मंगलवार, 12 नवंबर यानी कल कार्तक शुक्ल एकादशी है। मान्यता के अनुसार इस तिथि पर भगवान विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं। भगवान विष्णु आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तक मास की देवउठी एकादशी तक चार महीने तक विश्राम करते हैं। इस दौरान भगवान शिव सृष्टि का संचालन करते हैं।
देवउठि एकादशी पर तुलसी और शालिग्राम का विवाह
देवउठि एकादशी पर तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराने की परंपरा है। शालिग्राम को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने धोखे से देवी तुलसी का व्रत तोड़ा था, जिसके बाद शिव जी ने तुलसी के पति शंखचूड़ का वध कर दिया। यह जानकर तुलसी ने विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। तब विष्णुजी ने इस श्राप को स्वीकार कर लिया और तुलसी को पूजनीय होने का वरदान दिया।
देवउठि एकादशी से जुड़ी मान्यताएं
इस तिथि पर तुलसी और शालिग्राम का विवाह किया जाता है। इसे देव प्रबोधि एकादशी भी कहा जाता है। यह त्योहार हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। यह भगवान विष्णु के जागने का दिन है, इसलिए इसे देवोति एकादशी कहा जाता है।
अगर आप देवउठि एकादशी के दिन तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह नहीं कर सकते हैं, तो इस पर्व पर सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जलाएं और तुलसी को ओढ़नी (चुनड़ी) चढ़ाएं। साथ ही लाल चूड़ियाँ, कंकू, बिंदी, हार और फूल जैसे विवाह का सामान चढ़ाएं। अगले दिन, यानी रविवार को ये सभी चीजें विवाहित महिला को दान कर दें।
भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की विशेष पूजा
इस दिन भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की विशेष पूजा करें। पूजा में तुलसी के पत्तों के साथ मिठाई का भोग लगाएं। पूजा के दौरान ‘ૐ नमो भगवत वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करना चाहिए। घर में तुलसी होने से वास्तु दोष शांत रहता है और वातावरण में सकारात्मकता बनी रहती है। आयुर्वेद में तुलसी का प्रयोग कई प्रकार की औषधियों में किया जाता है। रोजाना तुलसी के पत्तों का सेवन करने से कई स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं। प्रतिदिन तुलसी के पास दीपक जलाने से धर्म लाभ मिलता है।
देवउठि एकादशी के दिन की विशेष बातें
देवउठि एकादशी के दिन सुबह तुलसी के पास स्वच्छता और पवित्रता का ध्यान रखें। स्नान के बाद तुलसी को जल चढ़ाएं। हल्दी, कंकू, दूध, चावल, भोग, चुंदड़ी आदि पूजा सामग्री चढ़ाएं। सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जलाएं और कपूर जलाकर आरती करें।
तुलसी से जुड़ी इन बातों का भी रखें ख्याल
सूर्यास्त के बाद कभी भी तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए। अमावस्या, चतुर्दशी तिथि, रविवार, शुक्रवार और सप्तमी तिथि के दिन तुलसी के पत्ते तोड़ने से भी बचना चाहिए। यदि इन दिनों तुलसी के पत्तों की आवश्यकता हो, तो आप गिरे हुए तुलसी के पत्तों का उपयोग कर सकते हैं या पूजा में रखे पुराने तुलसी के पत्तों का पुनः उपयोग कर सकते हैं। यदि वर्जित दिनों में तुलसी का प्रयोग करना हो, तो एक दिन पहले ही तुलसी के पत्ते तोड़कर रख लेना चाहिए। बिना वजह तुलसी के पत्ते तोड़ने से बचें।
तुलसी नामाष्टक मंत्र
वृन्दा वृन्दावनि विश्वपूजिता विश्वपावनि।
पुष्पसारा नंदनी तुलसी कृष्ण जीवनी।
एत्भामन्ष्टका चैव स्त्रोत नामार्थं संयुतम्।
यः पथेत् तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलनलमेता।