” जवान स्त्री का संभोग उसके मन से शुरू होता है, जबकि पुरुष का उसके जननांग से।” यह एक ऐसा वाक्य था, जिसे मैं तब पूरी तरह से नहीं समझ पाई थी, लेकिन शादी के बाद इसकी गहराई का एहसास हुआ।
मेरी शादी अक्षय से तय हुई थी। उनके परिवार के लोग मुझे देखने के लिए मंदिर आए थे। मैं उन लड़कियों में से थी जो ज्यादा बाहर नहीं निकलती थीं, और मेरी कोई खास सहेलियां भी नहीं थीं। जब अक्षय से मुलाकात हुई, तो हमारी बातचीत बहुत ही औपचारिक थी। उन्होंने अपने माता-पिता पर भरोसा किया और कहा कि अगर उन्हें लड़की ठीक लगती है, तो वह भी मान जाएंगे। मैंने भी अपने माता-पिता से कहा, “जो आपको सही लगे, वही ठीक है।”
शादी से पहले हमारी थोड़ी बहुत बातचीत शुरू हुई, लेकिन जल्दी ही हमारी बातें शारीरिक संबंधों की ओर मुड़ गईं। मैंने अक्षय की बातों में हां मिलाई, लेकिन अंदर ही अंदर घबराई हुई थी। मुझे नहीं पता था कि शादी के बाद के जीवन को कैसे संभालूंगी।
शादी के बाद, सुहागरात के दिन अक्षय ने मुझे छूने की कोशिश की, लेकिन मैं इसके लिए तैयार नहीं थी। मैंने उन्हें समय देने के लिए कहा। यह मेरे लिए भी शर्मिंदगी की बात थी, लेकिन मैं नहीं चाहती थी कि बिना मन के कुछ भी करूं।
सप्ताह बीतते-बीतते अक्षय का व्यवहार मेरे प्रति रूखा हो गया। मुझे पता था कि इसका कारण क्या है, लेकिन यह समझ नहीं आ रहा था कि इसे कैसे ठीक किया जाए। मेरी सास, नीरा आंटी, ने मेरी हालत देखकर मुझसे पूछा कि सब ठीक है या नहीं। पहले तो मैंने कहा कि सब ठीक है, लेकिन फिर अपने आंसू रोक नहीं पाई और उन्हें सच्चाई बता दी।
नीरा आंटी ने मुझे समझाया कि शारीरिक संबंध एक विवाह के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं और यह एक पति को यह विश्वास दिलाता है कि उसकी पत्नी पूरी तरह से उसकी है। उन्होंने मुझे जबरदस्ती न करने की सलाह दी, लेकिन यह भी कहा कि अच्छे वैवाहिक संबंधों के लिए शारीरिक सुख का योगदान बहुत अहम होता है।
मेरी ननद, अनुष्का, और जीजा, विक्रम, ने भी अक्षय से बात की और उन्हें समझाया कि एक स्त्री के लिए शारीरिक संबंध का मतलब केवल शारीरिकता नहीं होता, यह उसके मन से शुरू होता है। अक्षय ने धीरे-धीरे मेरे साथ और समय बिताना शुरू किया, और हम दोस्त बनने लगे।
धीरे-धीरे, हम दोनों के बीच की दूरी मिट गई, और कब हम दो जिस्म एक जान बन गए, हमें पता ही नहीं चला। सेक्स के प्रति मेरी सारी अरुचि खत्म हो गई थी, और अक्षय को भी यह समझ में आ गया था कि एक स्त्री के लिए संभोग सिर्फ शारीरिक क्रिया नहीं, बल्कि मन से जुड़ी प्रक्रिया है।
अगर नीरा आंटी, अनुष्का, और विक्रम नहीं होते, तो शायद हमारी शादी इतनी आसानी से नहीं चल पाती। परिवार का सहारा और मार्गदर्शन हमें सही दिशा में लेकर गया। आजकल लोग ऐसे जीवनसाथी की तलाश करते हैं, जो अपने माता-पिता से अलग रह रहा हो, लेकिन सच तो यह है कि परिवार के साथ रहने के अनगिनत फायदे होते हैं। बंदिशें तो हर जगह होती हैं, लेकिन परिवार का साथ किसी भी रिश्ते को मजबूती से बांधे रखने के लिए जरूरी है।