
बुजुर्ग की पत्नी, जो उनके साथ बैठी थी, भी बेहद शांत और सरल स्वभाव की दिख रही थीं। हमने धीरे-धीरे आपस में बातें शुरू कीं। बातचीत के दौरान पता चला कि उनका बेटा, सौरभ, एक इंजीनियर है और नोएडा में काम करता है। उन्हें यह कहते हुए गर्व महसूस हो रहा था कि उनका बेटा तीन साल से घर नहीं आया था, इसलिए वे उससे मिलने के लिए दिल्ली जा रहे थे। इस लंबी जुदाई के बाद बेटे से मिलने की खुशी उनके चेहरे पर साफ झलक रही थी।
थोड़ी देर बाद, अचानक सौरभ का फोन आया। मैंने फोन उठाया और कहा, “क्या आप सौरभ बोल रहे हैं?” जवाब में आवाज आई, “हां, मैं सौरभ ही बोल रहा हूं।” मैंने बताया कि आपके पिताजी ने फोन करवाया है, उनसे बात कर लीजिए।
सौरभ ने कुछ देर तक अपने पिताजी से बातचीत की। वह थोड़ा असहज लग रहा था और आखिरकार उसने कहा, “पिताजी, आप क्यों आ रहे हैं? मैं कुछ दिनों में खुद आ जाता।” लेकिन दादाजी ने उसे समझाते हुए कहा, “तीन साल हो गए तुझे देखे हुए। अब हम तेरे पास आ रहे हैं। दिल्ली पहुंचते ही फोन करेंगे, स्टेशन पर लेने आ जाना।” सौरभ ने अनमने ढंग से कहा, “ठीक है, हम आ जाएंगे।”
पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर जब ट्रेन पहुंची, तो मैंने एक बार फिर सौरभ को फोन किया और कहा, “भाई, आपके पिताजी स्टेशन पर उतर चुके हैं, आप कहां हो?” सौरभ ने जवाब दिया, “मैं एक मीटिंग में हूं, मेरी पत्नी आ रही है उन्हें लेने के लिए।”
मैंने यह बात दादा जी को बता दी और फिर अपने रास्ते निकल पड़ा। शाम हो चुकी थी, और मैं अपने कमरे पर पहुंचकर आराम करने लगा क्योंकि मेरा दोस्त ड्यूटी पर था। रात लगभग 11 बजे, अचानक सौरभ का फोन आया। उसने बेहद घबराहट भरी आवाज में पूछा, “भाई, आपने मेरे मां-पापा को कहां बिठाया था? वे अब तक घर नहीं पहुंचे हैं और कहते हैं कि उन्हें स्टेशन पर कोई नहीं मिल रहा।”
मुझे यह सुनकर बहुत चिंता हुई। मैंने अपने दोस्त को जगाया और हम दोनों स्टेशन की ओर निकल पड़े। वहां पहुंचकर मैंने सौरभ को फोन किया और कहा, “हम स्टेशन पर हैं, आओ मिलकर ढूंढते हैं।” हम रात के 2 बजे तक उन्हें ढूंढते रहे, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला कि वे दोनों कहां चले गए थे।
सौरभ बार-बार अपनी पत्नी को फोन कर रहा था, लेकिन वह कोई जवाब नहीं दे रही थी। धीरे-धीरे हमें एहसास हुआ कि शायद उन दोनों के बीच मां-बाप को लेकर कोई विवाद हो गया था, तभी वह स्टेशन पर उन्हें लेने नहीं आई थी।
हम थक-हारकर स्टेशन पर बैठ गए। सुबह होने वाली थी और मैंने सौरभ से कहा, “अब हमें चलना चाहिए, ड्यूटी के लिए लेट हो जाएंगे।” हम दोनों अपने-अपने रास्ते लौट गए।
अगले दिन, सौरभ का फोन आया। उसने बताया कि उसके मां-पापा रात में ही गांव लौट गए थे। उसने कहा, “भाई, हम गांव में हैं। क्या आप उनसे बात करा सकते हैं?” मैंने कहा, “हां, करवा दो।” जब दादा जी से बात हुई, तो मैंने उनसे पूछा, “दादा जी, मैंने आपको कहा था कि स्टेशन पर ही बैठना, आप कहां चले गए थे?”
यह सुनते ही दादा जी की आवाज में दर्द छलक आया। वे बोले, “बेटा, हमारे किस्मत में धक्के खाना ही लिखा है। बचपन में मां-बाप चले गए और अब बुढ़ापे में बेटा भी बहू के साथ चला गया। हमारे पास और कोई चारा नहीं था, इसलिए अपनी इज्जत बचाने के लिए हम वहां से वापस लौट आए।”
उनकी बातों में इतनी कड़वाहट और दर्द था कि मेरी आंखें नम हो गईं। यह अनुभव मेरे लिए एक गहरी सीख थी कि जिंदगी में सबकुछ हमारे सोचने के मुताबिक नहीं होता, और कभी-कभी, हमारी सबसे बड़ी उम्मीदें भी धूमिल हो जाती हैं। लेकिन इस घटना ने मुझे यह भी सिखाया कि किस्मत और परिस्थितियां हमारे जीवन में कैसे अनपेक्षित मोड़ ला सकती हैं।

Related posts

चीन में कोविड-19 जैसा नया वायरस फैलने की चेतावनी, छोटे बच्चों पर सबसे ज्यादा असर

AD

वेदांत ने परब-2024 में आदिवासी विरासत का जश्न मनाया

AD

राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग की बैठक: सफाई कर्मियों के अधिकारों और समस्याओं पर चर्चा

Jansansar News Desk

संगीतकार से अभिनेता बनी लीजा मिश्रा: कॉल मी बे के जरिए नए अभिनय क्षेत्र में कदम

Jansansar News Desk

हरियाणा चुनाव: राघव चड्ढा के बयान ने AAP-कांग्रेस गठबंधन के भविष्य पर उठाए सवाल

Jansansar News Desk

संपर्क रहित यात्रा के लिए विशाखापत्तनम और 8 हवाई अड्डों पर डिजी यात्रा सुविधा शुरू की गई

Jansansar News Desk

Leave a Comment