Jansansar
Definition of love and lust: Radhika's story
वायरल न्यूज़

प्रेम और हवस की परिभाषा: राधिका की कहानी

राजेश और राधिका की शादी को छह महीने हो गए थे। राजेश इकहरे बदन का साधारण सा युवक था, जो देखने में बहुत मामूली लगता था। वहीं, राधिका बेहद खूबसूरत थी। भगवान ने उसे अद्वितीय सौंदर्य दिया था। उसके गदराए गोरे बदन से गुलाबों की महक आती थी। उसकी आंखों से सैकड़ों मधुशालाएँ बहती थीं। जो भी उसे एक बार देखता, वह उसी का होकर रह जाता। उसका फिगर ऐसा था कि उसे देखकर मॉडल भी ईर्ष्या करने लगतीं। कुल मिलाकर, राधिका असाधारण सुंदरता की मलिका थी। मगर उसका मुकद्दर ऐसा था कि उसे राजेश जैसा साधारण सा पति मिला। न शक्ल-सूरत में आकर्षक, न चुस्त-दुरुस्त बदन। न वह कोई धनी व्यक्ति था और न अधिक पढ़ा-लिखा। बस, एक स्कूल में बाबू था राजेश। यह नौकरी भी उसके पिता की मृत्यु के कारण उसे मिली थी। इसमें उसका कोई योगदान नहीं था।

राधिका ने राजेश को कैसे पसंद कर लिया, इसके पीछे भी एक कहानी है। राधिका अपने गांव में ही पढ़ रही थी। वह 16-17 साल की हो गई थी। एक कमसिन कली धीरे-धीरे फूल बन रही थी। उसके हुस्न की महक पूरे गांव में फैलने लगी थी। उसका परिवार बहुत साधारण सा था। ईश्वर की लीला भी अपरंपार है। वह किसी को धन-दौलत देता है तो किसी को सौंदर्य से मालामाल कर देता है। कुछ ही लोगों को वह दोनों चीजों से नवाजता है। राधिका कीचड़ में कमल की तरह खिल रही थी। उसके रूप-यौवन का जादू उसके गांव से बाहर जाकर भी शोर मचाने लगा था। गुदड़ी में लाल वाली कहावत राधिका पर फिट बैठ रही थी। ऐसा लगता था कि सारा सौंदर्य उसी पर बरसा दिया था भगवान ने। उसे देखकर रास्ते में आते-जाते लोग आहें भरने पर मजबूर हो जाते थे। उस पर तरह-तरह की फब्तियां कसते थे।

राधिका ऐसे कमेंट सुनने की आदी हो गई थी। वह जब-जब ऐसे कमेंट सुनती, शरमा जाती थी। उसका दिल धड़क-धड़क जाता था और होंठों पर बरबस मुस्कान आ जाती थी। उसकी आंखों में एक अनोखी मदहोशी सी छा जाती थी। इन सबसे उसकी चाल भी और मतवाली हो गई थी। दिल फेंक लोग हाथों में अपना दिल लेकर उसके आगे-पीछे घूमने लगे थे। अपने आगे-पीछे शोहदों की कतार देखकर उसे अपने सौंदर्य पर अभिमान होने लगा था। उसका दिल भी उन लड़कों की ओर खिंचने लगा था।
उसे भरे-पूरे बदन वाले चिकने गबरू जवान लड़के पसंद आते थे। उसकी निगाह ऐसे ही युवकों पर ठहरती थी। बाकी को तो वह घास भी नहीं डालती थी।

एक दिन वह कुछ सामान खरीदने अपनी सहेली के साथ बाजार जा रही थी। उसकी सहेली ने उससे धीरे से कहा कि एक गबरू जवान लड़का उन दोनों के पीछे-पीछे चल रहा है। राधिका ने उस युवक को कनखियों से देखा। बड़ा बांका सजीला नौजवान था वह। राधिका भी उस गबरू जवान के डील-डौल को देखकर उस पर रीझ गई। उसके होंठों ने मुस्कुराकर उसे निमंत्रण भेज दिया। बस, गबरू जवान को तो इशारा मिलने की देर थी, वह खिल उठा। वह राधिका के एकदम पास आया और धीरे से बोल दिया, “आई लव यू।” राधिका ने आंखें झुकाकर उसका प्रेम निमंत्रण स्वीकार कर लिया। उसके इशारों को समझकर वह नौजवान उसके साथ अठखेलियां करते-करते चलता चला गया और उसके पीछे-पीछे राधिका के घर तक आ गया। इससे राधिका बहुत खुश हुई। उस नौजवान ने उसका घर देख लिया था, वह अब यहां रोज आ जा सकेगा। नौजवान ने 10 बजे का इशारा किया और फिर वह चला गया। राधिका सपनों की दुनिया सजाने बैठ गई।

उसने अपना काम फटाफट कर लिया और अपने कमरे की खिड़की खोलकर उसके सामने बैठकर पढ़ने का नाटक करने लगी। रात में ठीक दस बजे जब राधिका ने खिड़की के बाहर देखा तो वह गबरू जवान वहां खड़ा था। उसे देखकर वह भी खिड़की पर आ गई और अपने कमरे की लाइट बंद कर दी जिससे किसी को वह दिखाई नहीं दे।

राधिका को खिड़की पर आया देखकर वह नौजवान भी धीरे-धीरे खिड़की के पास आ गया। गबरू नौजवान ने अपना हाथ खिड़की के अंदर डालकर राधिका का हाथ अपने हाथ में ले लिया और उसे धीरे-धीरे सहलाने लगा। राधिका को उसका स्पर्श बहुत सुखद लग रहा था। उसके दिल की धड़कनें बहुत बढ़ गई थीं। उसे डर भी लग रहा था कि कहीं कोई देख न ले। उसने अपना हाथ छुड़ा लिया और धीरे से कहा, “कोई आ जाएगा ना। अभी तुम जाओ। मैं रात में बारह बजे दरवाजा खोल दूंगी, तुम अंदर आ जाना।” गबरू ने उसका हाथ दबाकर जता दिया कि वह बारह बजे आएगा और फिर वह वहां से चला गया।

रात को ठीक बारह बजे जब सब लोग अपने-अपने कमरों में सोये हुए थे, तब राधिका ने चुपके से दरवाजा खोल दिया। गबरू बाहर उसका इंतजार कर रहा था। दरवाजा खुलते ही नौजवान अंदर आ गया। राधिका ने पहले से ही सारी योजना बना ली थी कि उसे क्या और कैसे करना है। वह उसे लेकर ऊपर छत पर चली गई। एकांत देखकर गबरू ने उसे बाहों में भर लिया। वह भी उससे लता की तरह लिपट गई। दोनों दीवानों की तरह आलिंगनबद्ध हो गए। राधिका एक पल को यह भूल गई थी कि वह अपने ही घर में है। उसकी आंखें आनंद से स्वत: बंद हो गईं। जैसे ही राधिका ने अपनी आंखें खोलीं तो उसके मुंह से बेसाख्ता एक चीख निकल गई। उसकी मां उसकी आंखों के सामने ही खड़ी थी। इश्क के बाजार में पहले दिन ही उसकी चोरी पकड़ी गई थी। वह झटककर गबरू से अलग हो गई। उसकी मां ने डांटकर उस गबरू को भगा दिया और राधिका के गाल पर तड़ातड़ चार-पांच थप्पड़ जड़ दिए। राधिका को धकियाते हुए उसकी मां उसे नीचे ले आई।

इस घटना से घर में हंगामा हो गया। राधिका के पिता और भाई ने भी राधिका की अच्छी खासी पिटाई की और उसका घर से बाहर आना-जाना बंद कर दिया। वह अपने ही कमरे में कैद कर दी गई। उसके कमरे की खिड़की ईंटों से चिनवा दी गई। उसके सारे सपने खिलने से पहले ही मुरझा गये थे। उसे गबरू से मिलने का कोई अवसर नहीं दिया गया।

बात अड़ोस-पड़ोस, नाते-रिश्तेदारों में न फैले इसके लिए आनन-फानन में उसकी शादी करने की योजना बन गई। राधिका के घरवाले उसकी शादी जल्दी से जल्दी करना चाहते थे जिससे उनके खानदान पर कोई कलंक न लग सके। उन्हीं दिनों राजेश का रिश्ता आया था। वह सरकारी बाबू था। स्थाई नौकरी थी। और क्या चाहिए था? राजेश ने तो राधिका को देखते ही हां कर दी थी। आखिर एक “ड्रीम गर्ल” से शादी होने वाली थी उसकी। तो आनन-फानन में राधिका की शादी राजेश से हो गई।

राधिका के ख्वाब बहुत ऊंचे थे लेकिन घरवालों के आगे उसकी एक न चली। उसने मन मारकर शादी कर ली। राजेश को तो जैसे “कारूं का खजाना” मिल गया था। राधिका जैसे अनमोल मोती को पाकर वह धन्य हो गया था। राधिका के हुस्न और उसके मचलते यौवन ने उस पर जादू सा कर दिया था। वह उसके हुक्म का गुलाम हो गया। उसने राधिका की खुशी को ही अपनी खुशी बना लिया। राधिका के ख्वाब पूरे करना ही उसकी जिंदगी का ध्येय बन गया था।

लेकिन राधिका ने राजेश को कभी प्यार नहीं किया। उसकी आंखों में तो वह गबरू जवान बसा हुआ था। राधिका ने राजेश को कभी अपना पति माना ही नहीं और राजेश उसे अपनी जिन्दगी समझ बैठा। राधिका उसकी उपेक्षा करती थी पर राजेश उसके प्रेम में दीवाना था। उसे राधिका की उपेक्षा भी भली लगती थी। कभी-कभी तो राधिका जानबूझकर उसके खाने में नमक ज्यादा डाल देती थी जिससे राजेश ढंग से खाना नहीं खा पाए। उसे राजेश को रुलाने में आनंद आता था। राजेश के साथ रहना राधिका को अपमानजनक सा लगता था और वह इस स्थिति के लिए राजेश को ही जिम्मेदार मान बैठी थी। लेकिन राजेश ने कभी कोई शिकायत राधिका से नहीं की थी।

एक बार राजेश के गांव में एक मेला लगा था। गांव की बेटियां और बहुएं सजधज कर मेला देखने जाती थीं। उन्हें जाते देखकर राधिका का दिल भी मेला देखने के लिए मचलने लगा। राधिका को घर से बाहर निकलने का मौका कम ही मिलता था। वह घर से बाहर निकलने के लिए बेताब रहती थी। वह अपने हुस्न की चांदनी को मेले में बिखेरना चाहती थी।

एक दिन उसने राजेश से कहा कि शाम को जल्दी घर आ जाना, आज मेला देखने चलेंगे। राजेश को राधिका की फरमाइश पूरी करने में आनंद आता था, इसलिए वह जल्दी घर आ गया। तब तक राधिका मेले में जाने के लिए बन संवर कर तैयार बैठी थी। राजेश को घर पर देखकर वह बहुत खुश हुई। आज वह अपने हुस्न के जलवे दिखाने मेले में जाने वाली थी। उसने कृतज्ञता से अपनी बड़ी-बड़ी कातिल नजरों से राजेश को देखा। राजेश तो उसकी निगाहों को देखकर ही धन्य हो गया था। राधिका को मेहरबान समझकर राजेश ने उसे अपनी बांहों में जकड़ने की कोशिश की, मगर वह मछली की तरह फिसलकर उसकी बांहों के बीच से निकल गई और हंसते हुए कहने लगी, “श्रीमान जी, इतनी जल्दी क्या है? पकड़म-पकड़ाई खेलने के लिए तो पूरी रात पड़ी है। अभी तो पहले मेले में चलिए।” राजेश भी हंसकर मान गया।

दोनों मेले में पहुँच गए और खूब मस्ती करने लगे। राधिका उन्मुक्त हसीना की तरह उससे छेड़खानी करने लगी। मेले में राधिका के हुस्न का जलवा कुछ ऐसा जमा कि उसके पीछे-पीछे आवारा लड़कों की भीड़ चलने लगी। फब्तियां कसी जाने लगीं। सीटियां बजने लगीं। राधिका ने न जाने कितने दिनों बाद ये नजारा फिर से देखा था। वह मन ही मन बहुत खुश हुई। इधर इस माहौल को देखकर राजेश को गुस्सा आने लगा। वह बार-बार राधिका को घर चलने के लिए कहने लगा, लेकिन राधिका तो आई ही इस मजमे के लिए थी। आज एक बार फिर से उसकी हसरत पूरी हो रही थी। हुस्न को क्या चाहिए? प्रशंसा, प्रशंसा और केवल प्रशंसा। हुस्न की खुराक प्रशंसा ही है। यह खुराक राधिका को मेले में भरपूर मात्रा में मिल रही थी। आवारा लोगों के दुर्व्यवहार से राजेश झुंझलाने लगा था, मगर राधिका को उसमें मजा आ रहा था। आवारा लड़कों का झुंड उसके पीछे-पीछे चल रहा था। बस, इसी में उसे आनंद आ रहा था।

राधिका अपने पीछे भीड़ को लेकर मेले में चली जा रही थी कि इतने में एक तीस-पैंतीस साल का गोरा-चिट्टा बांका आदमी बंदूक़ से लैस होकर वहां आया। उसके साथ चार-पांच बंदूकधारी भी थे। उसे देखते ही आवारा लड़कों की भीड़ वहां से भाग खड़ी हुई। एकदम सन्नाटा सा छा गया वहां पर। अपने पीछे की भीड़ को गायब देखकर राधिका चौंक गई। उसकी नजर उस बंदूकधारी जवान पर पड़ी। गजब का आकर्षण था उसके रौबीले चेहरे में। उसकी आंखें बहुत विशाल थीं। उन्नत ललाट और गठीला बदन था उसका। राधिका को ऐसे ही मर्द पसंद थे। उसकी नजरें उस बांके जवान से टकरा गईं। राधिका के बदन में एक सिहरन सी दौड़ गई। कहीं से फुसफुसाहट सी आने लगी, “टाइगर भाई।” राजेश ने जैसे ही यह नाम सुना, उसके पैर कांपने लगे। अपने इलाके का छंटा हुआ गुंडा था “टाइगर”। अपहरण, लूट, डकैती, सुपारी लेकर हत्या करना, फिरौती, बलात्कार, बस यही काम था उसका। राजेश ने कांपते हाथों से राधिका को पकड़ा और उसे ले चलने का प्रयास करने लगा।

राधिका आगे बढ़ने को हुई कि उसे महसूस हुआ कि टाइगर ने उसके मजबूत हाथ से उसकी कलाई पकड़ रखी है। वह मजबूत पकड़ उसे बहुत अच्छी लगी। राजेश के कांपते हाथों की लिजलिजी पकड़ बहुत गंदी लग रही थी राधिका को। उसने सीधे टाइगर की आंखों में देखा। वहां उसकी चाहतों का समंदर फैला हुआ था। अब उसने टाइगर के पूरे बदन को देखा। “वाह! क्या रौबीला व्यक्तित्व है इसका। जैसे कि पृथ्वीराज चौहान।” राधिका को टाइगर पसंद आ गया। राजेश की कमजोर पकड़ छूट गई थी।

राजेश ने टाइगर से कहा, “ये क्या बद्तमीजी है टाइगर? मेरी पत्नी है ये। छोड़ दे इसको।”

राजेश की मिमियाहट सुनकर टाइगर जोर से हंसा। हंसते-हंसते बोला, “ये मुंह और मसूर की दाल। गंजे के हाथ बटेर लग गई साले। मगर सुन। तेरी औकात नहीं है इस नायाब हीरे को संभालने की। तू एक भिखारी है और ये हुस्न का खजाना। गुदड़ी में कोहीनूर शोभा नहीं देता है, समझे। ये तो हम जैसे राजा लोगों के मुकुट के लिए बनी है। चल फूट यहां से।” और टाइगर ने एक झन्नाटेदार थप्पड़ रसीद कर दिया राजेश के गाल पर। राजेश चकरघिन्नी खाकर वहीं पर गिर पड़ा।

फिर टाइगर ने राधिका को देखा और मुस्कुरा कर कहा, “राजी-राजी चलेगी या उठाकर ले जाऊं?” राधिका कुछ समझ ही नहीं पा रही थी। उसने इतनी कल्पना नहीं की थी। टाइगर का व्यक्तित्व उसे आकर्षित कर रहा था। उसके सामने राजेश बहुत बौना लग रहा था। राधिका ने हिकारत भरी नजरों से जमीन पर पड़े हुए राजेश को देखा। फिर गर्व से दमकते हुए टाइगर को देखा। वह दृढ़संकल्प से टाइगर के साथ चल पड़ी। इतने में एक बी एम डब्ल्यू कार आकर रुकी और दोनों उसमें बैठ गये।

एक महलनुमा मकान में टाइगर उसे ले आया और एक कमरे में पड़े पलंग पर उसे बैठा दिया। बाहर नौकरों की फौज को हिदायत देते हुए बोला, “जब तक मैं नहीं कहूं, तब तक कोई हमें डिस्टर्ब नहीं करेगा। समझ गये ना? और हां, एक शानदार डिनर की तैयारी करो।”

टाइगर दरवाजा बंद कर पलंग पर आ गया और बोला, “जो भी तुम्हारा नाम है, पर तुम हो बेहद खूबसूरत। मैंने बहुत सी सुन्दरियां देखी हैं पर ऐसा हुस्न मैंने आज तक नहीं देखा है। इसलिए मैं अपने आप को रोक नहीं पाया, जानेमन। पर एक बात कहूं, भगवान ने बहुत फुरसत से बनाया है तुमको। खूब मजा आयेगा जब हुस्न और जवानी दोनों में जंग होगी।” कहकर उसने राधिका को अपने से सटा लिया। राधिका को वह मर्दाना स्पर्श बहुत अच्छा लगा। उसने मुस्कुरा कर और अपनी नजरें झुकाकर उसका हौंसला और बढ़ाया। इससे टाइगर पागल जैसा हो गया। टाइगर ने उसे बाहों में भर लिया। एक तूफान सा आया और सब कुछ तहस-नहस कर गया। राधिका को ऐसा महसूस हुआ जैसे वह किसी दूसरी दुनिया में है। वह जैसा आदमी चाहती थी, टाइगर के रूप में उसे वैसा ही आदमी मिला। आनंद की चरम अनुभूति में खो गई वह।

टाइगर ने उसकी जरूरत का सारा सामान वहीं पर मंगवा दिया था। भांति-भांति के अंतर्वस्त्र, साड़ी ब्लाउज, टॉप लैगिंग, सूट वगैरह। श्रंगार का सारा सामान भी। नौकर-चाकरों की फौज थी वहां। उसे ऐसा लगा जैसे वह किसी रियासत की महारानी हो।
डिनर पर दोनों साथ बैठे। इतने लैविश डिनर की कल्पना भी नहीं की थी उसने। वह मन ही मन सोचने लगी, यह टाइगर राजा है या गुंडा? शायद आजकल गुंडे राजा जैसे ही होते हैं। अगर उसकी शादी इससे हो जाती तो कितना मजा आता? मगर अब भी क्या बिगड़ा है? शादी ना सही “लिव-इन” ही सही। क्या फर्क पड़ता है? आजकल तो सुप्रीम कोर्ट ने भी मान्यता दे दी है इसे। वह सोचती रही।

तीन-चार दिन तो “हनीमून” में ही गुजर गए। पता ही नहीं चला। एक दिन जब टाइगर चला गया और शाम का वक्त था तो वह नीचे लॉन में आ गई। बहुत सुंदर बगीचा था। सब तरह के फूल खिले हुए थे वहां पर। वह फूलों में खो गई। फूलों के उपवन में एक “फूल” और आ गया था।

इतने में एक शालीन, सौम्य, सुंदर सी औरत वहां पर आई और फूल तोड़ने लगी। राधिका को देखकर वह मुसकुराई। उसे देखकर राधिका भी मुस्कुरा दी। आंखों-आंखों में पहचान हो गई। वह औरत हंसकर बोली, “नई आई हो?”
यह प्रश्न सुनकर राधिका चौंकी। झटपट उसके मुंह से निकल गया, “जी। पर आपको कैसे पता चला?”
प्रश्न का जवाब उसने केवल मुस्कुरा कर दिया। कहने लगी, “यहां तो आती ही रहती हैं लड़कियां और औरतें। देखते हैं कि आप यहां कब तक रुकेंगी?”

इससे पहले कि राधिका कुछ समझ पाती, वह औरत चली गई। राधिका उसके शब्दों का अर्थ ढूंढती रह गई। दिन इसी तरह गुजर रहे थे। एक दिन फिर वही औरत नीचे बगीचे में मिल गई। राधिका पूछ बैठी, “दीदी, आप कौन हैं?”
वह मुस्कुरा कर बोली, “क्या करोगी जानकर?”
“बस, ऐसे ही।”

“हमारा नाम सरिता है। हम टाइगर की पत्नी हैं।”

यह वाक्य सुनकर राधिका चौंकी। “टाइगर की पत्नी भी है?” राधिका ने पूछा, “कितने साल हो गए शादी को?”
वह हंसकर बोली, “कुछ याद नहीं।”

“ऐसा क्यों?”
“बस ऐसे ही। अब हममें पति-पत्नी का संबंध नहीं रहा।”
“क्या?”

“जी, आपने जो सुना वह सही है। हम पिछले तीन साल से उनसे अलग रहते हैं, मगर इसी प्रांगण में ही। उनको तो नित नये फूलों की महक लेने का शौक है। ये हमसे बर्दाश्त नहीं हुआ और हम उनसे अलग हो गए।” उसकी आवाज में दर्द था। राधिका को पहली बार अपराध बोध हुआ। सरिता चली गई और राधिका सोचती रह गई।

एक शाम को टाइगर आया और उसके साथ एक आदमी भी आया। टाइगर उसका परिचय करवाते हुए राधिका से बोला, “ये हैं मिस्टर अरुण कुमार। यहां के एस पी।” राधिका की आंखें फटी की फटी रह गईं। एक एस पी एक दुर्दांत अपराधी के घर क्यों आया है? वह कुछ समझ पाती इससे पहले ही टाइगर बोला, “मुझे आज कुछ जरूरी काम आ गया है इसलिए मैं अभी जा रहा हूं। तुम एस पी साहब का अच्छे से ध्यान रखना। देखो, शिकायत का मौका नहीं मिलना चाहिए।” राधिका उन शब्दों का मतलब ढूंढने में व्यस्त हो गई।

इतने में एस पी साहब बाथरूम चले गए। पीछे से टाइगर धीमे से बोला, “आज की रात ये साहब यहीं पर रुकेंगे, तुम्हारे ही साथ। जब तक जागते रहें, तुम भी तरोताजा रहना। मेरे खास मेहमान हैं ये। इन्हें कोई शिकायत का मौका नहीं देना है।”
राधिका अब आसमान से सीधे धरती पर गिर पड़ी थी। वह खुद को टाइगर की बीवी समझ बैठी थी। मगर आज उसे अपनी औकात पता चल गई। अब उसके पास और विकल्प भी क्या था?

एस पी साहब सुबह चार बजे तक उसके साथ रहे। फिर चले गए। राधिका को पता चल गया था कि अब वह इसी तरह से दूसरे लोगों को परोसी जाती रहेगी। “हे भगवान! ये क्या कर लिया उसने?” मगर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।

एक दिन उसे सरिता फिर मिल गई। आज उसे पता चला कि अब तक न जाने कितनी लड़कियों की हत्या कर लाश ठिकाने लगा दी गई थी यहां पर। कितनी लड़कियों ने आत्महत्या कर ली थी यहीं पर। आज तक यहां से कोई भी लड़की जिंदा नहीं जा पाई थी। राधिका को अपना भविष्य दिख रहा था। अब उसे राजेश का प्यार याद आने लगा था। राजेश का प्रेम निर्मल और गहन था। टाइगर तो हवस का पुजारी था। वह प्यार को क्या जाने? दोनों की कोई तुलना ही नहीं थी। राधिका को अब राजेश साधारण आदमी नहीं, देवता लगने लगा था। उसने भी तो अपनी हवस की आग में एक देवता के प्रेम को ठुकरा दिया था।

उसे अपनी मौत दिखाई देने लगी थी। पर वह ऐसी मौत मरना नहीं चाहती थी, इसलिए उससे बचने का उपाय सोचने लगी। एक योजना उसके दिमाग में आई। योजना के तहत वह एक मनोचिकित्सक के पास दिखाने गई। टाइगर भी साथ था। मनोचिकित्सक ने और दवाओं के साथ नींद की कुछ गोली भी लिख दी थी। वह एक महीने की दवाई लेकर आ गई।

दो-तीन दिन बाद एक मंत्री जी को लेकर टाइगर घर आया। राधिका समझ गई कि आज की रात उसे मंत्री जी के साथ गुजारनी है। उसने अपनी योजना पर काम शुरू कर दिया। उसने चुपके से अपने पर्स से नींद की गोली निकाल ली और उसे शराब के प्याले में डाल दिया। फिर वह अपने हाथों से दोनों को बड़े प्रेम और मनुहार से शराब पिलाने लगी। धीरे-धीरे शराब और गोली का असर दोनों पर होने लगा। दोनों वहीं पर लुढ़क गए थे।

अब वह टाइगर की दो रिवॉल्वर ले आई। दोनों रिवॉल्वरों से उसने गोली मारी। एक से टाइगर को तो दूसरे से मंत्री को। दोनों में उसने तीन-तीन गोली मारी जिससे उनके बचने की कोई भी संभावना ना रहे। फिर वह चिल्लाती हुई बाहर भागी, “खून! खून!” फिर उसने एक एंबुलेंस बुलवाई और उन दोनों को अस्पताल ले चली। वहां पर दोनों को मृत घोषित कर दिया गया। राधिका ने पुलिस में आत्मसमर्पण कर दिया।

पुलिस ने उससे पूछताछ करके मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर दिया जिसने उसे जेल भेज दिया। राधिका के दिन जेल में कटने लगे। वहां पर उसे रह-रहकर राजेश की याद आने लगी। क्या शक्ल-सूरत ही मायने रखती है? क्या गठीला बदन ही मायने रखता है? मृगतृष्णा है ये रंग-रूप, यौवन। जब तक अथाह प्रेम का सागर हाथ ना लगे तब तक ही शक्लो-सूरत अच्छी लगती है। सबसे बड़ी चीज है प्रेम। प्रेम नहीं है तो शरीर का क्या महत्व? टाइगर के पास शरीर था पर प्रेम नहीं। राजेश प्रेम पुजारी था तो टाइगर हवस का भूखा भेड़िया। कितना अंतर है दोनों में। वह भी कितनी मूर्ख थी जो प्रेम के सागर को छोड़

कर “शरीर” रूपी गंदे तालाब के पीछे-पीछे दौड़ती रही। मगर अब क्या हो सकता है?

जेल में वह दिन गुजार रही थी कि एक दिन गार्ड ने कहा, “कोई मिलने आया है आपसे।”

वह असमंजस में पड़ गई। कौन आया होगा? मगर अनुमान नहीं लगा सकी।

इतने में राजेश सामने आ गया। उसे देखकर उसकी भावनाओं का ज्वार बह निकला। आंखों से अविरल अश्रु धारा बह निकली। उसने मुंह फेर लिया और हिलकियां ले-लेकर रोने लगी।

राजेश ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, “एक बार मेरी ओर तो देखो, राधिका। क्या मैं इतना बुरा हूं?”
राजेश के इन शब्दों ने ना जाने कैसा जादू किया राधिका पर कि वह फट पड़ी, “आप तो देवता हैं। मैं ही कुलटा हूं, कुलच्छिनी हूं, पापन हूं। मैं आपके लायक नहीं हूं। मुझे माफ़ कर दीजिए।”

राजेश ने उसके दोनों हाथों को पकड़कर अपने माथे और आंखों पर लगाया, फिर चूम कर बोला, “मैं तुमसे प्यार करता हूं, राधिका। मेरा प्यार सच्चाई की तरह है जिसे कोई मार नहीं सकता है। मैं अंत तक तुम्हारा इंतजार करूंगा।”

मिलने का समय समाप्त हो चुका था। राजेश ने उसके बचाव के लिए दिन-रात एक कर दिए। एक से बढ़कर एक वकील किए। पैसा पानी की तरह बहाया। ट्रायल कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई जिसे उच्च न्यायालय ने दस साल तक सीमित कर दिया।

सजा पूरी होने पर जब वह जेल से बाहर आई तो वहां पर राजेश खड़ा हुआ उसका इंतजार कर रहा था। राधिका ने पश्चाताप के आंसुओं से अपना तन-मन भिगोकर निर्मल कर लिया था। निर्मल हृदय में भगवान बसते हैं। राधिका को प्रेम और हवस में अंतर समझ आ गया था।

Related posts

राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग की बैठक: सफाई कर्मियों के अधिकारों और समस्याओं पर चर्चा

Jansansar News Desk

संगीतकार से अभिनेता बनी लीजा मिश्रा: कॉल मी बे के जरिए नए अभिनय क्षेत्र में कदम

Jansansar News Desk

हरियाणा चुनाव: राघव चड्ढा के बयान ने AAP-कांग्रेस गठबंधन के भविष्य पर उठाए सवाल

Jansansar News Desk

संपर्क रहित यात्रा के लिए विशाखापत्तनम और 8 हवाई अड्डों पर डिजी यात्रा सुविधा शुरू की गई

Jansansar News Desk

पुरानी यादों की वापसी: सिद्धार्थ और रिया की मिलन की कहानी

Jansansar News Desk

विनेश फोगट ने कांग्रेस में शामिल होकर भाजपा पर किया हमला पार्टी की सराहना की

Jansansar News Desk

Leave a Comment