एक गांव में एक बुजुर्ग आदमी की मौत हो गई। उसके बेटों, सगे संबंधियों और गांव वालों ने मिलकर उसकी अंतिम यात्रा की तैयारी की। उसकी अर्थी तैयार की गई और उसे श्मशान की ओर ले कर जाने लगे।
अभी वो लोग कुछ दूर ही पहुंचे थे कि वहां पर दूसरे गांव से एक आदमी आया। उसने उस अर्थी को लेकर जा रहे चार आदमियों में से एक का पैर पकड़ लिया और सबसे कहने लगा कि ये आदमी जो मर चुका है, उसने मुझसे 20 लाख रुपए उधार लिए थे और जब तक मुझे पैसे वापस नहीं मिल जाते, मैं अर्थी को आगे नहीं जाने दूंगा!
मृत व्यक्ति के बेटों ने उस आदमी से कहा कि पिताजी ने कभी इस कर्जे के बारे में हम से जिक्र नहीं किया, इसलिए हम तो यह कर्जा नहीं देने वाले। जब बेटों ने ही मना कर दिया तो उस मृत व्यक्ति के भाइयों ने भी कहा कि जब बेटे ही मना कर रहे हैं तो हम भी इस कर्जे की जिम्मेदारी नहीं लेने वाले हैं।
श्मशान यात्रा में शामिल कोई भी आदमी पैसे देने के लिए राजी नहीं हुआ। दूसरे गांव से आए उस आदमी ने अर्थी को आगे भी नहीं जाने दिया। जब तक कि इस घटना की खबर घर की महिलाओं तक ना पहुंच गई।
मरे हुए आदमी की एक बेटी थी। जब उसके पास यह खबर पहुंची तो उसने एक पल भी ना सोचते हुए अपने सारे जेवरात और कीमती वस्तुएं लेकर वहां पहुंच गई और उस आदमी को वह सारी चीजें देते हुए बोली, “आप इन चीजों को बेचकर पैसे ले लीजिए। अगर कुछ कम पड़ेंगे तो वह भी मैं आपको धीरे-धीरे लौटा दूंगी, लेकिन मेरे पिताजी की यात्रा को मत रोकिए!”
इस घटना को देखकर सारे गांव वाले दंग रह गए। तभी वह आदमी जो कर्जे की मांग कर रहा था, बोला कि दरअसल मुझे 20 लाख रुपए लेने नहीं थे बल्कि मैंने इस आदमी से कभी लिए थे, जो मैं आज लौटाने आया था! लेकिन मुझे पता नहीं था कि इनका असली हकदार कौन है? इसलिए मैंने यह सारा नाटक रचाया!
मैं जान चुका हूं कि मरे हुए आदमी का सच्चा हितैषी ना उसके बेटे हैं ना उसका भाई, बल्कि उसकी बेटी है। इसलिए यह सारे पैसे मैं उसके हवाले करता हूं और अपने कर्जे से मुक्त होता हूं।
थोड़ी ही देर में जो घटना घटित हो चुकी थी, उससे बेटों के, भाइयों के और बाकी रिश्तेदारों के सर शर्म से झुक गए। इसलिए हमेशा दुआ करना कि हर किसी को एक बेटी जरूर हो क्योंकि बाकी सब तो माता-पिता की दौलत को अपना समझते हैं, लेकिन बेटियां मां-बाप को ही अपनी दौलत समझती हैं।