धनीराम की कथा: भाग्य और दान का अनिवार्य संबंध
धनीराम की कहानी: भाग्य और दान की वास्तविकता
धनीराम की कथा: भाग्य, दान और समय के अदृश्य तंतु
धनीराम की कहानी: भाग्य, दान और समय की गहन सच्चाई
धनीराम एक बहुत ही कुशल और धनी व्यापारी था। उसने अपने धन से गरीबों की बहुत मदद की थी, वृद्ध आश्रम और धर्मशालाएं बनाई। अपने दानी स्वभाव के कारण धनीराम का अपने नगर में बहुत सम्मान था। धनीराम ने अपनी बेटी की शादी एक बहुत बड़े घर में कर दी। लेकिन उसकी बेटी के भाग्य में सुख नहीं था। शादी के बाद पता चला कि उसका पति शराबी और जुआरी था। बेटी को दिया हुआ सारा धन उसके पति ने जुए में समाप्त कर दिया। अब उनकी बेटी बहुत ही गरीबों की जिंदगी जी रही थी।
एक दिन धनीराम की पत्नी ने धनीराम से कहा, “आप जानते हैं कि हमारी बेटी का पति जुआरी है और हमारी बेटी बहुत दुखी है।
आप अपनी बेटी की सहायता क्यों नहीं करते? यूं तो पूरी दुनिया की मदद करते फिरते हैं।” धनीराम ने कहा, “भाग्यवान, जब तक बेटी और दामाद का भाग्य उदय नहीं होगा, तब तक मैं उनकी कितनी भी सहायता कर लूं, उससे कोई भी फायदा नहीं होगा। जब उनकी किस्मत जागेगी, तब वे अपने आप ही सुख का जीवन जीने लगेंगे और हर कोई उनकी मदद करने को तत्पर रहेगा।”
लेकिन मां का दिल तो मां का दिल ठहरा। अगर बेटी को कोई परेशानी हो तो वह आराम से कैसे रह सकती है? इसलिए वह हर पल यही सोचती रहती कि बेटी की मदद कैसे करें। एक दिन धनीराम किसी काम से नगर से बाहर चले गए। इसी का फायदा उठाकर धनीराम की पत्नी ने अपनी बेटी और दामाद को भोजन का न्योता भेज दिया।
शाम होते-होते, बेटी और दामाद धनीराम के घर भोजन के लिए आ गए। सासू मां ने उनका बहुत आदर और सत्कार किया। उन्हें बहुत ही स्वादिष्ट भोजन करवाया और बड़े ही प्रेम के साथ विदा किया।
जाते-जाते, एक टोकरी भरकर मोतीचूर के लड्डू भी भेंट स्वरूप अपने दामाद को दे दिए। धनीराम की पत्नी ने उन लड्डुओं के बीच में सोने के सिक्के छिपा कर रख दिए थे, जिससे बेटी की मदद भी हो जाएगी और दामाद जी को इसका पता भी नहीं चलेगा।
बेटी और दामाद जी विदा लेकर चल दिए। रास्ते में, दामाद ने अपनी पत्नी को सुना कर कहा, “खाने को तो तुम्हारे पिता इस नगर के धनवान व्यापारी हैं, और विदाई में क्या दिया? केवल मोतीचूर के लड्डू। कौन इतना वजन उठाएगा? ले जाकर इन लड्डुओं को किसी मिठाई वाले को बेच देता हूं।
मेरा कुछ वजन तो कम हो ही जाएगा।” यह कहकर, दामाद ने लड्डुओं की टोकरी एक मिठाई वाले को बेच दी और बदले में कुछ रुपए ले लिए।
शाम के समय धनीराम अपने घर को लौट रहे थे। रास्ते में वही मिठाई की दुकान दिखी, जिस पर उनके दामाद ने मोतीचूर के लड्डू को बेच दिया था। धनीराम को मोतीचूर के लड्डू बहुत पसंद थे, इसीलिए धनीराम ने मिठाई वाले से वही मोतीचूर के लड्डू की टोकरी खरीद ली और अपने घर ले आया।
धनीराम की पत्नी ने देखा कि लड्डुओं की टोकरी सेठ जी लेकर आ रहे हैं, तो उन्होंने पूछा, “यह क्या लेकर आए हैं?” धनीराम ने कहा, “तुम्हारे लिए मोतीचूर के लड्डू लेकर आया हूं। एक मिठाई की दुकान पर दिखे, तो ले आया।” सेठानी ने लड्डुओं की टोकरी पहचान ली और लड्डू फोड़कर देखा तो उसमें वही सोने के सिक्के निकले जो उसने डाले थे। सेठानी ने अपना सिर पीटा और धनीराम को सारी बात बताई।
धनीराम ने अपनी पत्नी को समझाया, “जब तक भगवान किसी के भाग्य को नहीं जगाता, तब तक उसका भाग्य नहीं जागता। फिर चाहे कोई भी कितना ही प्रयास क्यों न कर ले। देखो, यह तुम्हारी सोने के सिक्के वापस तुम्हारे पास ही आ गईं, क्योंकि ये सिक्के न तो तुम्हारी बेटी-दामाद के भाग्य में थे और न ही मिठाई वाले के भाग्य में।”
शिक्षा: वक्त से पहले और नसीब से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता है।